जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश का मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन जबसे अस्तित्व में आया है तभी से उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है।सविदा पर भर्ती अधिकारी और कर्मचारियों की कोई जवाबदेही नहीं होती है और ना कोई डर,जब देखा मामला फंस रहा है तो ये कर्मी कहीं और चल देते हैं। इसीलिये संविदा पर नियुक्त किये गये जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों के बल पर चलाया जा रहा मेडिकल कार्पोरेशन पूरी तरह से निरंकुशता और अव्यवस्था का शिकार है।
लगातार प्रमाण सहित भ्रष्टाचार के आरोप लगे लेकिन साक्ष्य होने के बाद भी कार्पोरेशन के अधिकारियों के विरूद्ध कोई कारवाई नहीं की गई। और न ही स्वास्थ्य विभाग के अनुभवी और जानकार अधिकारियों और कर्मचारियों को लिया गया। अब इस महामारी की आपदा में भी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं आया है।
कॉर्पोरेशन की हरकतों से बढ़ेगी रेमडेसिवीर (Remdesivir) इंजे.की कालाबाजारी
सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में कोविड के मरीजों के लिये कार्पोरेशन ने जो इंजेक्शन भेजे हैं उनके पैकेट और वायल की शीशी पर न तो कार्पोरेशन का लोगो है और न ही Not for sale लिखा गया है।
इसलिये कोविड अस्पतालों में इसके कालाबाजारी किये जाने का रास्ता साफ हो गया है।जबकि नियम है कि कार्पोरेशन द्वारा सप्लाई की गई हर दवा पर कार्पोरेशन का लोगो और Not for sale प्रिंट होना चाहिये।इसी वजह से कई बार छापे में सरकारी अस्पताल की दवायें बाहर मेडिकल स्टोर पर पकड़ी गईं क्योंकि उन पर Not for sale प्रिंट था।
कार्पोरेशन का Logo और Not for sale प्रिंट न होने से कम्पनियों को पहुंचाया जा रहा है लाखों का फायदा
रेमडेसिवीर (Remdesivir) इंजे.के कार्टून,पैकेट और वायल पर कार्पोरेशन का Logo और Not for sale प्रिंट करने में अलग से पैसे खर्च होते हैं।मान लिया जाय कि यदि एक रूपये प्रति वायल खर्च आ रहा है तो लाखों रूपये का कम्पनी को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
इस सम्बन्ध में जब मेडिकल कार्पोरेशन के जनरल मैनेजर (परचेज) राजकुमार अग्रवाल से बात की गई तो कहा कि मैं कुछ नहीं बता सकता आप एम डी से पूछिये। जबकि परचेज की एथारिटी इनके पास हैऔर इसको देखने की जिम्मेदारी इन्हीं पर होती है।
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रेमडेसिवीर की टेस्टिंग रिपोर्ट नहीं दे रहा कार्पोरेशन तो कैसे पता चले कि इंजेक्शन असली या नकली
यहां यह भी बता दें कि पहली बार इसकी सप्लाई में तो बाउचर और NABL(गुमवत्ता की टेस्टिंग रिपोर्ट) भी नहीं दिया जा रहा था।
जुबली पोस्ट ने इस खबर को जब प्रमुखता से उठाया तब जा कर कार्पोरेशन द्वारा अब बाउचर तो दिये जा रहे हैं लेकिन टेस्टिंग रिपोर्ट अब भी नहीं दी जा रही है । बिना टेस्टिंग रिपोर्ट (NABL)के सप्लाई इंजेक्शन रेमडेसिवीर असली है नकली पता करना मुश्किल है।इस कारण इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि है पकड़ी जा रहे नकली इंजेक्शन कार्पोरेशन की सप्लाई के न हों। और जो अस्पतालों में है वह कितने असली हैं इसकी कोई गारण्टी नहीं।
डीवीडीएम एस पोर्टल पर नहीं चढ़ाया जा रहा है रेमडेसिवीर की सप्लाई का विवरण
रेमडेसिवीर का विवरण डीवीडीएम एस पोर्टल पर नहीं चढ़ाया जा रहा है जबकि नियमानुसार इसकी उपलब्ध और वितरण की संख्या अंकित किया जाना अनिवार्य है।
