Monday - 7 April 2025 - 6:30 PM

क्या यही है उच्च शिक्षा का सपना ?


 प्रो. अशोक कुमार

बहुत दिनों से मैं यह सोच रहा था की लगभग 3 वर्ष से मैं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने अनुभवों को और वर्तमान शिक्षा प्रणाली के अनुभवों के आधार पर या अपने मित्रों के अनुभव के आधार पर समाचार पत्रों में और सोशल मीडिया मे लेख लिख रहा हूँ लेकिन यह एक संजोग है या यह अपने आप में एक चिंता का विषय है कि जिन शिक्षकों के लिए , जिन छात्रों के लिए , जिन महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के लिए , मैं लेख लिखता हूं , उनकी कोई भी प्रतिक्रिया मुझे नहीं मिलती या बहुत ही सीमित मिलती है , तब मुझे लगता है और मैं यह सोचता हूं की क्या मैं उच्च शिक्षा के उत्थान के लिए, उसकी प्रगति के लिए कुछ लिखूँ या ना लिखूँ !

जैसा कि आप जानते हैं कि किसी भी देश की समृद्धि और विकास के लिए उच्च शिक्षा अत्यंत आवश्यक है ! वास्तव में शिक्षा का अर्थ होता है एक अच्छा इंसान, एक अच्छा मानव बनना ! मैंने बहुत सोचा लेकिन फिर भी मैं अपनी कलम को रोक नहीं पाया और आज भी कुछ व्यक्त करना चाहता हूं !

कई लेखों में मैंने शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर लिखा और मैंने यह देखा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली देश के भविष्य के लिए विशेष तौर से छात्रों के भविष्य के लिए एक चिंता का विषय है ! कई बार मैं सोचता हूं कि मैं शिक्षा के बारे में अच्छे से अच्छा लिखूँ , वर्तमान प्रणाली के बारे में विरोध की बात ना लिखूँ , कोई भी चुनौती की बात ना लिखूँ , कोई भी समस्या की बात ना लिखूं , केवल शिक्षा की प्रशंसा ही लिखूँ ! वर्तमान संदर्भ में जो भी कार्यरत शिक्षक हैं या छात्र हैं या प्रशासक हैं वह अपने ही विषय में , अपने ही संस्थान के विषय में अपने अनुभव नहीं लिखना चाहते !

क्या कारण है यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन मुझे यह लगता है कि उनको कुछ संकोच है या कुछ डर है ! किसी भी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए ! उच्च शिक्षा का संस्थान एक ऐसा संस्थान है जहां पर संस्थान ही नहीं , राज्य ही नहीं , देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होनी चाहिए और चर्चा के साथ-साथ उनके समाधान की भी बात होनी चाहिए ! लेकिन आजकल किसी कारणवश किसी भी संस्थान में सीमित विषयों पर ही चर्चा होती है , एक ही पहलू पर चर्चा होती है और मुख्यतःविद्या के क्षेत्र में चर्चा उसकी प्रशंसा के बारे में होती है और इसी कारण मैं सोचता हूं कि जमीनी हकीकत से बहुत अलग है इसी कारण से हमारी उच्च शिक्षा में कोई प्रगति नहीं हो रही , कोई समाधान नहीं हो रहा और आज भी हम विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालय की श्रेणी में बहुत नीचे हैं !

अब मैं भी क्या करूं मैं शिक्षा के बारे में अच्छा कैसे लिखूं जब कि मैं अपने अनुभव से और अपने मित्रों के अनुभव से यह सुनता हूं कि वर्तमान में हमारे विद्यार्थी एक वनस्पति शास्त्र के प्रायोगिक परीक्षा में पेड़ के बीज को मुर्गी का अंडा लिखते हैं , वह मेंढक के टैडपोल को हाथी का शुक्राणु लिखते हैं , अगर उनसे पूछा जाए की प्रोटीन की क्या विशेषताएं हैं और उनकी पहचान आप कैसे करेंगे तो वह सिर्फ अंडा लिखते हैं या जब विद्यार्थी बाल के आकार के आधार पर यह कहे की बास्केटबॉल पुरुष खेलते हैं , फुटबॉल महिला खेलती हैं और क्रिकेट बच्चे खेलते हैं, तब क्या किया जाए ! शिक्षकों के बिना छात्रों का कौशल विकास हो रहा है !

