आज से कोई पचास बावन साल पहले नावेल्टी सिनेमा के ठीक सामने बरामदे में एक छोटी सी मेज पर एक दुबले पतले सज्जन अपनी धुन में मगन ठीक चार बजे चाट की दुकान सजाने लग जाते थे। वो शुक्ला चाट वाले से तीन से चार सौ बताशे खरीदकर लाते और मटर और तीखा पानी अपने घर से तैयार कर लाते थे। ये सज्जन थे संतोष कुमार जैन। जैन के बताशे के पानी में पता नहीं क्या विशेष था कि खाने वालों का जमावड़ा लग जाता था। धीरे धीरे उन्होंने दही बड़ा, आलू टिक्की और मटर टिक्की भी बेचनी शुरू कर दी।
दोेस्तो, जैन साहब से मेरा भी 1972 से परिचय था। मेरे मित्र राजेश जैन के वे इंजीनियर जीजाजी के भाई थे। शिक्षा पूरी न कर पाने की वजह से रोजी रोटी के लिए वे इस काम में आये। छोटा परिवार था।
काम चल जाता था। लीला सिनेमा के सामने गली में ऊपर के हिस्से में किराये पर रहते थे जैन साहब। अक्सर आते जाते दुआ सलाम हो जाती। लेकिन मैं कभी उनके स्टाल पर चाट का स्वाद चखने नहीं गया।
उसके दूसरे कारण थे। खैर। समय ने करवट बदली। आज से कोई दस साल पहले जैन साहब ने एलोरा होटल के ठीक सामने एक दुकान खरीद ली। बस यहीं से जैन चाट भण्डार की भव्यता के साथ शुरूआत हुई।
अब उनकेे दोनों बेटे राजीव और संजीव भी कंधे से कंधा मिलाकर उनको सहयोग देने लगे थे। जैसे जैसे डिमांड बढ़ती गयी स्टाफ भी बढ़ता गया। लोग गंजिंग करने आते तो लौटते में जैन की चाट खाना नहीं भूलते।
उनकी मटर टिक्की और पानी के बताशों में गजब का जादू था। जो एक बार खाता दोबारा मौका निकालकर जरूर आता। यूं तो उनका दही बड़ा और पानी और चटनी के बताशों में कम दम नहीं था।
‘हम जैन हैं हमारे यहां सफाई व शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। हम लाख मांगने पर भी किसी को प्याज नहीं देते हैं। हमारे यहां शुद्ध रिफाइंड से माल तैयार होता है वो भी बिना लहसुन प्याज के। देखा जाए तो चाट में लहसुन प्याज का कोई रोल नहीं है। पता नहीं आज की नयी जनरेशन को हर चीज में इतना प्याज क्यों चाहिए?” बताते हैं छोटे बेटे संजीव।
‘हमारे पिताजी ने एक ही मंत्र दिया था कि कभी क्वालिटी के साथ समझौता नहीं करना और हाइजीन का विशेष ध्यान रखना। आज तोे हम पिताजी की बिछायी पटरी पर बिना दायें बायें हुए उसी रफ्तार से गाड़ी भगा रहे हैं।
हम पहले भी सारे मसाले अपनी देख रेख में लाते थे और जब तक माताजी स्वस्थ थीं वही उन्हें धोती, सुखाती और इमामदस्ते में कूटती थीं। अब उनका स्वास्थ ठीक नहीं रहता तो हमारी भाभी और मेरी पत्नी इस काम को बखूबी अंजाम देती हैं।”
‘जी हां अक्सर बॉलीवुड के स्टार्स यहां आकर चाट खाते हैं। ऋचा चढ्ढा, अपारशक्ति खुराना, जावेद जाफरी, जया भट्टाचार्य, रवीन्द्र जैन, सीआईडी की पूरी टीम इसके अलावा पहले उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा व सतीश चंद्र मिश्रा अक्सर आया करते थे। लोग तो अब भी आते हैं लेकिन वे कार से बाहर नहीं निकलते।”
‘पहले हमारे पिताजी दो रुपये पत्ता चाट बेचा करते थे। उन्हें दिन रात चिन्ता सताती रहती थी कि चाट का टेस्ट कतई न बदले। अगर किसी ने जरा सा भी कुछ कह दिया तो वो रात रात भर जागकर सोचते कि आखिर कमी कहां रह गयी। उनकी इसी चिन्ता ने उन्हें मानसिक रोग से ग्रस्त कर दिया। 2005 में वो हमारा साथ छोड़ गये। वो जो पेड़ लगा गये थे अब वो फल दे रहा है।
हमेें तो उनके लगाये पेड़ की जी जान से सेवा करनी है। इस महंगाई के दौर में जहां सबने सौ रुपये पत्ते की चाट कर दी है हम आज पचास रुपये की आलू टिक्की, मटर चाट व दही बड़े बेचते हैं।
हम कम से कम मुनाफा लेकर क्वालिटी को मेनटेन कर रहे हैं। आप को इस हजरतगंज और लालबाग एरिया में इतनी सस्ती व स्वादिष्ट चाट नहीं मिलेगी। कुछ ग्राहक तो हमारे पिताजी के जमाने से लगातार आते हैं। उनका भी यही कहना होता है कि आपकी चाट का टेस्ट आज तक नहीं बदला।”