जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले साल पांच अगस्त को जब भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर को लेकर जो ऐलान किया था उसने भारत का इतिहास और भूगोल, दोनों बदल दिए।
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया और स्वायत्तता खत्म कर दी और साथ ही इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया – जम्मू कश्मीर और लद्दाख। आज जम्मू और कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को हटा लिए जाने की पहली वर्षगांठ है।
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इस मौके पर गृहमंत्रालय ने भी तमाम उपलब्धियां गिनाई है। गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि लागू किया गया निवास का कानून जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के स्थानीय नागरिकों के हितों की रक्षा करता है। सरकारी भर्तियों के लिए बेसिक योग्यता को देखते हुए निवास प्रमाण पत्र बनाए जा रहे हैं।
वहीं जम्मू और कश्मीर की अर्ध-स्वायत्ता हटाए जाने की पहली वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले यानी मंगलवार को कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया गया।
प्रशासनिक अधिकारी जावेद इकबाल चौधरी ने बताया कि श्रीनगर में कुछ समूहों द्वारा पांच अगस्त को “काला दिवस” के रूप में मनाने की जानकारी मिलने के बाद शहर में कर्फ्यू लगाया गया। पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गाडिय़ां मोहल्लों से गुजरीं और सुरक्षाकर्मियों ने घर घर जा कर लोगों को घरों के अंदर ही रहने की चेतावनी दी।
सरकारी आदेश के अनुसार, कर्फ्यू मंगलवार और बुधवार को लागू रहेगा। सड़कों, पुलों और चौराहों पर स्टील के बैरिकेड और कंटीली तार लगा दिए गए। प्रशासन ने कफ्र्यू इसलिए लगाया क्योंकि उन्हें सूचना मिली है कि अलगाववादी और पाकिस्तान-प्रायोजित समूह पांच अगस्त को काला दिवस मनाने की योजना बना रहे हैं और उस दिन हिंसा और विरोध प्रदर्शन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
पिछले साल पांच अगस्त को ही सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। इलाके में पहले से मौजूद करीब पांच लाख सुरक्षाकर्मियों के अतिरिक्त वहां हजारों और सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए। वादी के 70 लाख लोगों को संपूर्ण सुरक्षा तालाबंदी में महीनों तक रहना पड़ा, आने जाने की आजादी को सख्ती से प्रतिबंधित कर दिया गया और सम्मलेनों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। लैंडलाइन, मोबाइल और इंटरनेट को महीनों तक बंद रखा गया।
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विशेष दर्जा हटाने के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विशेष दर्जे ने कश्मीर को “आतंकवाद, अलगाववाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं दिया था, लेकिन उनकी सरकार द्वारा लिए गए “ऐतिहासिक निर्णय” से इलाके में शांति और समृद्धि आएगी।
तब से वहां कई ऐसे कानून लाए गए हैं जिन के बार में स्थानीय लोगों का कहना है कि उनका उद्देश्य इस मुस्लिम-बहुल इलाके में जनसांख्यिकीय बदलाव लाना है।
पांच अगस्त 2019 के कदमों के बाद प्रशासन पर कश्मीर में महीनों तक सूचना का ब्लैकआउट और एक कड़ी सुरक्षा नीति लागू करने का आरोप लगा। हजारों कश्मीरी युवा, राजनेता और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया। सैकड़ों लोग अभी भी हिरासत में हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और पूर्व सांसद सैफुद्दीन सोज शामिल हैं।
सरकार के फैसले के बाद वादी में इंटरनेट भी बंद कर दिया गया था। चार महीने बाद इंटरनेट बहाल तो कर दिया गया है लेकिन सिर्फ 2जी पर। 4जी अभी भी प्रतिबंधित है और इस फैसले को अदालत में चुनौती दिए जाने के बाद भी सरकार ने अदालत में लगातार कहा है कि वादी में हालात अभी ऐसे नहीं हुए हैं कि 4जी इंटरनेट बहाल किया जा सके।
मार्च तक कुछ प्रतिबंधों में ढील दी गई थी लेकिन कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए तालाबंदी लागू कर दी गई और उसकी वजह से इलाके में आर्थिक और सामाजिक संकट और गहरा हो गया।