जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले शनिवार को हमास के अतिवादियों ने क़रीब 150 लोगों को बंधक बना लिया था. इन लोगों को ग़ज़ा में गुप्त स्थानों पर रखा जा रहा है. इन बंधकों में महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल हैं. अगर इसराइल गज़ा पर ज़मीनी हमले का फ़ैसला लेता है, जैसा कि कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं. ऐसे में आशंका इस बात की है कि क्या ये बंधक जीवित बचेंगे.
समझौते की कितनी संभावना है?
माना जा रहा है कि क़तर, मिस्र और कुछ और देश पर्दे के पीछे से इनमें से कुछ बंधकों की रिहाई की कोशिशें कर रहे हैं.एक संभावना इस बात की जताई जा रही है कि हमास इसराइल की जेल में बंद 36 फ़लस्तीनी महिलाओं और किशोरों की रिहाई के बदले में बंधकों में से महिलाओं और बच्चों को छोड़ सकता है.
माइकल मिल्स्टीन इसराइल की रिचमान यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी एंड स्ट्रैटिजी में वरिष्ठ विश्लेषक हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि सामान्य समय में इसराइल की पहली प्राथमिकता बंधकों की वापसी होगी, लेकिन आज यह हमास का सफाया है.
फ़लस्तीनी और हमास ग़ज़ा पर 2,000 से अधिक इसराइली हवाई हमलों से जूझ रहे हैं. शनिवार के बाद से इन हमलों में एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं. गज़ा में ईंधन, बिजली, पानी और दवाओं की आपूर्ति रोक दी गई है.
हमास ने क्या चेतावनी दी है?
हमास ने बिना किसी चेतावनी के किए जाने वाले इसराइली हवाई हमले में अपने नागरिकों के मारे जाने के बदले एक बंधक को फांसी देने की धमकी दी है. हालांकि इसका अभी तक कोई सबूत नहीं है कि हमास ने ऐसा किया है. वहीं, इसराइल की ओर से संयम बरतने के संकेत भी कम ही दिख रहे हैं. गज़ा के बड़े हिस्से को जानबूझकर मलबे में बदला जा रहा है.
मिल्सटीन का मानना है कि हमास महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों को बंधक बनाकर रखने में अधिक उत्सुक नहीं होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह उसके लिए ख़राब विकल्प है. बंधकों में से कई लोगों को अत्यधिक देखभाल की ज़रूरत होगी, यह लगातार हो रहे हवाई हमलों के बीच आसान काम नहीं है.
वह भी तब जब वह ग़ज़ा में इसराइल के किसी मुखबिर से उस स्थान को बचाए रखने की कोशिश कर रहा है. इसके उलट, हमास किसी भी सैन्यकर्मी को बंधक बनाने का अधिकतम लाभ उठाना चाहेगा. अगर कोई समझौता वार्ता होती है तो वह उनकी रिहाई की अधिकतम क़ीमत वसूल करेगा.
जब बंधकों की बात आती है तो इसराइली सरकार दुविधा में पड़ जाती है. क्या वह एक सशस्त्र बचाव अभियान चलाने की कोशिश करेगी, जो जोखिमों से भरा है? या क्या वह लंबे समय तक इंतज़ार करेगी, जब तक कि हवाई हमलों से हमास इतना कमज़ोर न हो जाए कि वह समझौता करने के लिए और अधिक इच्छुक हो जाए? उस विकल्प के अपने ख़तरे हैं.
हालांकि माना जाता है कि बंधकों को ज़मीन के नीचे सुरंगों और बंकरों में रखा जाता है, लेकिन यह भी हो सकता है कि वे इन हवाई हमलों से सुरक्षित न हों.
इस बात का जोखिम हमेशा बना रहता है कि उन्हें बंधक बनाने वाले या तो ग़ुस्से में आकर या उन्हें जब इस बात का डर हो कि बंधकों को बचाया जाने वाला है, उन्हें मार सकते हैं. ऐसा 2012 में नाइजीरिया में जिहादियों द्वारा बंधक बनाए गए दो बंधकों को छुड़ाने के ब्रिटेन और नाइजीरियाई विशेष बल के असफल अभियान के दौरान हुआ था.
इसराइल ने बंधकों की जानकारी लेने के लिए एक कक्ष बनाया है. इसमें शनिवार को बंदूक के बल पर सीमा पार कर गज़ा ले जाए गए हर बंधक की पहचान और स्थिति का पूरा ब्यौरा जुटाया जा रहा है. ऐसे लोग जिन्हें इसराइल की सीमा में बंधक बनाया गया था, उन्हें इसराइली सेना और स्पेशल फोर्स ने छुड़ा लिया था और उन्हें बंधक बनाने वालों को मार दिया था.
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इसराइल को बंधकों को छुड़ाने में महारत हासिल है. इसका वह गहन प्रशिक्षण लेता है. इसराइल की 1957 में स्थापित गुप्त सायरेट मटकल यूनिट ब्रिटेन की एसएएस या अमेरिका की डेल्टा फोर्स की ही तरह है. इसे 1976 में एंटेबे पर की गई कार्रवाई के बाद प्रसिद्धि मिली थी, जहाँ इसके कमांडो ने युगांडा के हवाई अड्डे पर अगवा किए गए विमान से बंधकों को बचाया था.
उस यूनिट के कमांडर योनातन नेतन्याहू थे. वो उस कार्रवाई में मारे गए एकमात्र इजरायली कमांडो थे. उनके भाई बिन्यामिन नेतन्याहू आज इसराइल के प्रधानमंत्री हैं. यह फ़ैसला उन पर निर्भर करता है कि क्या बंधकों की बातचीत के ज़रिए रिहाई की उम्मीद में इंतज़ार किया जाए या उन्हें बलपूर्वक छुड़ाने के लिए कड़ी मेहनत की जाए.