जुबिली न्यूज डेस्क
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हर साल तापमान में वृद्धि हो रही है। दुनियाभर के वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की जरूरत है, नहीं तो इसकी कीमत पूरी मानव जाति को चुकानी पड़ेगी।
तापमान में आ रही इस वृद्धि का सीधा असर आम लोगों के जनजीवन पर पड़ेगा। जिस रफ्तार से तापमान में यह बढ़ोत्तरी हो रही है, उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान, हीट वेव, शीत लहर जैसी घटनाओं का आना आम बात होता जा रहा है। जिसका सबसे ज्यादा असर आम जन पर ही पड़ रहा है।
तापमान को लेकर एक नई जानकारी सामने आई है। जनवरी 2021 इतिहास की 7वीं सबसे गर्म जनवरी थी। इस साल जनवरी का औसत तापमान सदी के औसत तापमान से 0.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
एनओएए के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल इनफार्मेशन द्वारा जारी रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है।
इतना ही नहीं अफ्रीका की बात करें तो उसके लिए जनवरी 2021, इतिहास की सबसे गर्म जनवरी थी तो उत्तरी अमेरिका के लिए यह दूसरी सबसे गर्म जनवरी थी।
इससे पहले जनवरी 2006 में वहां सबसे अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था। हालांकि इस साल की शुरुआत ला नीना के साथ हुई थी, बावजूद इसके तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
अफ्रीका में जनवरी 2021 का औसत तापमान साल 1910 से 2010 के औसत से 1.67 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया।
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इसके पहले साल 2010 में जनवरी का तापमान औसत से 1.62 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। जहां उत्तरी एशिया के अधिकतर भागों में तापमान सामान्य से कम था वहीं दक्षिण एशिया में यह सामान्य से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया है।
मालूम हो कि जनवरी 2020 इतिहास में अब तक की सबसे गर्म जनवरी थी, जब टेम्प्रेचर में आने वाली विसंगति सबसे ज्यादा 1.15 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड की गई थी।
इसके बाद जनवरी 2016 में 1.12 डिग्री सेल्सियस, 2017 में 0.98 डिग्री सेल्सियस, जनवरी 2019 में 0.94 डिग्री सेल्सियस, जनवरी 2007 में 0.92 डिग्री सेल्सियस, 2015 में 0.83 डिग्री सेल्सियस और जनवरी 2021 में 0.8 डिग्री रिकॉर्ड किया गया था।
यदि आर्कटिक में जमी बर्फ की बात करें तो इस वर्ष जनवरी में उसका विस्तार 83.7 लाख वर्ग किलोमीटर आंका गया है, जोकि 1981 से 2010 के औसत से 6.5 फीसदी कम है।
ऐसा 43 सालों के इतिहास में छठी बार हो रहा है जब जनवरी में इसका इतना कम विस्तार हुआ है। वहीं जनवरी 2021 में अंटार्कटिक में बर्फ का विस्तार करीब 29 लाख वर्ग किलोमीटर था, जोकि 1981 से 2010 के औसत से करीब 6.6 फीसदी कम है।
टैम्प्रेचर में हो रही इस वृद्धि से भारत भी अछूता नहीं है। हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि साल 2020 भारतीय इतिहास का आठवां सबसे गर्म साल था। इस वर्ष तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था।
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मालूम हो कि साल 2016 में अब तक का सबसे अधिक टैम्प्रेचर रिकॉर्ड किया गया था। जब टैम्प्रेचर साल 1980 से 2010 के औसत की तुलना में 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते देश में तापमान लगातार बढ़ रहा है।
यदि भारत में तापमान के बढऩे की रफ्तार को देखें तो अब तक के 12 सबसे गर्म साल हाल के पंद्रह वर्षों (2006 से 2020) के दौरान रिकॉर्ड किए गए थे।
क्या होगा इसका परिणाम
कुछ दिनों पहले यूएन द्वारा प्रकाशित “एमिशन गैप रिपोर्ट 2020” से पता चला है कि यदि टैम्प्रेचर में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। इसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।
ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है कि कभी दशकों में पड़ने वाला विकराल सूखा आज हर साल पड़ रहा है। इसी तरह बाढ़ और तूफानों का आना भी आम होता जा रहा है।
हम इन आपदाओं का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं, पर इसके असर को टाल नहीं सकते। डर है कि जिस तरह से टैम्प्रेचर में यह वृद्धि हो रही है, उसके कारण कहीं इंसानी महत्वाकांक्षा ही उसके विनाश का कारण तो नहीं बन जाएगी।