न्यूज डेस्क
पिछले दिनों जब संसद में जय श्रीराम और अल्लाह हू अकबर का नारा बुलंद हुआ था तो इस पर खूब बहस हुई। कई सवाल भी उठाये गए। कहा गया कि संसद में इस तरह के नारे का क्या मतलब है। कई तर्क दिए गए कि संसद लोकतंत्र की शीर्ष संस्था है।
संसद की गरिमा, मर्यादा और उसकी भूमिका पर प्रश्नचिन्ह बताया गया। किसी ने इसे समाज का बंटना बताया तो किसी ने बीजेपी की राजनीति। फिलहाल संसद में हुए इस वाकये से कुछ लोग बहुत आहत हुए हैं। इन लोगों ने समाज के इस बंटवारे को रोकने के लिए एक अनोखी पहल शुरु की है।
दरअसल हरियाणा के जींद की खेड़ा खाप पंचायत ने जातिवाद खत्म करने के लिए एक नई पहल शुरू की है। पंचायत ने भूषला नाम के एक गांव में मीटिंग बुलाकर कहा है कि लोग ऐसे सरनेम का इस्तेमाल नहीं करें जिससे की लोगों की जाति का पता चलता हो।
खाप के प्रधान सतबीर पहलवान ने कहा कि ‘संसद के पहले दिन ही जय श्रीराम और अल्लाह हू अकबर के नारों से आहत हुई हमारी पंचायत ने तय किया कि समाज का बंटवारा रोका जाए। हमारी खेड़ा खाप पंचायत के अंतर्गत 24 गांव आते हैं।
29 जून को हुई मीटिंग में करीब 20 सदस्यों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया कि अब छोटे स्तर से ही इस बंटवारे को खत्म करना पड़ेगा। यानी कि जातिवादी सरनेम हटाने होंगे।’
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जींद के उचाना हलके में पडऩे वाले इन 24 गांवों मे करीब 1 लाख 30 हजार लोग रहते हैं। हरियाणा की जनसंख्या लगभग ढ़ाई करोड़ है।
मालूम हो कि हरियाणा में खाप पंचायतें कभी इज़्जत के नाम पर हो रही ऑनर किलिंग्स तो कभी जातिवादी फैसले सुनाने को लेकर कुख्यात रही हैं।
आहत होकर उठाया यह कदम
एक पोर्टल साइट से बातचीत में सतबीर पहलवान ने बताया कि संसद में लगे नारे से आहत होकर उन्होंने यह कदम उठाया है। हम अपने इस छोटे से कदम से देश के नेताओं को बताना चाहते हैं कि यह देश जयश्री राम या अल्लाह हू अकबर से नहीं संविधान से चलेगा। इसलिए हम जातीय दंभ को खत्म करने की शुरुआत करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि हम बीमार होते हैं, सुख में होते हैं या फिर दुख में होते हैं तो हमारे काम तो 36 बिरादरी के लोग ही आते हैं। अब अपने सरनेम बताकर दंभ भरने का जमाना नहीं है।
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इस फैसले के बाद आने वाली मुश्किलों पर इसी पंचायत के सतबीर बताते हैं, ‘अभी ये बात तय नहीं की गई है कि सरकारी कागजों में सरनेम बदले जाएंगे कि नहीं। अगली मीटिंग में फैसले लिए जाएंगे। गोत्र की बजाय गांव का नाम भी जोड़ सकते हैं। अगर ये इन गांवों में काम करता है तो हम इस अभियान को प्रदेश स्तर पर चलाएंगे।’
क्या होती है खाप पंचायत
एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। ये फिर पांच गांवों की हो सकती है या 20-25 गांवों की भी हो सकती है। जो गोत्र जिस इलाके में ज़्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज़्यादा दबदबा होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है।
सभी गांव निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं…और जो भी फैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला बताया जाता है और ये सभी पर बाध्य होता है।
सबसे पहली खाप पंचायतें जाटों की थीं। विशेष तौर पर पंजाब-हरियाणा के देहाती इलाकों में जाटों के पास भूमि है, प्रशासन और राजनीति में इनका खासा प्रभाव है, जनसंख्या भी काफी ज़्यादा है। इन राज्यों में ये प्रभावशाली जाति है और इसीलिए इनका दबदबा भी है। हरियाणा में कंडेला खाप, महम चौबीसी खाप, बिनैन खाप जैसी कुछ प्रसिद्ध खाप पंचायतें हैं।
हालांकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में खाप पंचायतों का वर्चस्व कम करते हुए कहा था कि दो बालिग लोगों की मर्जी से हुई शादी में खाप कोई दखल नहीं दे सकतीं। उससे पहले खाप पंचायतें भू्रण हत्या को रोकने के लिए कैंपेन चलाकर राष्ट्रीय मीडिया में छाई रही थीं।