Tuesday - 29 October 2024 - 3:34 PM

कारोबारियों का गेम प्लान तो नहीं है कोरोना ?

जुबिली न्यूज डेस्क

छह माह से ज्यादा का समय हो गया है, पर कोरोना का रहस्य जस का तस बना हुआ है। कोरोना कहां से आया, कैसे आया, इसकी प्रवृत्ति क्या इस रहस्य से अब तक पर्दा नहीं उठा है। कोरोना को लेकर लगातार शोध हो रहा है और इसके बारे में खुलासा भी हो रहा है पर इस पर नियंत्रण का कोई उपाय वैज्ञानिकों के हाथ अब तक नहीं आ पाया है। कोरोना को लेकर तरह-तरह की कारोबारी कहांनिया भी सामने आ रही हैं जिसकी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। पहले कहा गया कि डब्ल्यूएचओ चीन के इशारे पर काम कर रहा है और अब कहा जा रहा है कि वह फार्मा कंपनियों के इशारे पर काम कर रहा है।

कोविड-19 के आने के बाद से विश्व स्वास्थ्य संगठन विवादों में है। संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहा है। उस पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। अमरीकी राष्टï्रपति डोनॉल्ड ट्रंप सार्वजनिक मंच से कई बार कह चुके हैं कि वह चीन के इशारे पर काम कर रहा है। उसने बीमारी को छुपाया जिसकी वजह से पूरी दुनिया में इसका प्रसार हो गया। जाहिर है दुनिया का सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति ऐसा कह रहा है तो उसमें कुछ तो सच्चाई होगी।

डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी है, क्योंकि डब्ल्यूएचओ को सबसे ज्यादा फंड अमेरिका से मिलता है और जब अमेरिका उससे अलग हुआ तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। यह संदेह पैदा करने के लिए काफी है कि आखिर वह इतने इत्मीनान से कैसे हैं। उसका सबसे बड़ा डोनर उसके हाथ से निकल गया और उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।

जानकारों के मुताबिक डब्लूएचओ की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक उसे सबसे अधिक फंड अमेरिका से मिलता है। 2017-18 में अमेरिका ने 401 मिलियन डॉलर दिया था। इस लिहाज से देखा जाए तो चीन से मिलने वाले फंड, एक-तिहाई भी नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि डब्लूएचओ अपने सबसे बड़े डोनर से झगड़ा क्यों करेगा? उसकी तो पूरी कोशिश रहेगी कि वह नाराज न हो। उसे नाराज करने का जोखिम डब्लूएचओ एक ही सूरत में उठा सकता है। वह तब जब उसे अमेरिका से बड़ा डोनर मिल जाए।

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आगे की स्टोरी किसी फिल्म की पटकथा जैसी है। जैसे फिल्मों में पैसे के दम पर विलेन पूरे सिस्टम को खरीद लेता है, कोरोना के मामले में भी ऐसा ही कुछ दिख रहा है। दरअसल कोविड-19 जैसा दिख रहा है वैसा है नहीं। इसमें भी असल खिलाड़ी कोई और है। चीन और डब्ल्यूएचओ तो सिर्फ मोहरा हैं।

कुछ दिनों पहले इस काले कारोबार पर ‘द नेशन’ ने लंबी खबर लिखी थी। वेबसाइट ने बड़े विस्तार से लिखा है। यहां पर उतने विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है। लेकिन उस हिस्से की चर्चा करना जरूरी है जो मौजूदा खेल पर रोशनी डालता है।

रिपोर्ट के मुताबिक फार्मा सेक्टर और अमेरिका के एक नामी गिरामी व्यक्ति और डब्लूएचओ में घनिष्ठ संबंध है। दावा तो यह भी किया जाता है कि डब्लूएचओ इस समय फार्मा कंपनियों का एजेंडा चला रहा है। चूंकि उन कंपनियों के अगुवा अमेरिका का एक ताकतवर इंसान है। उनकी ही वजह से डब्लूएचओ में फार्मा कंपनियां लाखों डॉलर का अनुदान देती है। इसलिए उनके हित का ध्यान रखना डब्लूएचओ का काम है।

यह भी जान लेते हैं अमेरिका का यह ताकतवर इंसान डब्ल्यूएचओ को कितना पैसा देता है। जानकर आप हैरान रह जायेंगे। इस ताकवतर व्यक्ति का अपने फाउंडेशन और अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर डब्लूएचओ को 474 मिलियन डालर देते हैं। इसमें अकेले उस व्यक्ति के फाउंडेशन से 324 मिलियन डॉलर का फंड जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि उस व्यक्ति का डब्लूएचओ के मुखिया टेड्रोस से पुराना रिश्ता भी है। एक दौर में टेड्रोस, उस व्यक्ति के पैसे से बने ग्लोबल फंड फॉर एड्स, टयूबरकोलेसिस और मलेरिया बोर्ड के चेयरमैन थे। तभी से टेड्रोस अदनोम उस आदमी से जुड़े हुए हैं।

सारा मामला निवेश का है। इस व्यक्ति का फार्मा कंपनियों में बड़ा निवेश है। यह इंसान इतना ताकतवर है के अमेरिकी सरकार भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती। इस आदमी को अमेरिका की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। साफ्टवेयर में तो इस आदमी का डंका बजता है। अपनी फाउंडेशन के माध्यम से दुनिया भर में ये आदमी मदद करता है।

