प्रोफेसर रवि कांत उपाध्याय
जापानी मस्तिष्क ज्वर जापानीज एन्सेफैलाइटिस विषाणु से संक्रमित मच्छरों क्युलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस के काटने से होता है। यह विषाणु का कुल फ़्लैवीविरिडी तथा वंश फ़्लैवीवायरस है। यह बच्चों में होने वाली एक प्राणघातक खतरनाक संक्रामक बीमारी है ज़ो 1 से 14 साल की उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेता है।
इस बीमारी को जापानी बुखार/ दिमागी बुखार/ चमकी बुखार के नाम से भी जाना जाता है, यह एक आमतौर पर यह बीमारी ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों में वर्षा ऋतु में जुलाई से शुरू होती हैऔर इसका संक्रमण अगस्त , सितंबर और अक्टूबर माह में बिहार और यूपी के कुछ जिलों में ज्यादा फैलता है।
इस रोग का प्रकोप ज्यादातर उन जगहों पर होता है, जहां धान के खेतों में अधिक समय तक पानी भरा रहता है। इस बीमारी का संक्रमण ज्यादा गंदगी वाली जगह पर पनपता है। जापानी एनसेफेलाइटिस की उद्भवकाल से लेकर संचयी कालवधि सामान्यतः 5 से 15 दिन होती है। लेकिन जापानी एनसेफेलाइटिस को सामान्यतया लक्षण पनपने एवं दिखने में एक से पांच दिन लगते हैं। जापानी एनसेफेलाइटिस से होने वाली औसत मृत्युदर 0.3 से 60 प्रतिशत है।
बीमारी से प्रभावित राज्य एवं अंतर्देशीय क्षेत्र
पिछले दो दशकों में इस बीमारी के प्रकोप ने उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में एवं बिहार में कई बार इस हाहाकार मचाया है तथा हजारों बच्चों की मौत का कारण बना है। वैसे तो दिमागी बुखार देश के 17 राज्यों के लगभग 171 ज़िलों में फैला है लेकिन पूरे देश में होने वाले कुल एईएस व जेई के मामलों में से 60 फीसदी विशेषतया पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बस्ती मंडल से होते हैं।
पिछले वर्ष देश के 20 राज्यों के 178 जिले दिमागी बुखार के प्रकोप की चपेट में आए थे। ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, पंजाब, त्रिपुरा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल। वर्षा ऋतु में यह संक्रमण अधिक आर्द्रता/नमी वाले जलवायु क्षेत्रों प्रमुखतया दक्षिण- पूर्वी एशिया और पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में पाया जाता है।
कैसे फैलता है जापानी एनसेफेलाइटिस का संक्रमण
जापानी बुखार का वायरस सूअर में पाया जाता है और मच्छर सूअर को काटते हैं और संक्रमित हो जाते हैं। मच्छर मानव का खून पीते हैं और मच्छर की लार के माध्यम से यह मानव में पहुँच जाता है। फिर यह वायरस संक्रमित रोगी से मच्छरों द्वारा स्वस्थ् व्यक्ति में पहुंच जाता है।
वर्षा के मौसम में अधिक जल भराव के कारण एकत्रित जल में मच्छर क्युलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस प्रजनन और विकास बड़ी तेजी से करते हैं। तथा नए संतति मच्छरों के झुंड के झुंड पैदा हो जाते हैं जो बच्चों एवं वयस्क लोगों को काटते हैं। और इससे वायरस संक्रमण फैल जाता है।
जापानी एनसेफेलिटिस वायरस पालतू सूअर और जंगली पक्षियों के रक्त प्रणाली में परिवर्धित होते हैं। शहरी क्षेत्रों में जापानी एनसेफेलाइटिस सामान्यतः नहीं होता है। इस रोग की अधिक संभावना घूमने आने वाले पर्यटकों, सैनिकों, किसानों , मजदूरों एवं घर के बाहर खुले में खेलने वाले छोटे बच्चों में ज्यादा होती है।