नए संस्थानो मे वर्षों तक नियमित संसाधन नहीं हैं , प्रयोगशाला नहीं है ! वर्षों तक कुलगुरु की नियुक्ति नहीं होती है ! ऐसे बहुत से उदाहरण सुनने को मिलते हैं ! विद्यार्थियों से विशेष तौर से आप पूछिए कि उनको उनके विषय के पुस्तकों के बारे में कुछ ज्ञान है तो वह सीधा-साधा जवाब देते हैं कि उन्होंने कोई पुस्तक पढ़ी नहीं और वह केवल शिक्षक के नोट्स से ही पढ़ते चले आ रहे हैं ! बड़ा आश्चर्य होता है कि उन्होंने अपने विषय का अध्ययन उचित ढंग से किया ही नहीं !

इसी प्रकार से मैं देखता हूं और सोचता हूं आज जो युवाओं के बेरोजगारी की बात होती है उससे ज्यादा जो चिंता की बात है कि आज के विद्यार्थियों के शिक्षा के ज्ञान के आधार पर उनको नौकरी देना बहुत ही मुश्किल काम है , क्योंकि शायद उनको वह ज्ञान नहीं है जो किसी भी नियोक्ता के लिए नौकरी देना सभव नहीं है ! बेरोजगारी उतना चिंता का विषय नहीं है जितना कि हमारे युवा रोजगार के लायक ही नहीं है !

ऐसा भी देखा गया है कि छात्रों ने कक्षाओं में आना कम से कम कर दिया है क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनको उनके कक्षा में कोई भी फेल नहीं कर सकता ! आजकल टेक्नोलॉजी के जमाने में अंको को कंप्यूटर के माध्यम से पोस्ट किया जाता है और ऐसे ऐसे प्रोग्राम बनते हैं जिसके अनुसार से अगर कोई भी शिक्षक विद्यार्थियों के अंको को अंकित करें तो कंप्यूटर का प्रोग्राम किसी भी छात्र के अंक यदि पास होने के लायक नहीं है और वह फेल हो सकता है तो कंप्यूटर एक्सेप्ट नहीं करता यहां तक भी देखा गया है कि अगर छात्र अनुपस्थित है उसको भी पास दिखाया जाता है !

विद्यार्थी कक्षाओं में आते नहीं है , प्रयोगशाला में प्रयोग नहीं करते और किसी महाविद्यालय में तो प्रयोगशाला होती नहीं है ! बड़े आश्चर्य की बात है कि उनको विश्वविद्यालय कैसे ! संबद्धता प्रदान कर देता है ! ऐसा भी देखा गया है कि छात्रों को प्रायोगिक परीक्षा में 80 से 90% अंक प्राप्त होते हैं या दिए जाते हैं जबकि विद्यार्थी को ज्ञान ही नहीं है ! उसने कभी प्रयोगशाला में प्रयोग किया ही नहीं !

यह बात समझ में तो नहीं आती लेकिन एक बात मान भी ली जाए , लेकिन ऐसा भी देखा गया है की परीक्षा के लिए जो शिक्षक नियुक्त होते हैं वह परीक्षा लेने ही नहीं जाते और उनको घर पर बैठे परीक्षा के बारे में सारा ज्ञान बता दिया जाता है ! वह अपने हस्ताक्षर कर देते हैं ! क्यों कर देते हैं यह आप स्वयं जान सकते हैं कि वो क्यों करते हैं ! इसके बारे में मैं यहां पर चर्चा नहीं करना चाहता ! मैं एक बार एक प्रश्न किया कि हम परीक्षा में विशेष तौर से प्रौयोगिकी परीक्षा में विद्यार्थियों ने जब कुछ भी सही नहीं क्या हुआ फिर भी उनको अंक दे दिए जाते हैं वह भी अच्छे से 90% तब , मुझको जवाब सुनने को यही मिला की कम ऐसे ही कुछ संस्थानों में प्रौद्योगिकी परीक्षाएं होती तो है , कुछ तो ऐसे संस्थान है जिसमें प्रौद्योगिकी परीक्षाएं होती ही नहीं है और उनको अंक फिर भी दे जाते हैं !

