जुबिली न्यूज डेस्क
एक वक्त था कि मजदूरों को कभी छुट्टी मिलती ही नहीं थी। वह महीने के 30 दिन काम करते थे। समय बदला तो हफ्ते में एक छुट्टी फिर दो छुट्टी । हालांकि अभी भी कई देशों में बहुत कम क्षेत्र में दो दिन के वीकेंड का प्रावधान है।
फिलहाल अब एक नये आइडिया पर काम हो रहा है। हफ्ते में चार दिन काम और तीन दिन आराम। कामकाजी लोगों को यह सुनकर काफी अच्छा महसूस हो रहा होगा। जी हां, फिलहाल इस नये आइडिया पर जापान में काम हो रहा है। जापान में इसे लागू करने के बारे में सोचा जा रहा है।
दरअसल कोरोना महामारी की वजह से पैदा हुए हालात के बीच जापान में नए वर्किंग कल्चर की मांग उठ रही है। जापान की संसद इस बारे में बहस कर रही है कि क्या कंपनियों को अपने कर्मचारियों को चार दिन काम और तीन दिन के वीकेंड का ऑफर देना चाहिए। उम्मीद है कि इससे कर्मचारियों पर काम का दबाब घटेगा और “कारोशी” का जोखिम कम होगा। जापानी भाषा में इस शब्द का इस्तेमाल अत्यधिक काम के कारण होने वाली मौत के लिए होता है।
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दरअसल जापान में कर्मचारी ऑफिस में बहुत देर तक काम करने और अपनी सालाना छुट्टियां ना लेने के लिए मशहूर हैं। कर्मचारियों को लगता है कि अगर छुट्टी ले ली तो इससे ऑफिस के दूसरे साथियों को परेशानी हो सकती है, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में कई चीजें बदल रही हैं और नए बदलावों की मांग उठ रही है।
जापानी संसद में सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद कुनिको इनोगुची ने प्रस्ताव रखा है कि पारंपरिक तौर पर सोमवार से शुक्रवार तक पांच दिन काम करने की बजाय कर्मचारियों को सिर्फ चार दिन ही काम करने की अनुमति दी जाए।
सांसद इनोगुची के प्रस्ताव पर अमल करने के लिए सरकार की तरफ से वित्तीय समर्थन की जरूरत होगी, खासकर शुरुआती चरण में सिर्फ चार दिन काम शुरू करने वाली कंपनियों के लिए।
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इस प्रस्ताव की राह में सबसे बड़ी बाधा बुजुर्ग और पारपंरिक सोच रखने वाले मैनेजर लेवल के कर्मचारी हो सकते हैं, जिन्होंने अपना खून पसीना बहाकर जापान को आर्थिक पावरहाउस बनाया है। कम दिन काम करने प्रस्ताव पर उन्हें लगेगा कि नई पीढ़ी कंपनी और देश के प्रति अपनी वचनबद्धता को लेकर लापरवाही दिखा रही है।
हालांकि कई कंपनियों में पहले ही फ्लेक्सिबल वर्किंग सिस्टम पर अमल हो रहा है, लेकिन कोरोना महामारी ने जापान के कॉरपोरेट कल्चर में बड़े बदलाव के लिए जारी बहस को गंभीर बना दिया है।
हालांकि इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि तीन दिन के वीकेंड के प्रस्ताव को कर्मचारियों और कंपनियों की तरफ से समर्थन मिलेगा।
ओसाका की हनान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर तेरुओ साकुरादा ने कहा, “मैं तो कहूंगा कि कंपनियों की तरफ से इसकी संभावना दिए जाने की बजाय इसे अनिवार्य बनाया जाए।”
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प्रोफेसर साकुरादा के मुताबिक, “जापान का आर्थिक तंत्र बहुत ज्यादा दबाव में है। महामारी ने स्थिति को और खराब किया है। हमें जरूरी बदलाव करने होंगे ताकि यह पर्याप्त मजबूत बना रहे और भविष्य में कंपनियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।”
हाल के दशकों में जापानी अर्थव्यवस्था का फोकस मैन्युफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर और फाइनेंशियल सर्विसेज की तरफ गया है। यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि जापान की मौजूदा 12.6 करोड़ की जनसंख्या इस सदी के आखिर तक घटकर 8.3 करोड़ हो सकती है।
बदलाव की जरूरत
अप्रैल 2019 में लागू एक कानून के अनुसार कोई भी कंपनी महीने में अपने कर्मचारी से 100 घंटे से ज्यादा का ओवरटाइम नहीं करा सकती है। इसका उल्लंघन करने पर कंपनियों पर जुर्माना लगाया जाता है। आलोचक कहते हैं कि इस कानून में कई खामियां हैं। साकुरादा को उम्मीद है कि काम के दिनों को घटाकर इन्हें दूर किया जा सकता है।
माइक्रोसॉफ्ट जापान और मिजुहो फाइनेंशियल ग्रुप ने एक स्कीम शुरू की जिसके तहत कर्मचारी काम के दिनों में से कोई एक दिन चुन सकते हैं जिस दिन वे काम नहीं करना चाहते।
वहीं कपड़ों के कारोबार में लगी कंपनी फास्ट रिटेलिंग ने 2015 में सबसे पहले अपने कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन काम करने का ऑफर दिया था। कंपनी की प्रवक्ता पेई ची तुंग कहती हैं, “हमने कई बदलाव किए हैं ताकि हमारे कर्मचारी अच्छे माहौल में काम कर पाएं क्योंकि हम अपनी प्रतिभाओं को बनाए रखना चाहते हैं।”