जापानी एनसेफेलाइटिस के लक्षण
इस बीमारी का प्रकोप खासतौर से बच्चों पर होता है। इस बीमारी में शुरुआत में तेज बुखार आता है। इसके बाद बच्चों के शरीर में ऐंठन, गर्दन में जकड़न शुरू हो जाती है। इसके अन्य लक्षण हैं सिरदर्द, कमजोरी, उल्टी होना, हमेशा सुस्त रहना, भूख कम लगना, अतिसंवेदनशील होना है।
ये भी पढ़े : भारत में कोरोना को रिकवरी रेट से मिली कड़ी चुनौती
ये भी पढ़े : लखनऊ वासी हो जाएं अलर्ट, कोरोना के बीच नए संकट ने दी दस्तक
इस बीमारी के मरीज़ों में दिमाग में सूजन पैदा होने से ऑक्सिजन की बहुत जरूरत होती है और ब्लड शुगर लो (हाइपोग्लाइसीमिया) हो जाता है। शरीर में पानी और सोडियम की भी कमी हो जाती है। बच्चे तेज बुखार की वजह से बेहोश हो जाते हैं तथा उनका तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) काम करना बंद कर देता है।और उन्हें दौरे भी पड़ने लगते हैं। उनके जबड़े और दांत कड़े हो जाते हैं।
बुखार के साथ ही घबराहट भी शुरू होती है और कई बार कोमा में जाने की स्थिति भी बन जाती है। बच्चों में इम्युनिटी कम होती है और अगर तेज बुखार से पीड़ित बच्चों को सही वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता है, तो उनकी मौत हो जाती है। इस बीमारी के 30 प्रतिशत मामलों में मरीज़ की जान चली जाती है।
बचाव और रोकथाम के उपाय
आवश्यक स्वच्छता एवं शुद्ध पेयजल की उपलब्धता
मच्छरों से बचाव के लिए घर के आसपास पानी न जमा होने दें। अत्यधिक बरसात के कारण जगह जगह जल भराव को समाप्त करने के लिए जल निकासी के आवश्यक प्रबन्ध सुनिश्चित किया जाने चाहिए। गांवों में नालियों की साफ-सफाई कराएं। व्यापक स्तर पर स्वच्छता अभियान चलाया जाना चाहिए।
गंदे पानी के संपर्क में आने से बचना चाहिए। गंदगी बीमारी को बढ़ाने में सहायक होती है। और इसके कारण बीमारी का प्रकोप बढ़ता है। इसलिए मानव बस्तियों में साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सुअर जापानी एनसेफेलाइटिस विषाणु के संग्रही पोषद होते हैं। इसलिए सुअर बाड़ों पालन मानव बस्तियों से दूर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
खुले में शौच से मुक्ति अभियान को शत-प्रतिशत सुनिश्चित किया जाए। जब तक खुले में शौच बंद नहीं होगा तब तक इस बीमारी से निजात नहीं पाया जा सकता है। मानव बस्तियों में स्वच्छ एवं शुद्ध पेयजल की उपलब्धता आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त संख्या में हैण्डपम्प लगने चाहिए। उथले हैण्डपम्पों को चिन्हित करके उनकी गहरी रिबोरिंग तथा मरम्मत का कार्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
मच्छरों का प्रभावी नियंत्रण
केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत संचारी रोग फैलाने वाले मच्छरों का प्रभावी नियंत्रण अति आवश्यक है। इसलिए संक्रमित मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव नियमित रूप से किया जाए। मच्छररोधी लेप आदि का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए ताकि मच्छरों से बचाव किया जा सके।
रात में सोने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें, बच्चों को पूरे कपड़े पहनाएं जिससे उनकी त्वचा पूरी ढकी रहे। ज्वर प्रभावित क्षेत्रों के झीलों, तालाबों, नहरों, टैंकों तथा धान की खेतों में मच्छरों के लार्वा का भक्षण करने वाली छोटी मछली गैम्बुसिया एफिनिस को वृहद पैमाने पर छोड़ देना चाहिए।
