जुबिली न्यूज डेस्क
बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के एक फैसले के बाद से यह सवाल उठ रहा है कि क्या किसी 12 साल की बच्ची का छाती दबाना उस पर यौन हमला नहीं माना जाना चाहिए?
दरअसल अदालत ने अपने एक फैसले में कहा है कि यह काम भारतीय दंड संहिता के अनुसार छेड़छाड़ जैसा अपराध तो है, पर पॉक्सो अर्थात प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेज के तहत यौन हमला जैसा गंभीर अपराध नहीं है।
‘लाइव लॉ’ के मुताबिक, नागपुर बेंच की जज जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाल ने सत्र न्यायालय के दिए गए एक फैसले को इस आधार पर बदल दिया।
दरअसल एक 39 साल के व्यक्ति पर यह आरोप लगा कि उसने 12 साल की एक बच्ची का छाती दबाया और उसका कपड़ा हटाने की कोशिश की।
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इस मामले की सुनवाई में जस्टिस गनेड़ीवाल ने अपने निर्णय में धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध माना और उसे एक साल की जेल की सजा दी।
हालांकि के तहत इस अपराध के लिए तीन साल की सजा हो सकती है। लेकिन भारतीय दंड संहिता के तहत एक साल की सजा ही दी गई।
जस्टिस गनेड़ीवाल ने अपने फैसले में कहा कि कोर्ट का मानना है कि पॉक्सो के तहत कड़ी सजा दिए जाने के कारण अधिक गंभीर आरोप और सबूतों की जरूरत है। कपड़ा हटाने या कपड़े के अंदर हाथ डालने के सबूत के बिना 12 साल की बच्ची की छाती को दबाना यौन हमला (सेक्सुअल ऑफ़ेन्स) की परिभाषा के तहत नहीं आएगा।”
लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि छाती दबाना छेड़छाड़ की नीयत से किया गया अपराध की श्रेणी में आ सकता है।
अदालत ने शारीरिक संपर्क (फिजिकल कन्टैक्ट) की व्याख्या करते हुए कहा कि यह चमड़े से चमड़े का संपर्क (स्किन टू स्किन कंटैक्ट) है। यह साबित नहीं किया जा सका कि बच्ची का कपड़ा हटाया गया, इसलिए इसे शारीरिक संपर्क नहीं माना जाएगा।
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क्या कहता है पॉक्सो?
पॉक्सो अर्थात प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेन्सेज़ साल 2012 में लागू किया गया। इसकी धारा 7 में कहा गया है कि यौन हमले की मंशा से किसी की योनि, गुदा, लिंग या छाती को छूना या किसी बच्चे को ऐसा करने के लिए मजबूर करना शारीरिक संपर्क माना जाएगा।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक 14 दिसंबर, 2016 को अभियुक्त बच्ची को अमरूद देने के बहाने अपने घर ले गया, उसकी छाती दबाई और उसके कपड़े हटाने की कोशिश की। उसी समय उसकी मां वहां पहुंच गई और बच्ची को बचाया। उसके तुरन्त बाद ही एफ आईआर दर्ज की गई और उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया।
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