दिवाली में सफाई का जब काम बंटा तो बंदे के हिस्से कबाड़ ठिकाने लगाने का कठिन काम सौंप दिया गया। दलील ये दी गयी कि सारे कबाड़ का सृजक बंदा ही है। दूसरा कारण मेडिकल से जुड़ा था कि धूल से बाकी लोगों को एलर्जी है। मास्क का सही उपयोग अब होने वाला था। हाथों पर बर्तन मांजने वाले गल्बज पहनकर कूद पड़े भण्डार गृह में। बंदे के बेडरूम को इसी नाम से जाना जाता है।
पलंग के नीचे से एक पुराने बक्से को खींचा। खोला। ऊपर ही मेरी मां को शादी में मिला पानदान नमुदार हुआ। बाहर निकाला। 24 कैरेट तांबे और पीतल से बना अच्छी नक्काशी वाले पानदान ने न जाने मेरे दिमाग को कैसे अपने कब्जे में कर लिया। मैंने यंत्रवत उसे उठा लिया और एक साफ कपड़ा लेकर उसकी सफाई में जुट गया।
थोड़ी देर में वो सोने जैसा चमकने लगा। मैंने रगड़ना जारी रखा। उसने भी चमचमाना नहीं छोड़ा। क्या यह सचमुच सोने का बना तो नहीं है? इसी ऊहापोह में मैंने जैसे ही उसका ढक्कन खोला तो एक लम्बी सी आकृति निकलकर बाहर खड़ी हो गयी। आकृति ने फर्शी सलाम किया और विनम्रता से बोली,’व्हाट इज द आर्डर माई लार्ड?”
‘तुम कौन हो और इसमें क्या कर रहे हो?”
‘मैं जिन्न हूं और आपने मुझे “लॉक डाउन” से निजात दिलायी है। व्हाट कैन आई डू फार यू, माई लार्ड?”
‘लेकिन एक सेकेण्ड! तुम तो चिराग में रहते थे और आजाद होने पर धुआं फेंकते हुए हा हा हाकी हंसी के साथ ” क्या हुक्म है मेरे आका”, बोलते हुए प्रकट होते थे। तुमने अपनी इंट्री का स्टाइल बदल दिया क्या!”
‘माई लार्ड, वो तो हमारी अरब मुल्क वाली फर्स्ट जनरेशन का स्टाइल था। मैं अंग्रेजी मीडियम वाला हूं। मैं बहुत दिनों से अपना घर बदलने की सोच रहा था। अब चिराग छोड़ पानदान में रहता हूं… कोई डिस्टर्ब नहीं करता।”
‘तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?”
‘खाने पीने का सामान तो नहीं ला सकता है क्योंकि सबमें मिलावट है। हां,आप चाहें तो अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, रूस में मकान दिला सकता हूं।”
‘वो कैसे?”
‘करोना के कहर से सैंकड़ों घर खाली हुए हैं। कोई रहने वाला नहीं है। हम जिन्न लोगोें का ही कब्जा है।”
‘अच्छा यह बताओ कि ये आतंकवाद भारत से कब खत्म होगा?”
‘खत्म तो कब का हो जाता लेकिन सर कुछ फितरती लोगों ने हूरों की डील कर, सीधे साधे नवजवानों के दिमागों को कब्जे में कर लिया है। जमीन पर रहकर ऊपर का सौदा तय कर दिया। न मिली तो कौन भकुआ शिकायत कराने आयेगा? ”
‘अच्छा मेरे तीन सवालों का सही सही जवाब दो। क्या इंडिया टीम की हार के पीछे आईएसआई का हाथ था? क्या भाजपा की जगह कांग्रेस वापस आयेगी? क्या अडानी के बंदरगाह पर मिली करोड़ों की ड्रग्स का असली मुजरिम कभी पकड़ा जाएगा?”
वो मेरे कान के बहुत करीब आकर कुछ बोलने जा ही रहा था कि एकदम सन्नाटा हो गया। अब मेरे कान से सूं सूं की आवाजें निरंतर आ रही हैं। सिर भी कुछ भारी भारी सा लग रहा है। पानदान खाली पड़ा है और चमक भी अब गायब होने लगी थी।….बाहर आतिशबाजियां छूटने की आवाजें आने लगीं। कुछ लोग पड़ोसी की जीत का जश्न मना रहे थे।…
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)