शबाहत हुसैन विजेता
उन दिनों मैं जनसत्ता एक्सप्रेस में था. उत्तर प्रदेश में ऐसी पहली गैर भाजपा सरकार गठित हो रही थी जिसमें अगर कोई सबसे ज्यादा खुश था तो वह कल्याण सिंह थे. शाम को राजभवन में शपथ गृहण समारोह था. राजभवन के दरबार हाल (अब गांधी सभागार) में पड़े सोफे पर सबसे आगे कल्याण सिंह बैठे थे. कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह और कल्याण सिंह की करीबी कुसुम राय ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली.
दूसरे दिन मुझे कल्याण सिंह से इंटरव्यू करने भेजा गया. कल्याण सिंह मॉल एवेन्यू में दो नम्बर के बंगले में रहते थे. एक दिन पहले ही सरकार गठित हुई थी. बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था. उनके बंगले पर पहुँचते ही पूछा गया कि बाबूजी से मिलना है कि भैयाजी से. मैंने कहा बाबूजी से.
बड़े वाले हाल में सामने के सोफे पर कल्याण सिंह बैठे थे. सामने पड़ी कुर्सियों पर बड़ी संख्या में लोग बैठे थे. उन्हें बताया गया कि जनसत्ता एक्सप्रेस में आपका इंटरव्यू जाना है. कल्याण सिंह चाहते तो वहीं से मुझे बुला सकते थे मगर वह उठकर मेरे पास आये और बुलाकर बगल वाले बेडरूम में ले गए. वहां बोले मेरा इंटरव्यू कर क्या पाओगे? न तुम्हें कुछ हासिल होगा न मुझे. तुम राजवीर का इंटरव्यू करो. पहली बार चुनाव लड़ा है. पहली बार मंत्री बना है. उसके लिए अखबार में छपना बड़ी बात होगी. उसका उत्साह बढ़ेगा तो मेहनत से काम करेगा.
मुझे वहीं छोड़कर कल्याण सिंह दूसरे कमरे में चले गए. कुछ देर बाद उनके साथ राजवीर आये. कल्याण सिंह ने राजवीर से कहा कि तुम्हारा इंटरव्यू है, ठीक से जवाब देना, फिर मेरी तरफ घूमे, नया है, गलतियाँ करेगा, इंटरव्यू ठीक से छापना. इसकी गल्तियों को ठीक कर देना.
करीब घंटे भर राजवीर से बात हुई. कल्याण सिंह बाहर लोगों से मुलाक़ात कर रहे थे. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री लोगों की बधाइयाँ स्वीकार कर रहा था मगर एक बाप का दिल अन्दर वाले कमरे में भटक रहा था जिसमें कुछ घंटों का कैबिनेट मंत्री बेटा इंटरव्यू दे रहा था. इंटरव्यू खत्म होते ही कल्याण सिंह कमरे में आ गए. कंधे पर हाथ रखकर घर के पोर्टिको तक आये. बोले ख्याल रखना. राजवीर को स्टेब्लिश करना है.
कल्याण सिंह की बहुत सी तस्वीरें कल से ज़ेहन में उभर रही हैं. लखनऊ के सिविल अस्पताल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा का अनावरण कल्याण सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री किया था. जिन कल्याण सिंह को हिन्दू ह्रदय सम्राट कहा जाता था उन्होंने उस समारोह में कहा था कि मेरा सर किसी मन्दिर मस्जिद के सामने नहीं झुकता है, लेकिन तीन जगहें ऐसी हैं कि उनके सामने से गुज़रता हूँ तो सर अपने आप झुक जाता है. पहली जगह है स्कूल जहाँ पढ़कर बच्चा अपने देश और अपने समाज के लिए कुछ करने के लायक बनता है. दूसरी जगह है अस्पताल जहाँ पर ज़िन्दगी के लिए जूझता हुआ व्यक्ति भर्ती होता है और डॉक्टर उसे फिर से जीने के लायक बनाता है और तीसरी जगह है जेल जहाँ पर अपराधी फिर से तपकर कुंदन बन जाता है और समाज में रहने लायक बन जाता है.
छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब कल्याण सिंह ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जमा हुए थे. बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी मगर इसके बाद भी हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत का भाव नहीं जगा था. कल्याण सिंह की सरकार में एजाज़ रिजवी मुस्लिम चेहरा थे. जब बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी तब एजाज़ रिजवी अयोध्या में जयश्रीराम के नारे लगा रहे थे. इस बात को कल्याण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत गंभीरता से लिया था. दोनों ने ही उन्हें फटकारते हुए कहा था कि तुम्हें मुस्लिम चेहरे के तौर पर मंत्री बनाया गया है. तुम भी नारे लगाओगे तो फिर तुम्हें मंत्री क्यों रहने दिया जाए यह काम तो कोई भी हिन्दू कर सकता है.
कल्याण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, दो बार सांसद रहे, हिमाचल और राजस्थान के राज्यपाल रहे, राष्ट्रीय स्तर के नेता थे. पूरे देश में उनकी वैल्यू थी मगर उनसे कभी भी मिला जा सकता था. समय नहीं लिया है और उनके घर पहुँच गए हैं और वह घर पर हैं तो मुलाक़ात ज़रूर हो जाती थी.
लखनऊ के जेल अधीक्षक आर.के.तिवारी की राजभवन के सामने हत्या हो गई थी. सिविल अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे. तत्काल सिविल अस्पताल पहुँच गए थे. आर.के.तिवारी की हत्या से ठीक छह महीने पहले जिला जेल के जेलर अशोक गौतम की हत्या हुई थी. कल्याण सिंह ने अशोक गौतम के घर पहुंचकर परिवार को ढारस बंधाते हुए उनकी पत्नी को नौकरी के लिए कहा लेकिन जेलर की पत्नी हाईस्कूल तक ही पढ़ी थीं. अधिकारियों ने बताया की फोर्थ क्लास में नौकरी मिल सकती है. कल्याण सिंह की त्योरियां चढ़ गईं, जेलर की बीवी सिपाहियों को पानी पिलाएगी. उन्होंने जेलर की पत्नी से कहा कि तुम पढ़ाई करो. जब शिक्षा पूरी हो जायेगी तो सरकार सम्मानजनक नौकरी देगी. परिवार चलाने के लिए मुख्यमंत्री ने जेलर की पत्नी को असाधारण पेंशन की घोषणा की, मतलब जितना वेतन मिलता था वो पूरा वेतन उनकी पत्नी को मिलेगा. सरकारी मकान जिसमें रह रही हैं उसी में रहती रहेंगी.
कल्याण सिंह बहुत बड़े नेता मगर बहुत साधारण व्यक्ति थे. वो भी जेड सेक्योरिटी में चलते थे मगर जनता के बीच ऐसे चले जाते थे कि कभी लगता ही नहीं था कि इतने बड़े कद का व्यक्ति है. उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी छोड़ी और दोनों बार पार्टी को अहसास हुआ कि कल्याण सिंह के होने और न होने में क्या फर्क है. कल्याण सिंह कहने को तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल की कुर्सी पर ही बैठे मगर प्रधानमंत्री और दूसरे राष्ट्रीय नेता उनसे इस तरह से मुलाक़ात करते थे कि दूर से ही पता चल जाता था कि कल्याण सिंह का कद क्या है.
कल्याण सिंह की आँख बंद होने के बाद से अब तक बड़ी संख्या में लोग कल्याण सिंह के साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं. उन तक पहुंचना आसान था. उन्हें अपने पद का घमंड नहीं था. वह आम आदमी को सम्मान देना जानते थे इसीलिये आम आदमी भी उनके साथ की तस्वीरें संभालकर रखता था.
सरकारें तो अब भी बनेंगी. मुख्यमंत्री और राज्यपाल बहुत से लोग बनेंगे. बहुत से लोगों के पास बड़े बंगले और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होंगे. बहुत से लोग आगे भी भाषण देंगे तो लोगों के ज़ेहनों में नक्श हो जायेंगे मगर कल्याण सिंह जैसे लोग कभी-कभी ही पैदा होते हैं. वह बीजेपी का ऐसा चेहरा थे जो प्रधानमंत्री बनने के लायक थे, नहीं बने मगर सम्मान प्रधानमन्त्री वाला ही था. नेता तो आगे भी ऐसे आयेंगे जो अपने बच्चो को मंत्री बनवायेंगे. आगे भी ऐसे नेता आयेंगे जो सरकारें बनवाने में अहम भूमिकाएं निभाएंगे. मगर कोई बाबूजी नहीं कहा जायेगा. कोई अपने घर के पोर्टिको तक विदा करने नहीं आयेगा.
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