प्रदेश भर के जिलों से सरकारी अस्पतालों के लोग सरकारी वाहन लेकर लखनऊ आ रहे हैं और यहां से ले जा रहे हैं।जिससे लाखों का ईंधन खर्च हो रहा है।जबकि जिलों में कार्पोरेशन लाखों रूपये प्रतिमाह के किराया के वेयर हाउस का भुगतान कर रहा है।
कोरोना की महामारी में दुहरे भुगतान और डीवीडीएम एस पोर्टल पर रेमडेसिवीर का अंकन न होना दर्शाता है कि कार्पोरेशन पर मुख्यमंत्री या सरकार का कोई अंकुश नहीं है।
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कार्पोरेशन नहीं दे पा रहा है कोविड की इमर्जेन्सी दवायें
योगी ने आदेश किया है कि जो लोग घर पर आइसोलेट हैं उन्हें सरकार की ओर से कोरोना की दवा एजिथ्रोमाइसिन, पैरासिटामाल, डाक्सीसाइकिलीन आइर्वेक्टिन, जिंक जैसी आवश्यक दवायें दी जांय, लेकिन कार्पोरेशन सरकारी अस्पतालों में पूरी सप्लाई ही नहीं दे पा रहा है तो फिर होम आइसोलेशन वालों को देने का आदेश केवल सरकार का मात्र दिखावा है।
अधिकांश जिलों के जिला अस्पतालों में मरीजों को देने के लिये पूरी दवा सप्लाई नहीं हो रही है तभी तो जिलाधिकारी उरई को पत्र लिख कर कार्पोरेशन से इन दवाओं को उपलब्ध कराने के लिये कहना पड़ रहा है।
नहीं हो रहे टेस्ट,एन्टीजेन किट की सप्लाई भी नही कर रहा है कार्पोरेशन
हर रोज सरकार का बयान आ रहा है कि प्रदेश में कोरोना का संक्रमण घट रहा है और यह सही भी है क्योंकि कार्पोरेशन की महिमा से टेस्ट हो ही नहीं रहे हैं और वो इसलिये कि सूत्र बता रहे हैं कि कार्पोरेशन एन्टीजेन किट की सप्लाई नही कर रहा है इस कारण टेस्टिंग पर असर पड़ा है।
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स्वास्थ्य विभाग से अरबों रूपये लेकर भी कार्पोरेशन ने नहीं की दवा खरीद की पहले से तैयारी
कार्पोरेशन को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग का वर्ष 20-21में दवा मद का 100% और 21-22में 80% बजट आवंटित हो गया है यानी कई सौ करोड़ लेकिन कार्पोरेशन के अधिकारी कमीशन के फेर में जिलों में दवाओं के लिये बिना मानक पूरा किये जल्दबाजी में ड्रग वेयर हाउस बनाने और कमीशन वाली दवाओं की खरीद में ज्यादा पैसा और समय लगाया। जुबली पोस्ट ने तथ्य सहित इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था लेकिन कार्पोरेशन के अधिकारियों पर शासन के दरबारी अधिकारियों पर वरदहस्त होने से कोई कारवाई नहीं की गई।
जब पहले ही पता चल गया था कि कोविड की सेकेण्ड वेभ आने वाली है तब भी स्वास्थ्य विभाग का अरबों रूपये दबाये रखने वाला कार्पोरेशन अब तक दवाओं की इतनी खरीद नहीं कर पाया है कि अस्पतालों की आपूर्ति सही हो सके।
ड्रग वेयर हाउस पड़े हैं खाली ,नहीं मिल रहे लाजिस्टिक
कई जनपदों के फार्मेसिस्ट नाम न छापने की शर्त पर बताया कि UPMSCL कोई लॉजिस्टिक नही दे रहा है,जनपदीय ड्रग वेयर हाउस पर बैलेंस नही है,कोई जिम्मेदार फ़ोन नही उठा रहा, हॉस्पिटल्स में कोरोना संबंधी रोगियों की भरमार है,चिकित्सको और कर्मियों की सुरक्षा हो तो कैसे,न तो मास्क और ग्लव्स की सप्लाई है और न ही सैनिटाइजर की,80%बजट upmscl को ट्रांसफर की बात बजट सेक्शन से कहा जा रहा है,अब व्यवस्था हो तो कैसे,अतिरिक्त बजट भी नही मिल रहा,क्या किया जाए,जनपदों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
देखना है कि सरकार में बैठे दरबारी अफसर अभी भी मुख्य मंत्री को सही स्थिति से अवगत कराकर मेडिकल कार्पोरेशन के अधिकारियों पर कारवाई करते हुए दवाओं और लाजिस्टिक सामानों की आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए इंजे रेमडेसिवीर की कालाबाजारी पर रोक लगायेंगे या फिर जनता को यूं ही मरने के लिये छोड़ देंगे।