Monday - 4 November 2024 - 7:50 AM

अमानवीय है धर्म की आड़ में वर्चस्व की जंग छेड़ना

डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश में शांति की बात करने वाले बहुत लोग हैं। लगभग सभी प्रत्यक्ष में इस शब्द का खुलकर उपयोग करते हैं परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। राजनैतिक दलों के अनेक चेहरे बहुत सारे मुद्दों पर स्वयं को पर्दे के पीछे छुपाने की कोशिश करने लगते हैं। विकास के ठेकेदार बनने वाले सफेदपोश लोगों का दोहरा आचरण समय-समय पर उजागर होता भी रहा और समय के साथ लोग उसे भूलते भी रहे हैं।

लखनऊ में हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी की गला रेतकर ठीक उसी तरह हत्या की गई जैसे किसी बकरे को जिवा किया जाता है। गोलियों की सौगात भी दी गई और चाकुओं के वार भी किये गये। यानी मानसिक उन्माद की चरम सीमा तक आक्रोशित लोगों ने धर्म के कथित आकाओं के इशारे पर वो सब कर डाला, जिसके लिए उन्हें सब्जबाग दिखाये गये थे। देश में ज्वलंत बहस छिड़ गई।

कुछ समय के लिए तर्कों का बाजार गर्म हो गया। टीवी चैनल्स से लेकर गांव की चौपालों तक ज्ञान बांटने वाले अक्षरों की जुगाली करने लगे। इस विषय पर हमने नामची लोगों की वास्तविक सोच की तह तक जाने का मन बनाया। कांग्रेस के दिग्गज नेता मीम अफजल को फोन लगाया। फोन पर चर्चा की, तो उन्होंने कमलेश तिवारी का नाम आते ही इस विषय को टालने की कोशिश की। क्या हत्या के फतवा को आप किस रूप में देखते हैं। उनका मौन नहीं टूटा।

राजनीति के रास्ते से विकास की राह लम्बी करने का दावा करने वाले, क्या निर्मम हत्या पर भी खामोशी अख्तियार कर लेंगे। उन्होंने कहा कि हम ऐसे मुद्दों पर कुछ कहना नहीं चाहते। सरकार को अपना काम करना चाहिये। हमने कहा कि अपनी व्यक्तिगत सोच को सार्वजनिक न करना, क्या संदेह नहीं पैदा करता। उन्होंने कानून अपना काम करेगा, वाला वाक्य नये ढंग से कह दिया।

उन्होंने बताया कि वे निजी जिन्दगी, सोच और व्यवहार को वह अपने तक ही सीमित रखते हैं। यह सार्वजनिक करने का विषय नहीं है। क्या इसी तरह से देश का विकास और मुल्क में अमन आयेगा। उन्होंने इस प्रश्न पर केवल इतना ही कहा कि हमारा नजरिया तो केवल देश के विकास पर ही केन्द्रित रहता है। इस विषय पर उन्हें ज्यादा न कुरेदते हुए शुक्रिया बोलकर बात समाप्त करना ही हमें उचित लगा।

हमारे एक पुराने मित्र और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव आबिद सिद्दीकी का नाम फ्लैश करते हुए फोन की घंटी बज उठी। खैरियत पूछने-बताने के बाद हमने उन्हें भी लखनऊ काण्ड पर विचार रखने हेतु आमंत्रित कर दिया। बेहद सख्त लहजे में उन्होंने कहा कि हम और हमारी पार्टी दौनों ही इस घटना की कडी निंदा करते हैं।

हमने उन्हें गहराई तक टटोलने की मंशा से कहा कि केवल निंदा से ही काम चल जायेगा क्या। बिलकुल नहीं चलेगा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि यह उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार की मानसिकता दर्शाने वाली घटना है, जब कमलेश जी पहले से ही सुरक्षा की गुहार लगा रहे थे, तब केन्द्र और प्रदेश सरकार कानों में रुई के फाहे क्यों घुसेडे थी।

कमलेश जी की मां ने जिस तरह से उत्तरप्रदेश पुलिस के पैरों में गिरकर सुरक्षा की बात कही और मुख्यमंत्री को बुलाने की याचना की, वह बेहद द्रवित कर देने वाले दृश्य थे। योगी बाबा फिर भी वहां नहीं पहुचे। बडे अधिकारियों को अपने वातानुकूलित कमरों से निकलना तक गवारा नहीं हुआ। मध्यप्रदेश कांग्रेस के सचिव जिस तरह से इस मुद्दे पर भाजपा को घेरना चाहते थे, हम उससे हटकर उनका पक्ष जानने के लिए लालायित थे।