अब आप कहेंगे कि तो इसमें कोरोना का क्या संबंध हैं। दरअसल इस ताकवर आदमी का फार्मा कंपनियों में बड़ा निवेश है। इसलिए उनके हित का ध्यान रखना डब्लूएचओ का काम है। उसी के तहत कोरोना पर डब्लूएचओ ने पर्दा डाल रखा था। अगर वह ऐसा नहीं करता तो कोरोना वुहान शहर तक ही सीमित रह जाता। लेकिन डब्लूएचओ ने ऐसा होने नहीं दिया। पहले तो उसने बीमारी छिपाने में चीन का साथ दिया। जब बीमारी के बारे में सबको पता चल गया, तब डब्लूएचओ ने कहा कि यह बीमारी इंसान से इंसान में नहीं फैलती।

मतलब हर स्तर पर संगठन ने गोपनीयता बनाए रखी। जाहिर है वह चीन के लिए नहीं थी। अगर किसी के लिए थी और है तो वह फार्मा कंपनियां है। चीन तो बस बहाना है। उसकी इतनी हैसियत नहीं है कि वह डब्लूएचओ को प्रभावित कर सके और अमेरिका की इतनी हैसियत नहीं है कि वह ताकतवर इंसान को कठघरे में खड़ा कर सके। जबकि जो घटनाक्रम है वह सीधा संकेत करता है कि डब्लूएचओ, फार्मा कंपनियों के इशारे पर काम कर रहा था।

उसने कोरोना पर लंबी चुप्पी इसलिए साधे रखी ताकि बीमारी पूरी दुनिया में फैल सके। अब पूरी दुनिया ही उस इसान और उनकी सहयोगी के लिए बाजार बन गया। वे तो सीधे कह भी रहे है कि जब तक वे वैक्सीन नहीं बना लेते तब तक लोग बाहर नहीं निकल सकते। कारण, उनकी वैक्सीन ही कोरोना की दवा है।

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विशेष तौर पर वैक्सीन निर्माण में इस इंसान ने काफी पूंजी लगा रखी है। नोवार्टिस, फाइजर, ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन, सोनाफी, मर्क, बायर जैसी कंपनियों में इस इंसान का अच्छा खासा निवेश है। यह व्यक्ति इन कंपनियों को अपने फाउंडेशन के माध्यम से अनुदान भी देता है। ऐसा वे क्यों करते हैं? उसकी एक अलग कहानी है। लेकिन इतना जरूर है जिस कंपनी में उस इंसान की हिस्सेदारी है, उसकी फाउंडेशन उसे अनुदान भी देता है।

चूंकि डब्लूएचओ में फार्मा कंपनियां लाखों डॉलर का अनुदान देती है, इसलिए वह वहीं कर रहा है जो उससे करने के लिए कहा जा रहा है। जैसे कोई भी दवा जो कोरोना को ठीक करने में सक्षम नजर आती है, उसे डब्लूएचओ खारिज कर देता है। वह तो सीधे कह रहा है कि कोरोना खत्म होने वाली बीमारी नहीं है। वह दुनिया से जाएगी ही नहीं। यह एक तरह से डर फैलाना ही हुआ। फार्मा कंपनी का धंधा डर पर ही चलता है। जो जितना डरेगा, वह उतना जल्दी दवा के लिए भागेगा।

मौजूदा समय में वैसे ही हालात बनाए गए हैं। हर कोई डरा-सहमा है। वह चाहता है कि किसी तरह कोरोना से बचने के लिए दवा आ जाए। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कोशिश भी की। दवा का परीक्षण किया और पाया की क्लोरोक्वीन, एंटीबायोटिक के साथ कोरोना को ठीक करने की सबसे कारगर दवा है। 

यह शोध सामने आते ही वैक्सीन निर्माता सकते में आ गए। उन्हें लगा कि यदि सब क्लोरोक्वीन से ठीक हो जाएंगे तो उनकी वैक्सीन का क्या होगा। लिहाजा वैक्सीन किंग के अगुवा और उनके सहयोगी उसे खारिज करने में लगे हैं।

कह रहे हैं कि क्लोरोक्वीन का प्रयोग करने से ह्दय की बीमारी हो जाती है। दूसरा यह, कोरोना का इलाज नहीं है। लेकिन बिडंबना देखिए, जिस दवा का वैक्सीन किंग विरोध कर रहे हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति थोक के भाव वही दवा खरीद रहे हैं। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि मोडेना जो वैक्सीन बना रही है, उसमें भी क्लोरोक्वीन का प्रयोग किया गया है।

बावजूद इसके दुष्प्रचार जारी है। जाहिर यही वैक्सीन निर्माताओं की खुराक है। इसलिए तो पहले कोरोना के बारे में गलत सूचना फैलाई गई और बाद में वह वैश्विक महामारी बन गई। यही काम अब दवा के साथ हो रहा है ताकि वैक्सीन की बाजार बनी रहे। डब्लूएचओ इस समय उनके लिए ही काम कर रहा है। चीन तो बस मुखौटा है। असल खिलाड़ी तो कोई और ही है।

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