चंचल
जन्माष्टमी नही कहा , क्यों कि कृष्ण अजन्मा है , जो जन्म नही लेता , वह मृत्यु का वरण कैसे करेगा ? जो मरेगा नही वह जन्म कैसे लेगा । कृष्ण एक अवस्था है , एक सृजित भाव है वह सुषुप्ता अवस्था मे चला जाता है। जब व्यवास्था का पाप शिखर तक जा पहुंचता है तो कृष्ण प्रकट हो जाता है । व्यास चीख चीख कर बोल रहे हैं – यदा यदा ही धर्मस्य ।
कृष्ण शरीर नही है , शरीर उसके लिए एक आवरण है अलग अलग रूपों का , आकारों का , रंगों का चांद की तरह घटता बढ़ता रहता है । आज उसी कृष्ण का महोत्सव है । प्रथम सर्ग । भादों की काली रात में देवकी कारागार में एक पुत्र पाती हैं ।
जनमन में यह बात घर कर गयी है कि पापी कंस की क्रूरता की समाप्ति देवकी नंदन ही करेगा । कंस चाहता तो देवकी और वासुदेव को मार कर अकण्टक हो सकता था लेकिन मति और मद दोनो मिल कर अपनी अलग की सत्ता बना लेते हैं । परिस्थितियां अपना खेल शुरू कर देती हैं ।
जेल का दरवाजा खुला रह जाता है , पहरा नींद में है कृष्ण वासुदेव की गोद मे है । कृष्ण को जमुनापार सुरक्षित पहुचाना है । देवकी की गोद से उठा कृष्ण यसोदा की बाहों में जा रहा है ।
यमुना उफान पर है । काली रात , आसमान पर काले घने बादल , अटपटी अनजान डगर , सामने यमुना का शोर , वासुदेव के साथ चलता है जुगनुओं का जत्था , डगर दिखाते , चमकते उछलते जुगनुओं ने एक दूसरे के कान में कहा – वासुदेव से कभी कृष्ण पूछेगा – डगर कैसे पर किया था तात ? तब हम याद आएंगे । कृष्ण ने कहा होगा भादों की हर रात तुम्हारी होगी जुगनू ।
वासुदेव लडखडाये थे ,आगे खांई थी , बदरी हंसी थी बिजली की चमक ने जुगुओं से कहा दम्भ नही हम भी धन्य होंगे कृष्ण यात्रा के सहभागी बन कर । बदरी को घेर कर बादर भावुक हो उठा था आंखों से जल टपका कृष्ण के माथे पर जा गिरा। तड़की थी बिजली वासुदेव जमुना में खड़े हैं ।
भादो की काली रात कल की कथा लिख रही है कृष्ण गोबर्धन उठाकर इंद्र के घमण्ड को तोड़ेगा बादलों को मुक्त करेगा इन्द्रके जाल से और खुद मुक्त होगा माथे पर गिरे जलकण के प्यार और उल्लास से । लेकिन अभी यमुना भी तो हैं ।
वासुदेव ज्यों ज्यों कृष्ण को ऊपर उठा रहे हैं ,त्यों त्यों यमुना भी बढ़ रही हैं – है कृष्ण ! ऐसे कैसे पर होंगे , पैर तो छूने दो , कल जब कालिया नाग से विषाक्त होकर हम हेहोकर दूषित व्यथित होउंगी तो हमे तुम ही तो शुद्ध करोगे , इस कर्ज को चुकाने आओगे देवकी नंदन ! और जोर के उद्वेग ने यमुना को ऐसा ज्वार दिया कि वासुदेव जब तक कृष्ण को ऊपर उठाते कृष्ण का पैर जमुनाजल से भीग ही गया । तब यमुना को कल पड़ा और वासुदेव यमुना पार होकर गोकुल पहुंच ही गए ।
यह कृष्ण का प्रथम सर्ग है । कथा है । द्वापर से टहल रही है । हर भादों की सप्तमी कृष्ण जन्माष्टमी बन कर आ खड़ी होती है ।
कृष्ण हर पाप काल मे आता है बस आपको सचेत होकर कृष्ण बनना होता है । हमारी दिक्कत है हम कृष्ण का इंतजार करते हैं , कमबख्त कृष्ण तो कब से तुममे हैं सुषुप्ता जी उसे जागृत करो । ईश्वर ईश्वर भजे से , हरे हरे करने से पाप को और पुख्ता करते हो । ईश्वर तुम स्वयं हो ।
यह भी पढ़ें : मेरे जीवन को नए सबक दे गयी आजादी गौरव यात्रा
हमारी न मानो तो तुलसीदास से पूछ लो – ईश्वर अंश ,जीव अविनासी । तुम ईश्वर के अंश हो यानी स्वयं ईश्वर हो । और तो और दुनिया का सबसे सटीक व्याख्याता कबीर से सुन लो – कस्तूरी कुंडल बसे , मृग ढूंढे वन माहि । उठो । पाप के खिलाफ उठो ।
कृष्ण महोत्सव शुभ हो । कृष्ण को जिओ ।
(लेखक स्वतंत्र लेखन और चित्रकारी करते हैं)