हमने फतवा, आईएस, कट्टरपंथियों के उकसावे पर उनका ध्यान केन्द्रित किया, तो उन्होंने कहा कि दुनिया का कोई भी धर्म हत्या का पाठ नहीं पढाता। इंसानियत को तार-तार करने वाले खुदा के प्यारे हो ही नहीं सकते। ठेकेदारों को एक बार फिर मजहब की परिभाषा को समझने की जरूरत है। हम इस मुद्दे पर किसी भी तरह के पक्षपात के पक्षधर नहीं है। लोगों की अपनी सोच है कि वे क्या करते हैं, कैसे करते हैं, क्यों करते हैं।

यह सब उनका जाती मामला हो सकता है परन्तु जिससे दूसरा प्रभावित हो, वह जाती नहीं रह जाता। समाज का कोई भी भाग यदि तनिक भी दायें-बांयें होता है, वहां संविधान की सर्वोपरि है। बातचीत चल ही रही थी कि अचानक फोन डिस्कनैक्ट हो गया। कुछ देर बाद पुन: फोन आया तब पता चला कि वे सफर में हैं और नेटवर्क की समस्या के कारण निरंतर बात नहीं हो पा रही थी, परन्तु जितनी भी बात हुई, उससे उनका नजरिया और कांग्रेस का रुख सामने आ चुका था।

तभी हमें याद आये अपने छात्र जीवन के साथी वीरेन्द्र तिवारी, जो वर्तमान में यूपीसीएलडीएफ के चेयरमैन हैं, को फोन लगाकर उनसे इस मुद्दे पर भाजपा ओर प्रदेश सरकार का पक्ष जानना चाहा। यूं तो सभी राजनैतिक दल और संगठन अपने-अपने खास सिपाहसालारों के माध्यम से लखनऊ काण्ड पर निरंतर हाय तौबा मचा रहे हैं, परन्तु लीक से हटकर अन्दर की बात जानने हेतु हमने अपने ढंग से कोशिश की।

वीरेन्द्र तिवारी ने फोन उठाते ही हमे छात्र जीवन के चर्चित नाम से संबोधित किया। हमने कमलेश प्रकरण पर उनका दृष्टिकोण जानने की कोशिश की तो उन्होंने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण निरूपित करते हुए कहा कि अपराधियों को कदापि बक्सा नहीं जायेगा। पुलिस के समय सीमा निर्धारित करके दोषियों को सलाखों के पीछे भेजने की बात भी कही  है।

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यह देश की विडम्बना है जो कलुषित मानसिकता के लोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। यह सब उकसाने वाली घटनायें है, ताकि देश का अमन चैन समाप्त हो जाये, परन्तु देशवासियों की समझदारी से हम ऐसे लोगों के मनसूबे पूरे नहीं होने दे रहे हैं और न ही आगे उनके घातक मनसूबे पूरे होंगे।

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बातचीत चल ही रही थी कि तभी कालवेटिंग में फोन आने का संकेत मिलने लगा। सो बातचीत को संक्षेप में ही समाप्त कर दिया। कालवेटिंग वाला फोन महोबा के शहर काजी मुहम्मद आफाक हुसैन का था। दुआ-सलाम के बाद उन्हें भी हमने इसी मुद्दे पर रेखांकित करना शुरू कर दिया। हत्या की निन्दा करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह की हरकत करने वालों को सख्त से सख्त सजा मिलना चाहिये।

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किसी भी व्यक्ति के व्दारा की गई गलती के लिए उसे कानून के दायरे में रहते हुए सजा दिलवाना चाहिए । हमारे देश का संविधान सभी तरह की समस्याओं का निदान सुझाने में सक्षम है। तभी कालबेल का मधुर स्वर गूंजने लगा हमने बातचीत को अखिरी पायदान पर पहुंचाया और मुख्यव्दार की ओर रुख किया।

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इस बार के सहज संवाद में कई लोगों से बातचीत करना पडी ताकि अन्य पक्षों पर भी रोशनी पड सके। कुल मिलाकर यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि अमानवीय है धर्म की आड में वर्चस्व की जंग छेडना।

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