प्रमुख संवाददाता
नई दिल्ली. जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने एक बार दिल्ली के गरीब तबके का दिल जीत लिया. दिल्ली दंगों के दौरान बड़ी संख्या में ऑटो रिक्शा जला दिए गए थे. इन ऑटो रिक्शा चालकों को न सरकार से राहत मिली और न ही बीमा कम्पनियों से. ऑटो रिक्शा जल जाने से बेरोजगार हुए नौजवानों को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की दिल्ली इकाई ने ऑटो खरीदकर दिए हैं ताकि उनके घरों का चूल्हा जल सके.
जमीयत को यह फैसला इसलिए करना पड़ा क्योंकि बीमा कंपनियों ने दंगों में जलाए गए ऑटो का मुआवजा देने से इनकार कर दिया था. बीमा कंपनियों के नियमों में दंगा और प्राकृतिक आपदा से नष्ट हुई संपत्तियों के लिए अलग से बीमा कराना पड़ता है.
जमीयत ने इस तरह का पहला फैसला नहीं किया है इससे पहले भी वह इस तरह के कई फैसलों को अंजाम दे चुकी है. वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर दंगे में विस्थापित हुए लोगों को बसाने का काम भी जमीयत ने अंजाम दिया था.
वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर के कवाल इलाके में तीन युवकों की हत्या के बाद दो समुदायों के बीच शुरू हुआ विवाद दंगे में बदल गया था. इस दंगे के बाद हज़ारों लोग अपना घर छोड़कर पलायन को मजबूर हो गए थे. बाद में भीड़ ने खाली घरों में आगजनी की थी और संपत्तियों का काफी नुक्सान हुआ था. इस दंगे में करीब 60 लोगो की मौत हुई थी और करीब 40 हज़ार लोग घर छोड़कर दूसरी जगहों पर चले गए थे.
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जमीयत ने वर्ष 2019 में मुज़फ्फरनगर के बागोवाली गाँव में जमीयत कालोनी का निर्माण करवाया और जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी ने विस्थापित लोगों में से 85 लोगों को उनके घरों की चाबियां सौंपी. निजी स्तर पर देश में किसी भी संगठन की यह सबसे बड़ी मदद थी जिसमें 85 लोगों को बगैर कोई राशि खर्च किये हुए घर मिल गए थे.
जमीयत के बारे में
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द इस्लामिक विद्वानों का संगठन है. इस संगठन ने देश की आज़ादी के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर संघर्ष किया था. इस संगठन का मानना है कि देश तभी एक रह सकता है जब हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता बनी रहे. वर्ष 1945 में जब पाकिस्तान की मांग उठी थी तब जमीयत के शब्बीर अहमद उस्मानी के गुट ने पाकिस्तान का समर्थन किया था. पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान में भी जमीयत का गठन हुआ और वहन इसे जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नाम से जाना जाता है. जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का मकसद देश के सभी लोगों को संविधान के बताये नियमों के अनुसार चलाना है.