ये भी पढ़े : ब्यूबोनिक प्लेग: मानव इतिहास में सबसे खतरनाक संक्रामक महामारी
ये भी पढ़े : आईएमए ने माना, शुरू हो गया है कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन
इसी प्रकार कवकों विशेषकर लेप्टोलेजिना कॉडेटा तथा एफनोमाइसीस लेविस द्वारा मच्छरों का जैविक नियन्त्रण किया जा सकता है। ये दोनों परजीवी कवक मच्छरों के लार्वा को नष्ट कर देते हैं। जल में उगने वाली एजोला पिन्नेटा नामक वनस्पति मच्छरों के प्रजनन को रोकने में सहायक होती है।
अतः पूर्वी उत्तर प्रदेश के धान के खेतों में एजोला पिन्नेटा वनस्पति को अनिवार्य रूप से उगाना चाहिए जिससे मछरों के प्रजनन को रोका जा सके। यह शाकीय वनस्पति धान फसल के लिए जैविक खाद का भी काम करती हैं। जल-जमाव को रोकने के लिए जल प्रबन्धन पर विशेष ध्यान देना चाहिए । नहरों में जमा होने वाले गाद की समय-समय पर सफाई होती रहनी चाहिए।
इसी के साथ पिस्टिया लैन्सीओलेटा तथा साल्विनिया मोलेस्टा जलीय पौधों को वर्षा ऋतु में जलाशयों से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए। क्योंकि ये दोनों पादप प्रजातियाँ, क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छरों के प्रजनन में सहायक होते हैं।
जन जागरूकता
तराई क्षेत्र में आने वाले हाई रिस्क गांवों में स्कूली बच्चों एवं उनके अभिभावकों, आम नागरिकों को दिमागी बुखार संचारी रोग के नियंत्रण के सम्बन्ध में जागरूक करने के लिए जन जागरूकता अभियान व्यापक पैमाने पर चलाया जाए। रोगी की उचित देखभाल करनी चाहिए तथा उसे पूरा स्वस्थ होने तक कुछ हफ्तों का बेडरेस्ट देना चाहिए।
रोगी को स्वस्थ और पौष्टिक आहार तथा तरल पदार्थों का उपभोग करना चाहिए। कुपोषण से बीमारी चरम पर पहुंचती है। इसलिए बारिश के मौसम में बच्चों को बेहतर खान-पान देना चाहिए।
खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, विहार, झारखंड, असम एवं पश्चिम बंगाल में धान की कम जल की आवश्यकता वाली प्रजातियों की खेती पर विशेष बल दिया जाना चाहिए जिससे खेत में अतिरिक्त जल-जमाव को रोका जा सके।
मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित क्षेत्रों में वाणिज्यिक फसलों जैसे गेंदा, एलोवेरा, हल्दी, शतावर, गिलोय इत्यादि की खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि इन पौधों में मच्छररोधी गुण पाये जाते हैं। गेदें की खेती से न सिर्फ बीमारी के वाहक मच्छरों के नियंत्रण में सहायता मिलेगी बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
व्यापक टीकाकरण
इस गंभीर बीमारी से निपटने के लिए खास कर 1 से 14 साल की उम्र के बच्चों का व्यापक टीकाकरण अति आवश्यक है। जापानी एनसेफेलाइटिस से बचने के लिए के कुछ कारगर टीके मौजूद हैं जियारो, जापानी एनसेफेलाइटिस टीका एनसीवैक, एस-ए14-12-2 सिमेरा-वैक्स, और आइसी। टीका भविष्य में होने वाले “हमले” के खिलाफ प्रतिरक्षी तंत्र को प्रेरित करते हैं।
टीका वायरस/पैथोजन के खिलाफ एंटीबॉडीज का निर्माण करता है। टीकाकरण से बिना बीमार हुए रोग के खिलाफ बच्चों में प्रतिरक्षा उत्पन्न हो जाती है। इस बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती बच्चों को समुचित इलाज की व्यवस्था मुहैया होनी चाहिए।
(लेखक जंतु विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं।)