रूबी सरकार
प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों के विरूद्ध सन् 1857 की क्रांति में साथ देने वाले राजा मर्दन सिंह के क्षेत्र की महिलाएं आज भी उनकी याद दिलाती हैं। अब देश आजाद है और यहां की महिलाएं विकास की समग्र अवधारणा भलीभांति समझती हैं।
वे सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूप से विकास की मूलभूत आवश्यकताओं में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। हांलाकि उनमें यह बीच बोने में परमार्थ समाज सेवी संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है। संस्था ने वर्ष 2011 में यहां पानी की विकट समस्या को देखते हुए संभावनाएं तलाशनी शुरू की और यहीं से प्रारंभ हुई क्षेत्र की सूखी धरती को पानीदार बनाने की मुहिम।
इसी कड़ी में सर्वप्रथम संस्था ने हर गांव में पानी पंचायत का गठन किया। पानी पंचायत के सदस्यों को तालाबों का गहरीकरण, चैकडेम बनाने के साथ ही पानी के उपयोग, संरक्षण, प्रबंधन और पानी के लिए प्रशासन से जूझना तथा अपनी बात आग्रहपूर्वक मनवाने का तरीका भी सिखाया। इससे सदस्यों में सामाजिक चेतना आई साथ ही उनका आत्मविश्वास जागा।
विशेष रूप से यहां घूंघट में रहने वाली महिलाएं घरों से निकली और अपने हक की बात प्रशासन के सामने रखना सीख लिया। यूं भी बुंदेलखंड की महिलाएं साहस और पराक्रम की प्रतीक रही हैं। बस थोड़ा प्रोत्साहन मिलने की जरूरत थी, जो परमार्थ से उन्हें मिला। पानी पंचायत में पुरूषों के साथ महिलाएं भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगी।
इन महिलाओं की पहचान पूरी दुनिया में जल सहेली के रूप में होने लगी। पानी की कमी से महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं। लिहाजा महिलाएं परमार्थ के साथ मिलकर बड़ी शिद्दत के साथ पानी पर काम करना प्रारंभ किया।
पानी पंचायत ने सकारात्मक पहल करते हुए आन्दोलन और प्रदर्शन के साथ शासन- प्रशासन को बजाय कटघरे में खड़ा करने के उनके साथ मिलकर काम करने का संकल्प लिया। यही पानी पंचायत की सबसे बड़ी खुबी है, जो उन्हें अन्य संगठनों से अलग रखता है तथा इसके लिए हमेशा उसे सराहना मिलती है।
ऐसे हुई शुरूआत
दरअसल इसकी शुरूआत जब परमार्थ और जल-जन जोड़ो के अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह के नेतृत्व में पानी पंचायत और नदी-घाटी संगठन के साथी नदी यात्रा पर निकले थे। तब उन्हें लगभग 16 किलोमीटर लम्बी बरूआ नदी पता चला, जिसका उद्गम तालबेहट विकास खण्ड के करेगा गांव से हुआ है।
यह नदी 10 साल पहले तक सालभर पानी से लबालब रहता था, पर अब केवल बारिश के दिनों में ही बमुश्किल इसमें पानी मिल पाता है। करेगा गांव के बाद यह नदी चुरावनी, एवनी, हिंगोरा, हंसार, नन्हींहंसार, विजयपुर, बटपुरा, कबरीखिरक, छोटी हंसार, खिपटमा, रौतयाना, पूराकलां, सारसेंड, दुधियां, पठारी होते हुए जामनी नदी में मिलती है।
इस नदी में 10 चैकडेम बने है, जो पूरी क्षतिग्रस्त हो चुके है। नदी के आस-पास खनन इतना अधिक किया जा रहा है, कि नदी के झरने प्रभावित हो रहे हैं। नदी में काफी मात्रा में सिल्ट भी जमा हो चुका है, जिसके कारण नदी के जल भरण क्षेत्र में कमी आयी है।
