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बीना राय को थी फिल्मों में काम करने की जिद, कर दी भूख हड़ताल

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव

लखनऊ की मुकद्दस सरजमीं ने बॉलीवुड को अनेक मशहूर व मारूफ फनकार दिये हैं। उनकी कला के जलवे मौसिकी, अदाकारी, फिल्म निर्देशन , नगमानिगारी, कहानी लेखन व स्क्रिप्ट राइटरिंग में सर्वविदित हैं।  लखनऊ में पले बढ़े फनकारों की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं सुप्रसिद्ध अभिनेत्री कृष्णा सरीन उर्फ बीना राय के बारे में

कृष्णा सरीन का परिवार बंटवारे की त्रासदी झेलते हुए पाकिस्तान के लाहौर से माइग्रेट होकर कानपुर आया था। उच्च शिक्षा के लिए कृष्णा सरीन ने लखनऊ के आईटी कालेज में फर्स्ट इयर में दाखिला लिया। वे डे स्कालर नहीं बल्कि हॉस्टलर थीं। वे कालेज के नाट्य फेस्टिवल में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेतीं। थियेटर में काम करते करते उन्हें फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया।

उन्हीं दिनों राइटर, डायरेक्टर, हीरो किशोर साहू एक फिल्म बना रहे थे जिसके लिए उन्होंने हिरोइन की तलाश में आल इंडिया कांटेस्ट रखी। उसका विज्ञापन अखबार में देखकर कृष्णा सरीन मचल गयीं। तबस्सुम ने अपने यूट्यूब चैनल बाम्बे टाकीज में राज खोला था कि बीना राय की दो प्रोफेसर आशा माथुर (जिनकी बाद में फिल्म निर्देशक मोहन सहगल से शादी हुई) व इन्दिरा पंचाल (जो बाद में सुप्रसिद्ध उद्योगपति आनन्द महेन्द्रा की मां बनीं ) को जब पता चला कि कृष्णा सरीन हिरोइन बनने जा रही है तो उन्होंने भी साथ चलने की तैयारी कर ली। क्योंकि किशोर साहू को अपनी फिल्म में तीन अदाकाराओं की तलाश थी।

ऑडिशन में कृष्णा सरीन को किशोर साहू ने पूरे भारत से आयीं सैकड़ों लड़कियों में हिरोइन के लिए चुन लिया। उनके साथ आयीं प्रोफेसरों को भी फिल्म में काम करने के लिए सेलेक्ट कर लिया गया। पर कृष्णा सरीन के पुराने ख्यालात के घर वालों ने फिल्मों में काम करने की इजाजत नहीं दी। अब तो उनका रोना फूट पड़ा। भूख हड़ताल पर बैठ गयीं।

रेलवे में एक बड़े पद पर कार्यरत पिता अविनाश राम सरीन, मां राजवंती सरीन व उनके तीन भाई व चार बहनें भी उनकी भूख हड़ताल से नहीं पिघले। कृष्णा सरीन अब रुकने वाली नहीं थीं। वे बगावत कर, बम्बई पहुंच गयीं। 1950 में फिल्म बनना शुरू हुई।

किशोर साहू ने कृष्णा सरीन को नया नाम दिया बीना राय। फिल्म का नाम था ‘काली घटा”। फिल्म 1951 में बनकर रिलीज हुई। इसके लिए उन्हें 25 हजार रुपये का भुगतान किया गया। फिल्म ठीक ठाक चली। बीना राय के खूबसूरत चेहरे और  उनकी मनमोहक मुस्कान ने निर्माताओें का ध्यान जरूर अपनी ओर खींचा। उनका जादू निर्माता निर्देशकों के सिर चढ़कर बोलने लगा।

इसी साल उन्होंने ‘बादल” नाम की एक फिल्म साइन की। जिसमें उनके हीरो थे प्रेम नाथ। इस फिल्म में बीना राय का करेक्टर चुलबुली लड़की का था। वो शॉट देने के बाद शरमा जातीं। इस पर प्रेम नाथ ने अपने अंदाज में तंज कसा कि ऐसी लड़कियों को तो फिल्म में काम करने की बजाए शादी कर घर बसा लेना चाहिए।

एक दिन बीना राय ने प्रेम नाथ के मेकअप रूम में जाकर एक पर्ची व एक लाल गुलाब रख दिया। पर्ची में लिखा था ‘यदि आप मुझसे प्रेम करते हैं तोे गुलाब को स्वीकार करें अन्यथा वापस कर दें।” प्रेम नाथ चकित से खड़े रह गये। फिर उन्होंने गुलाब को धीरे से अपनी जेब में रख लिया। जबकि वे मधुबाला के प्रेम में दीवाने थे और  कहते हैं कि मधुबाला दिलीप कुमार से प्यार करती थीं, दिलीप कुमार की बेरुखी से दुखी मधुबाला ने प्रेम नाथ से रिश्ते के लिए हां भी कर दी थी।

