जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. पुलिस की गोली का शिकार होकर सिर्फ 20 साल की उम्र में अपना दाहिना हाथ खो देने वाले तरुण प्रीत सिंह ने पुलिस के खिलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. इन्साफ हासिल करने के लिए वह 25 साल तक लगातार अदालत की सीढ़ियां चढ़ता-उतरता रहा. अंतत: 45 साल की उम्र में दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे इन्साफ देते हुए केन्द्र सरकार को आठ हफ्ते के भीतर 15 लाख रुपये मुआवजा, दो लाख रुपये मुक़दमे का खर्च और साल 1998 से लेकर भुगतान की तारीख तक आठ फीसदी की दर से ब्याज के भुगतान का आदेश दिया है.
मामला साल 1997 का है. तरुण प्रीत सिंह अपने दो दोस्तों के साथ कनाट प्लेस के पास से गुजर रहा था. इसी बीच बाराखम्बा रोड पर पुलिस ने उसकी कार को रोका. वहां पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग चल रही थी. जब तक वह कुछ समझ पाता पुलिस की गोलियों ने कार को छलनी कर दिया. फायरिंग रुकने के बाद पुलिस तीनों को अस्पताल ले गई लेकिन इस हादसे में उसके दोनों दोस्तों की मौत हो गई. वह बुरी तरह से घायल हो गया. स्वस्थ होने पर उसे पता चला कि उसका दाहिना हाथ स्थाई रूप से विकलांग हो चुका है और शरीर में पुलिस की बंदूकों ने निकले कई छर्रे ऐसे स्थानों पर फंसे हैं जिन्हें निकालने का जोखिम नहीं लिया जा सकता.
दिसम्बर 1998 में तरुण ने अदालत में पुलिस के खिलाफ मुकदमा कायम कर एक करोड़ रुपये मुआवजा और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. इस मामले में दस पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया और अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई. सभी पुलिसकर्मी जेल में हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें मिली उम्रकैद की सज़ा पर ही अपनी मोहर भी लगा दी है.
तरुण ने अदालत को बताया कि वह एक कपड़े की दुकान में काम करता था. जिस वक्त उसके साथ यह हादसा हुआ उस वक्त उस पर अपने दो बच्चो की परवरिश की ज़िम्मेदारी थी. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस की लापरवाही की वजह से पीड़ित ने जो सहा है उसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती. उसने अपने शरीर के एक अहम हिस्से को खो दिया. अच्छा भला नौजवान विकलांग हो गया.
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