रूबी सरकार
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुए लगभग डेढ़ साल होने को है, लेकिन पार्टी में चल रही गुटबाजी के कारण प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला अभी तक नहीं हो पाया है। कमलनाथ मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की दोहरी भूमिका में हैं। हालांकि वे स्वयं ही अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश कर चुके हैं।
इधर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद की लड़ाई खुद की पार्टी में लड़ने को मजबूर दिख रहे हैं। उन्होंने कमलनाथ सरकार में अपने कई चेहरों को काबीना मंत्री बनवाया है। लेकिन वे अपनी हरकतों से सिंधिया की छवि खराब ही कर रहे हैं।
भले ही सिंधिया खुलकर न बोले, लेकिन इन हरकतों से वे असहज महसूस करते हैं। सिंधिया की कृपा पर मंत्री बने इमरती देवी व प्रद्युम्न सिंह तोमर की बयानबाजी से कभी-कभी तू-तू- मैं-मैं की स्थिति पैदा हो जाती है। जिससे सिंधिया परेशान भी रहते हैं।
प्रदेश प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया को गुटों व धड़ों में बंटी कांग्रेस में समन्वय स्थापित करने के लिए हाईकमान के निर्देष पर एक कमेटी गठित करनी पड़ी, जिसके अध्यक्ष वे स्वयं हैं। बाबरिया को मंत्रियों के बयानबाजी और उनकी महत्वाकांक्षाओं के चलते उत्पन्न हुए हालतों में समन्वय स्थापित करना है। प्रायः यह देखने में आया है कि मंत्रिमंडल के सदस्यों को बाबरिया की दी गई नसीहत से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है।
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राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा आम है, कि आखिरकार सिंधिया को पार्टी के अंदर क्या जिम्मेदारी दी जाती है। वैसे सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए एक सशक्त दावेदार के रुप में उभरे हैं, क्योंकि भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता को उखाड़ने के लिए कांग्रेस ने जो दो चेहरे आगे किये थे, उनमें कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। हालांकि पर्दे के पीछे से प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करने तथा अलग-अलग गुटों में बंटे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का काम राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने किया था। उनमें उत्साह उन्होंने ही भरा था। जिससे मध्यप्रदेश कांग्रेस ने सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली।
कमलनाथ की ताजपोशी मुख्यमंत्री के रुप में हो चुकी है और अब कांग्रेस हाईकमान को सिंधिया और दिग्विजय सिंह की भूमिकाओं के बारे में अपने पत्ते खोलने हैं। जो राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन से अधिक साफ होगा। जहां तक राज्यसभा की उम्मीदवारी का सवाल है, तो दोनों में से किसी को भी नजरअंदाज करना कांग्रेस हाईकमान के लिए मुश्किल होगा।
सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने को लेकर उनके समर्थक लम्बे समय से मांग कर रहे हैं। इनमें महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री तुलसी सिलावट, राजस्व एवं परिवहन मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के नाम उल्लेखनीय हैं।
जहां तक समर्थकों की बयानबाजी का सवाल है उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि केवल उनकी मांग से सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनेंगे, बल्कि यह करने का काम कांग्रेस हाईकमान के पास सुरक्षित है। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी जैसे नेता शामिल हैं। सिंधिया स्वयं गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं।
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कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी बताते हैं, कि सिंधिया एक ऐसे राजनेता हैं जो कांग्रेस पार्टी के लिए अखिल भारतीय स्तर पर बहुत श्रम करते हैं। बदले में वह राजनीतिक कद व पद की परवाह नही करते। उनका मूल उद्देश्य कांग्रेस के मंच से जनता की सेवा करना है। तभी तो उन्होंने चुनाव के समय प्रदेश की जनता को वचन-पत्र के जरिये किये गये वादे को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव डाला था। वे देश व प्रदेश का विकास चाहते है और ऐसे राजनेता किसी भी राजनीतिक दल के लिए पूंजी हैं।
लेकिन इन दिनों सिंधिया प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के अंदर स्वयं की लड़ाई अकेले लड़ते नजर आ रहे हैं और उनके समर्थन से जो लोग मंत्री बने हैं उनमें इतनी क्षमता नहीं है, कि वे सिंधिंया की राजनीति को आगे ले जायें।
फिलहाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ-साथ यहां कांग्रेस कोटे से दो नेता राज्यसभा जा सकते हैं और इसके लिए भी जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है। बीते दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह के सुपुत्र अजय सिंह ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आड़े हाथों लेते हुए अपनी विधानसभा चुनाव में हार का ठीकरा उन पर फोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि मैं चुनाव के दौरान कह रहा था, कि आप लोग सक्रिय हो जाये, क्योंकि धोखा हो सकता हैं। लेकिन आप लोग कहते रह गये, कि सब ठीक है। हार के कारण मैं सरकार से बाहर हूं। अब तो हमारी अपनी ही सरकार में सुनवाई नहीं हो रही। अजय सिंह भाजपा के शासन काल में प्रतिपक्ष के नेता रह चुके हैं। एकाएक अजय सिंह का इस तरह सक्रिय होना, यह माना जा रहा है कि वे भी राज्यसभा सीट के दावेदार हैं। आने वाले दिनों में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि कांग्रेस हाईकमान राज्यसभा के दो सदस्यों के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए किसे चुनती है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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