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डंके की चोट पर : सियासत का कंगना और जंगलराज की घंटी

शबाहत हुसैन विजेता

जिन दिनों सचिन तेंदुलकर का बल्ला रनों की बारिश कर रहा था और क्रिकेट का मतलब सचिन बन गया था उन दिनों की बात है बीएमसी ने सचिन तेंदुलकर को नोटिस भेजा कि उनका बंगला नियम के खिलाफ बना है. उन पर एक बड़ी रकम का जुर्माना तय किया गया है. जुर्माना अदा नहीं करने पर उनके खिलाफ एक्शन लिया जा सकता है. नोटिस मिलते ही सचिन ने जुर्माने की रकम जमा कर दी. बाद में जुर्माना लगाने वाले ने खुद यह खुलासा किया कि वह तो सिर्फ यह चाहते थे कि सचिन खुद चलकर बीएमसी आयें और जुर्माने के बारे में पूछें. रिक्वेस्ट मोड में रहें तो उनका मुआवजा या तो माफ़ कर दिया जाएगा या फिर बहुत कम लगा दिया जायेगा. सचिन को वह तरीका बता दिया जायेगा कि वह अपना जुर्माना कैसे माफ़ करवाएं लेकिन सचिन ने फ़ौरन ही रकम अदा करवा दी और उनसे मुलाक़ात का ख़्वाब अचानक से टूट गया.

यह पुराना किस्सा है. यह किस्सा सरकारी कामकाज के तौर तरीकों की कलई खोलता है. एक स्टार खिलाड़ी को सिर्फ अपने सामने झुकाने और उसे अहसानों के नीचे दबाने के मकसद से नोटिस तैयार करवा दिया गया.

मुम्बई बहुत बड़ा शहर है. ऐसी बिल्डिंगे हज़ारों में होंगी जिनको बनाने में नियमों को दरकिनार किया गया होगा. जिस बिल्डिंग की शिकायत आयेगी उसी के खिलाफ ही तो एक्शन लिया जा सकता है.

कंगना ने भी अपना ऑफिस बनाने के लिए बनी-बनाई बिल्डिंग 48 करोड़ में खरीदी थी. ज़ाहिर है कि गमले रखने के लिए बनाया गया छज्जा भी बिल्डिंग की छत के साथ ही ढाला गया होगा. वह बिल्डिंग बन रही थी तब बीएमसी ने एक्शन क्यों नहीं लिया? जब कंगना के नाम रजिस्ट्री हो रही थी तब इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? जब ध्यान गया तो बीएमसी ने नोटिस देकर कंगना को जवाब देने के लिए वक्त क्यों नहीं दिया?

सवाल तो ढेर सारे हैं मगर जवाब बीएमसी के पास नहीं शिवसेना के पास है. और वह जवाब शिवसेना ने अपने अखबार सामना में “उखाड़ दिया” लिखकर दे भी दिया है. कंगना और शिवसेना के बीच जंग का यह जवाब शिवसेना को नहीं महाराष्ट्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है.

महाराष्ट्र ही क्यों पूरे हिन्दुस्तान में बदले की सियासत हावी है. उत्तर प्रदेश में भी इमारतें ढहाने का काम बहुत तेज़ी पर है. हर ढहती इमारत के पीछे सिर्फ और सिर्फ सियासी दुश्मनी है. मुख्तार अंसारी के बेटों की इमारतें ढहा दी गईं क्योंकि मुख्तार बहुजन समाज पार्टी के एमएलए हैं. अतीक की इमारतों पर बुलडोज़र चला क्योंकि अतीक अपना दल और समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे हैं. विकास दुबे का मकान ढहाया गया क्योंकि पुलिस के कंधे पर सरकार का हाथ था.

