न्यूज डेस्क
संसद के उच्च सदन राज्यसभा ने जलियांवाला बाग के न्यास प्रबंधन से संबंधित जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक-2019 को अपनी मंजूरी दे दी। विपक्ष ने इस संशोधन का तीखा विरोध करते हुए सरकार पर इतिहास को नए सिरे लिखने के प्रति चेतावनी दी। विधेयक पर बहस के दौरान कांग्रेस, सपा, तृणमूल और सीपीएम समेत कई विपक्षी सदस्यों ने संशोधनों का विरोध किया।
इस संशोधन के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का न्यास के पदेन सदस्य होने का अधिकार समाप्त हो जाएगा। उसके स्थान पर लोकसभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े दल के नेता को सदस्य बनाया जाएगा।
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय मेमोरियल एक्ट 1951 के तहत मेमोरियल के निर्माण और मैनेजमेंट का अधिकार ट्रस्ट का है। इस कानून में ट्रस्टीज के चयन और उनके कार्यकाल के बारे में बताया गया है। लेकिन अब ऐसा हो नहीं पाएगा।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने विधेयक पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा कि सरकार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सभी शहीदों को सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह विधेयक इसी दिशा में एक कदम है।
विपक्ष की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग न्यास की स्थापना 1921 में की गई थी और इसमें जनता ने धन दिया था। वर्ष 1951 में नए न्यास का गठन किया गया और इसमें व्यक्ति विशेष को सदस्य बनाया गया और किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को इसमें शामिल नहीं किया गया।
उन्होंने पिछले सरकारों पर न्यास के प्रबंधन की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार न्यास में निर्वाचित और संवैधानिक तथा प्रशासनिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को शामिल कर रही है। इसमें कोई व्यक्ति विशेष नहीं होगा और नामित व्यक्ति प्रत्येक पांच वर्ष के बाद बदल दिए जाएंगे। उन्होंने सदस्यों को आश्वासन दिया कि न्यास में शहीदों के परिजनों को भी शामिल किया जाएगा।
इससे पहले, चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद परताप सिंह बाजवा ने कहा कि जलियांवाला बाग से कांग्रेस का ऐतिहासिक जुड़ाव रहा है। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष को ट्रस्ट से हटाना ठीक नहीं रहेगा। बाजवा ने किसी भी ट्रस्टी को पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाने का अधिकार सरकार को देने के प्रावधान का भी विरोध किया। यह विधेयक पिछले संसद सत्र में लोकसभा से पारित हो गया था। ऐसे में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून अमल में आ जाएगा। यह कानून पहले से लागू जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) अध्यादेश का स्थान लेगा।