सुरेंद्र दुबे
मुगल बादशाह जहांगीर ने फारसी ने कश्मीर के बारे में कहा था, ‘गर फ़िर्दौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त। इसका हिंदी में अर्थ होता है, ‘अगर इस धरती पर कहीं जन्नत है, तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है।‘
जाहिर है जहांगीर के जमाने से कश्मीर को भारत का जन्नत समझा जाता रहा है। विदेशियों के अपने अलग जन्नत होंगे पर आज हम सिर्फ भारत के जन्नत समझे जाने वाले कश्मीर की ही चर्चा करेंगे।
देश की आजादी के बाद कश्मीर का भारत में विलय हो गया और हमारा जन्नत कश्मीर तमाम नारकीय स्थितियों से रूबरू होता रहा। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया, जिसके तहत कश्मीर भारत का एक राज्य होते हुए भी विशिष्ट सुविधाओं वाला राज्य बन गया।
यह बात तत्कालिन जनसंघ को पसंद नहीं आई और उन्होंने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने की मांग शुरू कर दी। यही मांग बाद में भाजपा ने अपने एजेंडे में शामिल कर ली और नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की सरकार में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर कश्मीर को सेना के साए में तमाम प्रतिबंध लगाते हुए एक तरह से बेजुबान कर दिया। पहले कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जब आतंकवादी घटनाओं तथा पत्थरबाजों के कारण कश्मीर सुर्खियों में न रहता हो।
गव वर्ष 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी कर नरक से जन्नत बनाने का दावा किया था। कश्मीर में इस कदर सन्नाटा है कि पता ही नहीं चलता कि स्वर्ग में क्या हो रहा है। हमे खाली इतना मालुम है कि लोगों को सुरक्षा के नाम पर मूलभूत अधिकारों से वंचित कर इंटरनेट जैसी सुविधा से भी महरूम कर दिया गया है।
अब जब वहां से कोई खबर ही नहीं आती तो फिर लगता है कि जन्नत का दावा कहीं झूठा तो नहीं है। विपक्षी दलों ने बड़ी कोशिश की कि उन्हें कश्मीर जाकर हालात का जायजा लेने की छूट दी जाए। पर सरकार का मानना है कि अगर विपक्ष वहां गया तो जन्नत फिर नरक बन जाएगा, इसलिए किसी को वहां जाने की इजाजत नहीं दी गई।
वो कश्मीर जो हमारा आंतरिक मुद्दा था उसके वाकई पुन: स्वर्ग बन जाने का प्रमाण देने के लिए भारतीय राजनीतिज्ञों के बजाए विदेशी सांसदों तथा राजनयिकों का सहारा लिया जा रहा है। स्वर्ग में सब कुछ चकाचक है इसकी पुष्टि के लिए गत वर्ष 29 अक्टूबर को यूरोपियन सांसदों के एक दल को कश्मीर की सैर कराई गई, जिन्होंने भारत सरकार को यह सर्टिफिकेट दे दिया कि कश्मीर में सब चंगा सी।
भारतीय सांसद अपना सिर फोड़ते रहे पर उन्हें कश्मीर नहीं जाने दिया गया। यह दौरा ‘WESTT’ एनजीओ ने स्पॉन्सर किया था। इस एनजीओ को ब्रिटिश-भारतीय व्यवसायी मादी शर्मा संचालित करती हैं। यानी सरकार ने अपने सांसदों के बजाए एक एनजीओ को तरजीह दी। अब अगर लोग कह रहे हैं कि कश्मीर को जेल बना दिया गया है तो इसमें उनकी क्या गलती है।
यूरोपीय संघ के इस 27 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल ज्यादातर नेता अपने-अपने देश की राइट विंग पार्टियों के सदस्य थे। फ्रांस के 6 सांसद ले पेन की नेशनल फ्रंट, जबकि पोलैंड के 6 सांसद भी सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी धड़े से ही थे। प्रतिनिधिमंडल के सिर्फ 2 सदस्य गैर दक्षिणपंथी पार्टियों से थे। लगातार मांग के बावजूद न तो कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बहाल की गईं और न हीं शेष भारत को कश्मीर की असली स्थिति दिखाने की कोशिश की गई।
नारकी परिस्थितियों में रह रहे कश्मीरियों को जन्नत जैसा आनंद ले रहे दिखाने के लिए अमेरिका सहित 16 देशों के राजदूतों को कश्मीर की सैर कराकर अच्छी तस्वीर दिखाने का ईवेंट मैनेज किया गया। इस दल को सुरक्षाबलों से मिलवाया गया। जाहिर सुरक्षा बल यही कहेंगे कि कश्मीर फिर जन्नत बन गया है। कुछ पत्रकारों की भी भेंट कराई गई।
अब इस देश में भाजपा समर्थक बन चुकी मीडिया ने जाहिर है मोदी और अमित शाह की शान में कसीदे ही गढ़े होंगे। बाकी किन-किन से यह दल मिला इसका कोई खास ब्यौरा उपलब्ध नहीं है पर ये मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि इन लोगों ने भी कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने के बाद गुलशन-गुलशन फूल खिलने के ही दावे किए होंगे। जब तक भारतीय राजनीतिज्ञों को कश्मीर जाने की इजाजत नहीं होगी तब तक सरकार की नीयत पर भरोसा करना मुश्किल ही है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी को मौलिक अधिकारों का हनन मानते हुए सरकार से एक हफ्ते के भीतर पूरे प्रकरण की समीक्षा कर जवाब मांग लिया है। कोर्ट ने कुछ जरूरी सेवाओं को तुरंत इंटरनेट प्रतिबंधों से मुक्त करने का भी आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी जवाब देने को कहा कि जिन इलाकों में धारा 144 लागू है उसका कारण सहित स्पष्टीकरण दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने आज यह भी टिप्पणी की कि लगातार प्रतिबंध लगाना सत्ता का दुरुपयोग है। अब बचा ही क्या। मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है। तो यह मान लेना चाहिए कि कश्मीर के पुन: जन्नत हो जाने के दावे खोखले हैं।
अब जब कोर्ट ने ही मान लिया है कि कश्मीर में मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है तो विदेशी सांसदों और राजनयिकों की पिकनिक करा कर कश्मीर में सब चंगा सी, इसका ढोल पीटने की बात लोगों के गले नहीं उतरेगी। स्वर्ग की झूठी तस्वीरें कश्मीर के पुन: स्वर्ग हो जाने का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। ब्रांडिंग व ईवेंट मैनेजमेंट का अपना महत्व है पर कश्मीर में सब कुछ अच्छा है, ऐसा दिखना भी चाहिए।
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