आज जब यह स्थिति है तो मैं कैसे मानलूं कि हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत सुचारू रूप से चल रही है ! चिंता की बात यह है कि इस विषय पर कोई भी कार्यरत शिक्षक या विद्यार्थी चर्चा करना नहीं चाहता और जब तक इन विषयों पर सामूहिक रूप से चर्चा नहीं होगी तब तक शिक्षा में सुधार होना बहुत ही मुश्किल काम है ! इसलिए शिक्षा का भविष्य क्या होगा यह बहुत चिंता का विषय है ! इस विषय में छात्र और शिक्षक तो जिम्मेदार हैं लेकिन साथ में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी मैं समझता हूं कि छात्रों के अभिभावक है !

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मैंने अपने 40 वर्ष के अनुभव मे बहुत कम अभिभावकों से शिकायत सुनी कि उनके बालक की कोई कक्षा नहीं होती या कक्षा सुचारू रूप से नहीं होती! हम शिक्षा को तभी सुधार सकते हैंया किसी भी विषय को तभी सुधार सकते हैं जब उसमें सब का सहयोग हो ! जब तक अभिभावक , छात्र और शिक्षक एकजुट होकर शिक्षा के बारे में चिंतन नहीं करेंगे , उसकी कमियों को उजागर नहीं करेंगे उसकी व्यवस्था को उजागर नहीं करेंगे , तब तक शिक्षा में कोई भी प्रगति होना बहुत आश्चर्यजनक है !

ऐसा अक्सर देखा गया है कि प्रशासन परीक्षा के समय बहुत सजग रहता है , यह अच्छी बात है और प्रशासन यह कोशिश करता है कि विद्यार्थी परीक्षा में नकल नहीं करें लेकिन एक इससे भी ज्यादा गंभीर बात है और चिंता की बात है, मैंने कई विद्यार्थियों से यह कहते हुए सुना है कि प्रशासन हमारे परीक्षा के समय तो बहुत चिंतित रहता है की परीक्षा में नकल नहीं हो लेकिन प्रशासन ने कभी यह नहीं सोचा या कभी यह प्रयास नहीं किया क्या हमारी कक्षाएं , हमारे शिक्षण सत्र सुचारू रूप से चलती हैं या नहीं ! शिक्षण स्थानो में शिक्षक है कि नहीं है , संस्थानों में प्रयोगशाला है कि नहीं है ! इस बात पर प्रशासन क्यों नहीं चिंता करता, प्रशासन क्यों नहीं इसके बारे में सोचता !

ऐसा भी देखा गया है कि प्रशासन क्षमता से कहीं अधिक विद्यार्थियों को प्रवेश दे देता है !! संस्थान में जब कि उसके सुचारू रूप से बैठने की व्यवस्था नहीं होती , प्रयोगशाला की व्यवस्था नहीं होती ! इस विषय के बारे मे जब भी कभी प्रशासन इस बात के बारे में बात करिए तो आश्चर्य की बात है कि प्रशासन यही कहता है कि छात्र तो कक्षा में आते ही नहीं है तो कोई आवश्यक नहीं है ! अधिक प्रवेश संस्थान को, छात्रों की फीस, के आधार पर कुछ आमदनी हो जाए ! जब यह सोच कोई भी संस्थान करता है या करेगा तो आप स्वयं सोच सकते हैं कि हम किसी ओर जा रहे हैं !

(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर हैं)

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