अतीक, मुख्तार और विकास दुबे के नाम सुनते ही लोग सरकार के बचाव में खड़े हो जायेंगे कहा जायेगा कि यह तो माफियाराज के खिलाफ एक्शन है. माफियाराज के खिलाफ एक्शन कभी मकान गिराना नहीं होता है. मकान तभी गिराया जा सकता है जबकि उसे गलत तरीके से बनाया गया हो. पास कराये गए नक़्शे और बनाई गई इमारत में फर्क हो.

माफियाराज के खिलाफ एक्शन लेना है तो माफिया को जेल भेजना होता है. मुख्तार और अतीक तो पहले से जेल में हैं. वह जेल से गिरोह चला रहे हैं तो यह जेल प्रशासन का फेल्योर है. मतलब जेल में लगे जैमर खराब हैं और माफिया फोन के ज़रिये अपने गिरोह से जुड़े हुए हैं. जैमर सही हैं तो इसका मतलब या तो जेलकर्मी माफिया का सन्देश लेकर उसके गिरोह तक जा रहे हैं या फिर गिरोह के लोग जेल में आकर मीटिंग कर रहे हैं. दोनों ही मामलों में जेल प्रशासन के खिलाफ एक्शन होना चाहिए. माफिया का घर गिरा देने से क्या होगा. माफिया किसी और से वसूली कर अपने नुक्सान की भरपाई कर लेगा.

इसी तरह विकास दुबे का घर गिराने को भी सही कैसे ठहराया जा सकता है. जिस वक्त वह आठ पुलिसकर्मियों का कत्ल कर फरार हो गया था उस वक्त उसे तलाशने के बजाय पुलिस उसका घर गिराने में लगी थी. विकास दुबे कानपुर में ही छुपा हुआ था. बाद में उसने इंदौर में खुद सरेंडर किया तो पुलिस जज बन गई और उसकी सजा की जो पटकथा लिखी वह उसकी गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर चलने लगी थी.

घर गिराने का काम सरकार नियम-क़ानून से करती होती तो समाजवादी पार्टी के एमएलसी बुक्कल नवाब को बीजेपी का एमएलसी बनने की क्या ज़रूरत थी. हाईकोर्ट के आर्डर के बावजूद उसकी इमारतें क़ानून को मुंह चिढ़ा रही हैं. दो साल बाद हुकूमत बदलेगी तो वह नई सरकार वाली पार्टी को ज्वाइन कर लेगा और चैन की बंसी बजाता रहेगा. धरती पुत्र मुलायम सिंह और जिसने न कभी झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है जैसे नारों से शहर की दीवारों को पाट देने वाला अपनी इमारतें बचाने के लिए राम मंदिर को पांच किलो चांदी पहुंचा रहा है.

कंगना फिल्म ऐक्ट्रेस है. इस ऐक्ट्रेस ने अपनी पन्द्रह साल की कमाई से मुम्बई के पाली हिल में 48 करोड़ की बिल्डिंग खरीदकर दो साल पहले ऑफिस बनाया था. दो साल तक यह ऑफिस बिलकुल सही था लेकिन जैसे ही कंगना ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला ऑफिस नियमों के खिलाफ हो गया. जिस तरह से इमारत का छज्जा गिराया गया और जिस तरह से इमारत के इंटीरियर को नुक्सान पहुँचाया गया उसने साबित किया कि सरकार किसी भी पार्टी की हो लेकिन उसका चरित्र एक जैसा ही होता है.

कंगना फिल्मों में काम करने वाली सरकार है. और शिवसेना एक सियासी पार्टी है. दोनों का आपस में दूर-दूर तक कुछ लेना देना नहीं है. दोनों में टकराव की वजह सुशांत को इन्साफ दिलाना भी नहीं है. सुशांत सिंह राजपूत को इन्साफ दिलाने के लिए कंगना ने जो रवैया अपनाया था और जिस तरह से उनकी ज़बान से तमाम बड़ी फ़िल्मी हस्तियों के नाम निकले थे उसके बाद जो माहौल तैयार हुआ उसकी तह में जाना ज़रूरी है.

