कुमार हर्ष
टेलीविजन रिपोर्टिंग की दो किस्में प्रचलित हैं। पहली – शब्दों से उत्तेजना और उन्माद भरते चीखते रिपोर्टर्स वाली और दूसरी शांत, संयत और संजीदा ढंग से अपनी बात को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से संप्रेषित करने वाली।
दूसरी किस्म की रिपोर्टिंग में पहले से ही बहुत थोड़े लोग ही थे और आज कमाल खान के असमय जाने के बाद शोर के हाहाकारी समंदर में शांति की यह धारा और सिकुड़ गयी।
कमाल खान पी टू सी के बेमिसाल उपयोगकर्ता थे।
पी टू सी यानी पीस टू कैमरा यानी रिपोर्टिंग का वो आखिरी हिस्सा जहां अपना नाम लेते हुए टीवी रिपोर्टर अपनी स्टोरी खत्म करता है।
यह कहना गलत नही होगा कि टीवी रिपोर्टिंग रिपोर्टर से ज्यादा कैमरामैन की काबिलियत पर टिकी होती है लेकिन कमाल का कहन इतना कमाल का होता था कि लोग खबर से ज्यादा दिलचस्पी से खबर खत्म होने और उनकी पी टू सी शुरू होने का करते थे जो हर बार एक प्रवाहमान कविता की तरह हुआ करती थी।
लोगों के जाने के साथ उनकी यादें जाती हैं, कमाल के जाने से ये अद्भुत और अनिर्वचनीय कला भी चली गयी जिसकी इस चीखते समय मे सबसे ज्यादा जरूरत थी।
यह भी पढ़ें : लाखों अफगान नागरिक ‘मौत की कगार’ पर : संयुक्त राष्ट्र
यह भी पढ़ें : …तो इसलिए कांग्रेस नेत्री ने खुद पर चलवाई थी गोली
यह भी पढ़ें : यूपी में पिछले 48 घंटे में BJP को कितना नुकसान हुआ?
यह भी पढ़ें : भाजपा में भगदड़ का चुनाव पर कितना असर पड़ेगा?