बीना राय और  प्रेम नाथ को पता ही नहीं चला कि साथ साथ काम करते हुए दोनों में कब प्यार पनप गया। बीना राय चूंकि संस्कारी परिवेश से आयीं थीं सो शादी वाली संस्था पर उन्हें पूर्ण विश्वास था। 1953 में फिल्म ‘औरत” के सेट पर उन्होंने अपनी नायिका बीना राय से शादी कर ली। उन्होंने अपना हनीमून अमेरिका में मनाया। वहां दोनों भारतीय प्रतिनिधि के रूप में गये थे।

उनकी शादी की खबर से लाखों चाहने वालों का दिल टूट गया। विवाह के बाद भी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते हुए अपने दो बेटों प्रेम किशन व कैलाश मल्होत्रा ‘मोंटी” की परवरिश करते हुए उनकी कई फिल्में रिलीज हुयी । जिनमें कई हिट भी रहीं। ‘काली घटा”, ‘औरत ” के बाद ‘सपना”, ‘गौहर”, ‘शोले”, ‘सरदार”, ‘मीनार”, ‘मैरिन ड्राइव”, ‘हिल स्टेशन”, ‘मदभरे नैन”, ‘चंद्रकांत”, ‘दुर्गेशनंदनी”, ‘तलाश”, ‘चंगेज खां”, ‘घूंघट”, ‘बंदी”, ‘वल्लाह क्या बात है”, ‘अनारकली”, ‘ताजमहल”, ‘इंसानियत”, ‘दादी मां”, ‘मेरा सलाम”, ‘राम राज्य” अपने होम प्रोडक्शन पीएन फिल्म्स में पति प्रेम नाथ के साथ ‘शगूफा”, ‘गोलकुंडा का कैदी”, ‘हमारा वतन” व ‘समुन्दर” नामक फिल्मों में काम किया लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से कोई भी फिल्म नहीं चली। प्रोड्क्शन हाउस को बंद करना पड़ा।

यह भी एक मजेदार किस्सा है कि मुगले आजम के निर्माण में लगातार देरी के चलते एक छोटे फिल्मकार नंदलाल जसवंत लाल ने आगे बढ़कर बीना राय और प्रदीप कुमार को लेकर फिल्म ‘अनारकली’ लांच कर दी। फिल्म सुपर डुपर हिट हो गयी। इसी कामयाब जोड़ी की दूसरी फिल्म ‘ताजमहल” ने भी सफलता के झंडे गाड़ दिये। उसके गीत ‘पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी”,’जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं” व ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा” गली गली में सुनाई देने लगे।

जब ‘मुगले आजम” 1960 में बनकर तैयार हुई तो उसी दौरान बीना राय की पारिवारिक फिल्म ‘घूंघट” भी रिलीज हुई। फिल्मफेयर अवार्ड में दोनों ही बेस्ट हीरोइन की नामिनी थीं। सभी समझ रहे थे कि यह पुरस्कार मधुबाला ही जीतेंगी लेकिन जब बीना राय का नाम लिया गया तो सबके मुंह खुले के खुले रह गये। इसके लिए मीडिया ने पुरस्कार कमेटी की खिंचाई भी की।

ज्यादातर लोग 13 के अंक को अशुभ मानते हैं जबकि बीना राय की जिन्दगी में इस तारीख की अहम भूमिका रही। जहां 13 जुलाई 1931 को उनका जन्म लाहौर पाकिस्तान में हुआ वहीं अपनी पहली फिल्म के लिए उन्होंने कांट्रेक्ट साइन किया तो वह तारीख थी 13 जुलाई 1950 आैर उनकी ‘काली घटा” फिल्म 13 जुलाई 1951 को रिलीज हुई। 13 जुलाई 1952 को उनकी सगाई हुई।

उनके साथ एक अन्य संयोग भी जुड़ा। प्रेम नाथ और  बीना राय को नींद बहुत प्यारी थी। वो अक्सर कहा करते थे कि नींद आधी मौत है और मौत पूरी नींद। इत्तेफाक देखिए प्रेम नाथ की 3 नवम्बर 1992 में नींद में सोते हुए मौत हो गयी और  6 दिसम्बर 2009 को बीना राय भी सोते हुए इस दुनिया को छोड़कर चली गयीं।

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1968 मेें बनी फिल्म ‘अपना घर अपनी कहानी” उनकी अंतिम फिल्म थी। 18 वर्ष के अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने मात्र 28 फिल्मों में काम किया। उसके बाद वह चालीस साल तक अपने परिवार में मीडिया से दूर खुशी खुशी जीवन व्यतीत करती रहीं।

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