सुरेंद्र दुबे
झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में 13 सीटों के लिए 30 नवंबर को मतदान हुआ। दूसरे चरण का मतदान सात दिसंबर, तीसरे चरण का मतदान 12 दिसंबर, चौथे चरण का मतदान 16 दिसंबर तथा 20 दिसंबर को पांचवे चरण की वोटिंग होगी। 23 दिसंबर को मतगणना होगी और इसी दिन पता चल जाएगा कि झारखंड के भाजपाई मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी कुर्सी बचा पाएंगे कि नहीं। ये भी पता चल जाएगा कि भाजपा का कमल कीचड़ में और कितने नीचे धंस गया है।
भाजपा जैसा कि हर चुनाव में करती है, उसने यहां भी 81 सदस्यीय विधानसभा में 65 प्लस सीट का लक्ष्य निर्धारित किया है। सही मायने में कहे तो 65 से अधिक सीटें जीतने की डींग हांकी है। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में भी इसी तरह की डींगे हांकी गई थी। पर हुआ क्या यह सबको मालूम है। जो हुआ उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या झारखंड में बीजेपी महाराष्ट्र की दुर्गति को प्राप्त होगी?
हरियाणा की चर्चा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वहां भले ही दुष्यंत चौटाला की कृपा से बीजेपी ने किसी न किसी तरह सरकार बना ली। हम यहां दुष्यंत चौटाला के समर्थन के बदले चुटकी बजाते हुए अजय सिंह चौटाला को शपथ ग्रहण के दिन ही जेल से पेरोल पर रिहा कराने की भी चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि जब इसकी चर्चा करेंगे तो फिर हमें कहना पड़ेगा कि यह राजनैतिक भ्रष्टाचार था। अब जब इस तरह की कारगुजारियों को भाजपा बड़ा नैतिक व राष्ट्रवादी काम समझती है तो इसकी चर्चा कर बिला वजह जनता का कीमती समय क्यों नष्ट किया जाए।
पर महाराष्ट्र में घटे राजनैतिक घटनाक्रम की चर्चा तो करनी ही पड़ेगी। महाराष्ट्र में एक महीने तक चले राजनैतिक नाटक के बाद भाजपा वहां सरकार नहीं बना पाई। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने भाजपा को ठेंगा दिखाते हुए सरकार बना ली। अब यहां ये चर्चा भी मौजूं है कि भाजपा ने किस तरह पहले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन को सरकार बनाने से रोकने के लिए आनन-फानन में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
जब गठबंधन ने अपनी खिचड़ी अच्छी तरह से पका ली तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने रात के अंधेरे में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी। वो रात घनेरी अंधेरी रात थी इसलिए बगैर कैबिनेट की बैठक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से कर दी।
कोविंद ने भी बगैर बत्ती जलाए ही राष्ट्रपति शासन हटाने की अधिसूचना जारी कर दी। लगता है इन्हीं दिनों के लिए सत्ताधारी दल बेरीढ़ के लोगों को राष्ट्रपति बनवाते हैं। ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं है। राष्ट्रपति भले ही संविधान का लिहाज न करें पर हमें तो संविधान का लिहाज करना ही पडेगा।
चलिए आगे बढ़ते हैं। विपक्षी गठबंधन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जिसने राज्यपाल को खुले मतदान के जरिए कैमरे की निगरानी में फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दे दिया। इस न्यायिक निर्देश के लिए भाजपा के लोग आज भी सुप्रीम कोर्ट को कोस रहे हैं। भारतवर्ष के नए चाणक्य नरेंद्र मोदी और शाह समझ गए कि खरीद-फरोख्त या सीबीआई और ईडी के जरिए रातों-रात बहुमत नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
वैसे हमारे देश में चन्द्रगुप्त मौर्य काल के तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य कौटिल्य को ही चाणक्य के रूप में जाना जाता हैं जो अर्थशास्त्र, राजनीति, अर्थनीति, कृषि व समाजनीति के बहुत बड़े विद्वान माने गए हैं और जिन्होंने स्वयं सत्ता पर बैठने के बजाए चंद्र गुप्त मौर्य को कुर्सी पर बैठाया था। पर आज के आधुनिक चाणक्य को न अर्थशास्त्र का पता है और न ही राजनीति का। देश की आर्थिक हालत जैसी है वह सबको पता है। राजनीति के स्थान पर माफियागिरी चल रही है।
हम विश्लेषण कर रहे थे कि क्या झारखंड में भी भाजपा को महाराष्ट्र की तरह मुहं की खानी पड़ेगी। जहां तक हमें मालूम है झारखंड भारतवर्ष का ही एक राज्य है जहां चुनाव चल रहे हैं पर हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देख कर ऐसा नहीं लगता है कि झारखंड में चुनाव हो रहा है। टीवी मीडिया जिस ढंग से झारखंड पर चर्चा करने से शर्मा रहा है उससे लगता है कि वाकई सत्ता पक्ष के लिए स्थितियां शर्मसार करने वाली बनी हुई हैं।
कारण स्पष्ट है कि वहां भाजपा के विरूद्ध एक तरह से लहर सी चल रही है। लहर न भी माने तो हवा तो चल ही रही है। इसलिए मोदी और शाह दोनों के चेहरों पर हवाईयां उड़ रही हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने भाजपा को संकट में डाल दिया है। 30 नवंबर को हुए पहले चरण के मतदान में जिन 13 सीटों पर वोट पड़े उनमें से नौ से 10 सीटें कांग्रेस के खाते में जाने के सर्वे सामने आ रहे हैं।
अगर भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो महाराष्ट्र की तरह झारखंड में भी उसे झारखंड मुक्त मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन से मोर्चा लेना पड़ेगा। हालांकि राज्यपाल वहां भी सरकार की सेवा के लिए मौजूद हैं पर अगर सीटें 42 के बजाए 25 से 30 पर ही अटक गईं तो फिर रघुवर दास को येन-केन-प्रकारेण मुख्यमंत्री बनवाना बीजेपी के चाणक्य द्वय के लिए मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि रफूगर चाहे जितने सिद्धहस्त हों पर वह रफू के बजाए प्योंदा तो लगा सकते हैं पर नया कपड़ा बुनकर नहीं तैयार कर सकते। सारे देश की निगाहें झारखंड पर लगी हैं तथा शाह और मोदी भी टकटकी लगाए देख रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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