आराधना भार्गव
लड़कियों के जींस पहनने पर सवाल उठाने वाले जरा सोचें की जींस हर उस लड़की के पहनावे का प्रतीक है, जो रोज दौड़ कर बस, ट्रेन, मेट्रो, कैब पकड़ रही है, जो रोज सुबह दफ्तर जा रही है, जो अपने कंधे पर कैमरा लटकाये उन्ही नेता जी की एक बाइट के लिए दौड़ रही है, जिसने उसके कपड़ों पर टिप्पणी की थी, जो हवाई जहाज उड़ा रही है, जो खेल के मैदान में दौड़ रही है, जो पुलिस की वर्दी में डियुटी पर है और सेना की वर्दी में परेड कर रही है।
यह उसकी पौषाक है ये इज्जत की, सम्मान की, कर्मठता की, लगन की पौषाक है। इसे पहन कर लड़की काम पर जा रही है। ये कोई शर्मिदगी की बात नही है ये तो गर्व की बात है।
लड़कियों के पहनावे पर फब्तियां कसने वाले भूल जाते है कि अब लड़कियाँ घरघुस्सू नही रही वो घूंघट और पर्दे से बाहर निकलकर दुनिया देख रही है वो देख रही है कि न्यूजीलेंड की प्रधानमंत्री पेन्ट पहनती है, अमेरिका की विदेश मंत्री जीन्स पेन्ट पहनती है।
लड़कियों के कपड़ों पर टिप्पणी करने वाले दिमाग उसी मानसिकता को दर्शाते है जो किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ या गलत व्यवाहार होने पर पहला सवाल पूछते है लड़की ने कपड़े क्या पहने थे ?
जो फतवा जारी करके जीन्स पहनने पर प्रतिबन्द लगते है जो सड़कों पर जीन्स पहनकर चल रही लड़कियों पर फब्तियां कसते है और जीन्स पहनने वाली लड़कियों को तेज समझते है। भारत के संविधान मे भारत के प्रत्येक नागरिक को यह आजादी दी है कि वह जैसा उसे पसन्द है वैसे कपड़े पहने, जैसा उसे पसन्द है वैसा वो खाये, व्यक्तिगत आजादी के लिए राममनोहर लौहिया ताह जिन्दगी संघर्ष करते रहे और उन्हें सीता या सावित्री इस पर एक पुस्तक भी लिखी।
सानिया मिर्जा, मेरीकाॅम जैसी बेटियों ने इस देश का नाम रोशन किया पर पितृसत्ता से संचालित पुरूषों की दृष्टि ने महिलाओं के हुनर को नही देखा, उनके शरीर और कपड़ों पर हि दृष्टि गई। आज अगर महिलाओं को यह देश घूंघट में ही रखता तो यह देश दुनिया के सामने लड़ाकू विमान चलाती, एवरेस्ट पर चढ़ती, ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक लाती, पुलिस अधिक्षक, जिलाधीश, न्यायाधीश, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल के रूप में बेटिया नही दिखा सकता था। दोष पुरूष कि दृष्टि में है जिसे बदलने की वर्तमान समय में अवश्यकता है।