इसे पुनर्जीवित करना पानी पंचायत के लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि इसके लिए सीधे खनन माफियाओं के साथ मुकाबला करना था।
बहरहाल 18 गांव और 6 ग्राम पंचायतें और गांव-गांव में गाष्ठियां की तथा लोगों को जागरूक किया। साथ ही परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने ललितपुर जिलाधिकारी को इस संबंध में एक पत्र लिखा, जिसमें नदी को पुनर्जीवित करने के लिए आस-पास पौधरोपण, अवैध खनन रोकना, चैक डेमों की मरम्मत, नदी के आस-पास गांवों में तालाबों का गहरीकरण और वाटरशेड कार्यक्रम संचालित करने, मेड़बंधी और सिल्ट की सफाई करवाने का आग्रह किया।
संस्थान ने जिलाधिकारी को इस बात के लिए भी अस्वस्थ किया, कि उनके इस प्रयास में पानी पंचायत एवं जल सहेलियां श्रमदान के साथ-साथ पूरा सहयोग करेंगे। पत्र में यह भी लिखा, कि इसका प्रभाव बुंदेलखण्ड में सूखे की समस्या से निपटने के साथ-साथ यह देश एवं प्रदेश में नदी पुनर्जीवन के मॉडल के रूप में भी सामने आयेगा। जल सहेलियों ने भी खनन माफियाओं से टकराने में पीछे नहीं हटीं।
जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने मनोबल बढ़ाया
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने भी इन लोगों का मनोबल बढ़ाया। चंद्रापुर गांव की जल सहेली पुष्पा बताती है, कि जलपुरूष ने कहा है, कि जिनकी आंखों में पानी बचा है, वहीं पानी के लिए चिंता कर रहे हैं। बुंदेलखण्ड में नदियां मर रही है और पानी के नाम पर लूट मची हुई है, जो शर्मनाक है।
नदियों को विनाश लीला और सूखने से बचाने के लिए उनका अधिकार हमें वापस लौटाना होगा। यह सामूहिक रूप से काम करने से ही संभव होगा। हम सब उनकी बातों से प्रभावित हुए, इसलिए आगे बढ़े।
अवैध खनन माफियाओं की धमकियों के बावजूद रेखा, राजकुमारी, मुन्नी, भावना, गेंदा, हरीबाई, गिरजा रामबति, लल्ली एवं लयोद्धा के साथ ही पानी पंचायत के सदस्य बच्चू अहिरवार, देवसिंह, सूरज, जमुदादास, नंदलाल, रतिराम पुरोहित, रामजीलाल, धर्मवीर आदि डटे रहें।
तत्कालीन ललितपुर जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह ने भी ग्रामीणों के हौसलों से प्रभावित होकर बरूआ को पुनर्जीवित करने की कार्ययोजना बनायी। उन्होंने 24 हजार से अधिक वृक्षारोपण के साथ ही विजयपुर और एवनी चैकडेम सुधारने के लिए क्रमश 31-31 लाख रूपये स्वीकृत किये और नदी में पर्याप्त पानी और प्रवाह के लिए आठ चेकडैम को साफ कराने का निर्णय लिया।
बरुआ नदी के बहाव के क्षेत्र में 15 ग्राम पंचायतें आती हैं। इसमें ग्राम प्रधान की भूमिका महत्वपूर्ण है। बीडीओ, वन विभाग, पुलिस विभाग समेत सभी महकमे इस काम में जुटे हैं। वर्तमान में यहां जिलाधिकारी योगेश मिश्रा, एसडीएम कमर अब्दुल्हा के नेतृत्व में काम तेजी से चल रहा है।
इस काम में 50 जल सहेलियों तथा 60 जल योद्धा श्रमदान कर रहे है। जानकारों का मानना है, कि जल सहेलियों का यह प्रयास केंद्र सरकार के जल क्रांति अभियान में मददगार साबित हो सकता है।