न्यूज डेस्क
भारत की आर्थिक मंदी के लिए जापान की आर्थिक पत्रिका निक्केई ने अपने एक लेख में मोदी सरकार पर निशाना साधा है। मैगजीन ने भारत की गिरती अर्थव्यवस्था के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार माना है। लेख में मोदी सरकार पर हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने का आरोप लगाया गया है।
पत्रिका ने अपने एक लेख में कहा है कि भले ही प्रधानमंत्री मोदी चुनाव जीतने में सक्षम रहे हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था पंगु हो गई है। अपने कॉलम में हेनी सेंडर ने लिखा है-पीएम मोदी ने 2014 में देश को गुजरात जैसी ग्रोथ देने का वादा कर सत्ता हासिल की थी। हालांकि नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लेने के चलते ग्रोथ की बजाय गिरावट देखने को मिली।
पत्रिका ने लेख में मोदी सरकार पर आर्थिक चुनौतियों से निपटने की बजाय हिंदुत्व के एजेंडे को ही और धार देने का आरोप लगाया।
लेख में लिखा गया है, ‘जनादेश का इस्तेमाल आर्थिक चुनौतियों से निपटने में करने की बजाय मोदी सरकार ने हिंदुत्व के एजेंडे को दोहरा कर दिया। देश की पहचान के केंद्र में हिंदुत्व को रखने की कोशिश करते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किया गया और नागरिकता कानून में संशोधन किया गया।’
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मैगजीन में लिखा है कि सरकार के तमाम फैसलों में बड़े सामाजिक बदलाव की बात की गई, लेकिन अर्थव्यवस्था के मसले को किनारे ही लगा दिया गया।
फूड कंपनी निस्सिन फूड्स के इंडिया ऑपरेशन हेड गौतम शर्मा के हवाले से मैगजीन ने लिखा कि भारत में मांग में तेजी से कमी आई है। ग्रामीण भारत की बात करें तो ट्रैक्टर से लेकर मैगी और शैंपू के पाउच तक की डिमांड कम हुई है।
शर्मा के अनुसार लोग तब उपभोग करते हैं, जब उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित लगे, लेकिन सरकार ने उनके भरोसे को खत्म कर दिया है।
आर्टिकिल में ऑटोमोबाइल सेक्टर से लेकर रियल्टी तक की बात करते हुए कहा गया है कि मंदी की स्थिति में लोग अपने कैश को निकालना नहीं चाहते। आर्टिकल में कहा गया है कि निवेशकों का भरोसा खो गया है और जीडीपी में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट की हिस्सेदारी निचले स्तर पर जा पहुंची है।
इतना ही नहीं आर्टिकल में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के लिए भी नोटबंदी को वजह बताया गया है। लेख में कहा गया है कि नवंबर, 2016 में ब्लैक मनी पर लगाम कसने के नाम पर कैश में 90 पर्सेंट हिस्सेदारी रखने वाले 500 और 1000 रुपये के नोटों की मान्यता खत्म कर दी गई थी। हालांकि इससे उलटा असर हुआ और कैश पर निर्भर रहने वाले भारतीयों के पास खर्च के लिए रकम की कमी हो गई। इसके अलावा विपक्षी पार्टियों के पास भी कैश की कमी देखी गई और उनके लिए देश की सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ना मुश्किल हो गया।
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