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बीजेपी के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने हैं कई चुनौतियां

जुबिली न्यूज़ डेस्क

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद की जगत प्रकाश नड्डा (जेपी नड्डा) की ताजपोशी हो गई है। नड्डा निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष चुने गए हैं। जेपी नड्डा ऐसे समय में पार्टी के अध्यक्ष बने हैं जब पार्टी अपने सबसे अच्छे दौर पर पहुंचकर अब कई चुनौतियों का सामना कर रही है।

एक ओर बीजेपी के हाथों से राज्यों की सत्ता निकलती जा रही है, वहीं दूसरी ओर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध ने विपक्ष में जान फूंक दी है। साथ ही उनके सामने बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह की सियासी सूझबूझ की तुलना में खुद को साबित करने की भी चुनौती होगी।

बता दें कि जेपी नड्डा तीन साल तक इस पद पर रहेंगे। इस दौरान दिल्ली के बाद बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु समेत कई बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, जो उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रीती सिंह की माने तो नड्डा के सामने इन सभी चुनौतियों के साथ ही दो पॉवर सेंटर को मैनेज करने की भी चुनौती रहेगी। दरअसल उन्हें मोदी-शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच सामंजस्य बनाकर भी रखना होगा।

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2014 में ही बन जाते अध्यक्ष

हिमाचल प्रदेश में भाजपा के नेता रहे जेपी नड्डा को केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह साल 2010 में पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में लेकर आए थे। साल 2014 की ही बात करें तो नड्डा राजनाथ सिंह की जगह भाजपा अध्यक्ष बनने ही वाले थे मगर अमित शाह उनकी जगह भाजपा अध्यक्ष बनाए गए।

इसके बाद जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तब नड्डा केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। इसके बाद वो भाजपा की संसदीय समिति में भी शामिल किए गए, जो पार्टी मामलों में फैसले लेने वाली सबसे बड़ी बॉडी है। नड्डा केंद्रीय चुनाव समिति के भी सदस्य हैं जो लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव के लिए अंतिम निर्णय लेती है।

यूपी में निभाई बड़ी भूमिका

जेपी नड्डा को अमित शाह ने लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी की जिम्मेदारी सौंपी, जहां उन्होंने गुजरात के पूर्व मंत्री गोरधन जाडफिया के साथ काम किया। यहां उन्हें खासी कामयाबी मिली और पचास फीसदी से अधिक वोटों के साथ पार्टी 80 में से 64 सीटों जीतने में कामयाब रही।

एबीवीपी के साथ की राजनीतिक पारी की शुरुआत

खास बात है कि नड्डा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत पटना यूनिवर्सिटी में एबीवीपी के साथ की। तब उनके पिता इसी यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर थे। साल 2010 में हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने कैबिनेट मंत्री रहे नड्डा ने खुद अलग कर लिया और दिल्ली में भाजपा महासचिव बनाए गए। हालांकि एक सच्चाई यह भी उन्होंने धूमल के साथ मतभेदों से चलते मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया था। 2012 में वो हिमाचल प्रदेश से निर्विरोध राज्य सभा सांसद चुने गए और सात सालों में ही आरएसएस का यह नेता अपने संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाने लगा। नड्डा की इन्ही खूबियों के देखते हुए उन्हें भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।

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पटना में जन्मे नड्डा हिमाचल प्रदेश के ब्राह्मण परिवार से हैं। वो कॉन्वेंट एजुकेटेड राजनेता हैं जिन्होंने सिर झुकाए संगठन के नेताओं के निर्देशों का पालन किया। उनकी पत्नी डॉक्टर मल्लिका नड्डा हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। नड्डा साल 1977 में पटना यूनिवर्सिटी में हुए छात्र चुनाव में सचिव चुने गए। उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में लॉ दाखिला लिया और साथ ही साथ खुद को एबीवीपी, आरएसएस की छात्र शाखा के साथ जोड़े रखा। खास बात है कि उन्हीं के नेतृत्व में एबीवीपी ने पहली बार 1984 के छात्र चुनाव में एसएफआई को एचपीयू में हराया और छात्र संघ अध्यक्ष बने। 1986 से 1989 तक वो एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे।

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नड्डा के नेतृत्व की खासियत देखते हुए साल 1991 में उन्हें भाजपा की यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। तब उनकी उम्र 31 साल थी। इसके बाद साल 1993 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी आलाकमान ने उन्हें टिकट दिया। पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में आए नड्डा ने राज्य में भाजपा विरोधी लहर के बावजूद बिलासपुर से जीत दर्ज की। तब उस चुनाव में भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज नेता हार गए थे। दिग्गजों की हार के चलते नड्डा को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भाजपा ने विपक्ष का नेता बनाया।

साल 1998 में नड्डा एक बार फिर बिलासपुर से जीते और प्रेम कुमार धूमल की सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। हालांकि 2003 में वो चुनाव हाए मगर 2007 में एक बार फिर जोदार वापसी की और एक बार फिर धूमल सरकार में मंत्री बनाए गए। बाद में सीएम धूमल के साथ टकरार के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया। साल 2010 में राष्ट्रीय राजनीति में आए और तभी से केंद्र की राजनीति में हैं।

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