नवेद शिकोह
भाजपा के जन्म से ही लोगों की ये धारणा रही है कि इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य हिन्दू समाज को जोड़ना और एकता स्थापित करना है। लेकिन इस धारणा और उद्देश्य के विपरीत भाजपा पर दशकों तक सवर्णों की पार्टी का टैग जब तक लगा तब तक ये पार्टी हाशिए पर रही।
वक्त ने करवट ली, भाजपा में सवर्णों का एकक्षत्र राज टूटा और बदलाव के शुभमुहूर्त में पार्टी का कल्याण होना प्रारंभ हुआ। कल्याल सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक जब-जब भाजपा ने किसी पिछड़े को अपना चेहरा बनाया तब-तब सवर्णों की पार्टी का भ्रम टूटा। पार्टी ने तरक्की, सत्ता हासिल की और हिन्दुओं की एकता का लक्ष्य और संकल्प पूरा होने लगा।
ये इत्तेफाक भी है और हकीकत भी कि भाजपा को पिछड़़ी जातियों के चेहरे रास आते रहे।
पहला प्रयोग राम मंदिर आंदोलन मे हुआ, जहां अग्रिम पंक्ति में सवर्णों के साथ पिछड़ों को भी बराबर से खड़ा किया गया। कल्याण सिंह इस आंदोलन के मुख्य योद्धा बनके उभरे।
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हिन्दु ह्रदय सम्राट कहलाए और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पंहुचे। राम मंदिर के लिए उन्होंने अपनी सीएम की कुर्सी भी कुर्बान दे दी तो और भी बड़े हिन्दूवादी जन नेता बन गए।
वो दोबारा मुख्यमंत्री बने और फिर दुर्भाग्यपूर्ण अगड़ा-पिछड़ा वाला वायरस एक बार फिर पार्टी उभरने लगा। लम्बी खीचा तानी के बाद कल्याल सिंह भाजपा से अलग हुए और फिर भाजपा का पतन शुरू हो गया।
उधर कल्याण सिंह ने पिछड़ी जातियों को एकजुट करने के लिए अपनी पार्टी का गठन कर लिया। यहां तक कि वो भाजपा को कमजोर करने की ज़िद में सपा के साथ चले गए।
उन मुलायम सिंह से हाथ मिला लिया जिन्हें भाजपाई राम भक्तों का हत्यारा होने का आरोप लगाते हैं। लेकिन भाजपा और कल्याण सिंह की लम्बी लड़ाई में दोनों का नुकसान हुआ।
नहीं तो कल्याल सिंह तो प्रधानमंत्री पद के मैटीरियल थे और पीएम बन भी सकते थे। ख़ैर जब इन्होने घर वापसी की यानी भाजपा में वापस आए तो देर हो चुकी थी। गुजरात दंगों के बाद धीरे-धीरे मोदी युग के उदय की किरणें फूटने लगी थी।
पुराने बाजपाई मार्गदर्शन मंडल के हाशिए पर जा रहे थे।
और एक विशाल कल्याल सिंह अर्थात पिछड़ा चेहरा नरेंद्र मोदी भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति और देश व हिन्दुत्व के राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभर रहे थे।
हांलाकि भाजपा का कल्याण करने का मतलब भर का इनाम कल्याण सिंह को मिलता रहा। दो बार मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनें। बेटे विधायक, सांसद, मंत्री बने।
पोता योगी सरकार में मंत्री बने। और क्या चाहिए। फिर भी लोगों का कहना है कि वो प्रधानमंत्री मैटीरियल थे और उन्हें राज्यपाल बना कर भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति से दूर किया गया।
लोग कहते ह़ै- कुछ उपयोगिताएं डिस्पोजेबल होती हैं। उपयोगिताएं पैदा करने वाला उपयोग की चीज़ का एजाद करके साइड लाइन हो जाता है, और फिर उनके फार्मूले या सांचे में कोई दूसरा उससे भी बड़ी उपयोगिता पैदा कर देता है।
देश की सियासत में राम भक्ति का ट्रेंड चलाकर यूपी और फिर देश भर में भाजपा की सफलता के बीज बोने वाले कल्याण सिंह सियासी कामयाबी दिलाने के टू इन वन सांचे थे।
राम भक्ति के अलख जलाकर ही उन्होंने भाजपा का भविष्य रोशन नहीं किया, भाजपा का कल्याण करने वाले कल्याण का एक बड़ा योगदान ऐसा है जो पार्टी को सफलता के चरम पर ले गया है।
इस योगदान की विरासत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजबूती से थामे हैं। जिस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था संख्याबल के आधार पर विजय और पराजय तय करती हो वहां बहुसंख्यक हिन्दू समाज का चेहरा भाजपा क्यों दशकों तक हाशिए पर रही ? आजादी के बाद लगातार करीब 60-70 वर्षों तक कांग्रेस क्यो़ भाजपा को धूल चटाती रही ? आखिर क्यों ?
इन प्रश्नों का जवाब ये है कि भले ही भाजपा को हिन्दुत्व या हिन्दुओं की पार्टी कही जाए पर ये सवर्णों की पार्टी कही जाने लगी थी। यानी हिन्दुओं के विभाजन का सबब बन कर रह गई थी।
इसका फायदा उठाकर यूपी में क्षेत्रीय दलों ने हिन्दुओं के बीच ध्रुवीकरण कर अगड़ों और पिछड़ों को बांटने की राजनीति की। और फिर ओबीसी-दलित प्लस मुसलमान के फार्मूले पर यूपी में सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल कांग्रेस और फिर भाजपा को हराते गए।
एक नया अध्याय शुरू हुआ। अयोध्या में राम मंदिर को लेकर आंदोलन ने हिन्दू-जन जागृति से भाजपा को नई ज़िन्दगी दी। ये बात सच तो है लेकिन अधूरी है।
राम मंदिर आंदोलन से ही हिंदुओं के बीच एकता स्थापित नहीं हुई, इस आन्दोलन की अग्रिम पंक्ति में कल्याल सिंह जैसा पिछड़ी जाति का चेहरा बतौर नायक उभर रहा था।
उनके साथ उमा भारती और विनय कटियार जैसे चेहरे थे इसलिए कल्याण सिंह भाजपा के लिए टू इन वन उपयोगकारी साबित हुए। नहीं तो शायद हिन्दू समाज की आधे से ज्यादा पिछड़ों-दलितों की आबादी शायद राम मंदिर आंदोलन में ये सोच कर शामिल न होती कि ये आंदोलन भाजपा यानी सवर्णों का है।
पिछड़ी जातियों के समाज के नेता बनकर कल्याण सिंह ने हिन्दुओं को हिन्दुत्व की आस्था के प्लेटफार्म पर इकट्ठा करके हिन्दू एकता स्थापित की। जिस विरासत को वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं। और कल्याण सिंह ये कहते हुए चले गए-
दौलत हो या हुकूमत, ताकत हो या जवानी,
हर चीज़ मिटने वाली, हर चीज़ आनी-जानी।