कंगना के शोर मचाने से शिवसेना बौखला गई क्योंकि उसे लगा कि इसके शोर मचाने से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बेटा आदित्य ठाकरे भी इस केस में फंस सकता है क्योंकि आदित्य और रिया चक्रवर्ती के रिश्ते जगजाहिर होने लगे थे. यह बात सामने आ गई थी कि मौत से कुछ घंटों पहले सुशांत के फ़्लैट पर हुई पार्टी में आदित्य भी शामिल हुए थे. आदित्य के साथ गाड़ी में बैठी रिया की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी थीं.

कंगना के बयानों से शिवसेना की बौखलाहट बढ़ी तो बीजेपी को लगा की कंगना तो उसके लिए संजीवनी साबित हो सकती है. बीजेपी को लगा कि हंगामा बढ़ जाए तो सरकार गिराकर शिवसेना का घमंड तोड़ा जा सकता है. बीजेपी ने कंगना के सर पर हाथ रख दिया. सरकार का साथ मिला तो कंगना ने भी महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला दिया. कंगना के पास फिल्मों में तो काम था नहीं लेकिन इस बयानबाजी से वह मीडिया में छा गई.

कंगना मुफ्त का प्रचार देख रही थीं तो बीजेपी मुफ्त के मोहरे का इस्तेमाल कर रही थी. शिवसेना की तरफ से संजय राउत ने मोर्चा संभाल लिया तो बीजेपी की बांछें खिल गईं. कंगना को भरोसा दिलाया गया कि जब हिमाचल सरकार और भारत सरकार तुम्हारे साथ है तो एक संजय राउत और एक उद्धव ठाकरे तुम्हारा क्या बिगाड़ लेंगे.

शिवसेना ने कंगना को चुनौती दी कि मुम्बई आकर दिखाओ. हिमाचल सरकार ने उन्हें वाई प्लस सेक्योरिटी देकर कंगना की ज़बान में पंख लगा दिए. कंगना ने कहा कि 9 तारीख को आ रही हूँ मुम्बई, देखती हूँ कि क्या उखाड़ते हो. फ़ौरन बीएमसी को एलर्ट किया गया. इधर हिमाचल से कंगना ने जहाज़ पर सवार होकर मुम्बई के लिए उड़ान भरी इधर बुलडोजरों के काफिले ने कंगना के ख़्वाबों के चकनाचूर करना शुरू कर दिया.

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कंगना वाई प्लस सेक्योरिटी पाकर चहक रही हैं. गवर्नर से मुलाक़ात कर यह मान रही हैं कि उन्हें इन्साफ मिलेगा. बीजेपी इस बात से खुश है कि न हींग लगी न फिटकरी और महाराष्ट्र सरकार को मुश्किल में डाल दिया. शिवसेना इस गुमान में ऐंठ रही है कि अब कोई दूसरा फ़िल्मी सितारा उसे आँख दिखाने की जुर्रत नहीं करेगा. इधर सोशल मीडिया पर यह पोस्ट वायरल हो रही है कि शुक्र मनाओ कंगना कि महाराष्ट्र सरकार से पंगा लिया था, सिर्फ ऑफिस गिरा है. यूपी सरकार से टकराई होतीं तो अब तक गाड़ी पलट गई होती.

सियासत के इस करेक्टर पर फ़ौरन मंथन शुरू नहीं हुआ तो आने वाले दिनों के हालात और खराब होने वाले हैं. सियासत को क्राइम के नेक्सस से बाहर आना होगा. क़ानून का राज स्थापित करना है तो कोर्ट को फ्री छोड़ना होगा. अदालती हुक्म सियासत के हिसाब से बदलना बंद करना होगा. मुख्तार अंसारी, अतीक, विकास दुबे और कंगना तो सिर्फ मोहरे भर हैं लेकिन आम आदमी का अदालत और सियासत से भरोसा उठ गया तो लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जाएगा. लोकतंत्र खतरे में पड़ा तो क़ानून का राज जंगलराज में बदलते देर नहीं लगेगी.

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