सुरेन्द्र दुबे
इन दिनों सपा और बसपा के शासनकाल में विभिन्न स्तरों पर हुए घोटालों की जांच में अचानक तेजी आ गई है। कुछ घोटाले विभिन्न विभागों में सरकारी नियुक्तियों को लेकर हैं तो कुछ घोटाले चीनी मिलों की बिक्री व खनन में नियम व कानून को दरकिनार कर पट्टे दिए जाने को लेकर जांचे चल रहीं हैं। ये जांचे कई वर्षों से चल रहीं हैं। पर इनमें अचानक तेजीं आ गईं हैं, जिसको लेकर इस तरह के आरोप लग रहें हैं कि सत्ताधारी दल इन जांचों की आड़ में सपा व बसपा के कद्दावर नेताओं को फंसाने का उपक्रम कर रही है। इसके अलग-अलग निहितार्थ लगाए जा रहे हैं।
कुछ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का मानना है कि ब्यूरोक्रेसी को अपने दबाव में लेने के लिए सत्ताधारी दल इस तरह की कार्रवाईयां कर रहा है, ताकि उनसे मनमाने काम लिए जा सकें। परंतु राजनैतिक पंडितों का मानना है कि इन कार्रवाईयों का असली मकसद सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती को अर्दब में लेना है ताकि ये लोग भय व दबाव के जंजाल में फंसे रहे और भाजपा या केंद्र सरकार के बड़े नेताओं के विरूद्ध कोई मोर्चा न खोलने पाए।
अगर हम चीनी मिलों की बिक्री व खनन पट्टों के वितरण की कार्रवाईयों को खंगाले तो एक बात साफ नजर आती है कि किसी न किसी स्तर पर गड़बडिय़ां तो हुई हैं। अपने लोगों को उपक्रम भी किया गया है।
जाहिर है इस प्रक्रिया में लक्ष्मी महारानी की भी कोई न कोई भूमिका रही होगी। पर बदले परिदृश्य में ये मानना सच्चाई के काफी करीब हो सकता है कि सत्ताधारी पार्टी अपने प्रचंड बहुमत का उपयोग या कहें तो दुरुपयोग करके विपक्ष को पूरी तरह घुटने टेकने को मजबूर करने की कवायद हो सकती है।
हाल ही में लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कर्नाटक में चल रहे राजनैतिक घटनाक्रम पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि भाजपा एक पोचिंग पार्टी की तरह काम कर रही है। उन्होंने पोचिंग शब्द हिंदी अनुवाद करते हुए भाजपा को शिकार करने वाली पार्टी तक बता डाला।
उनका आरोप था कि कर्नाटक में भाजपा कांग्रेस के विधायकों को डरा धमका कर तथा धन का लालच देकर सरकार गिराने में लगी हुई है। अब कल गोवा में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 विधायकों ने अपना अलग दल बनाकर भाजपा में शामिल हो गए हैं। अब कर्नाटक और गोवा घटनाओं को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो अधीर रंजन चौधरी के आरोपों में काफी दम लगता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कहा था कि वह भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने चाहते हैं। इसलिए भाजपा के नेता चाहे जो तर्क दें परंतु कांग्रेस नेताओं के इन आरोपों में काफी दम लगता है कि कर्नाटक व गोवा की घटनाएं कांगेस मुक्त भारत की ओर बढ़ता एक महत्वपूर्ण कदम है।
उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा शासनकाल में चीनी मिलों के कथित घोटाले तथा मनमाने ढंग से खनन पट्टों के वितरण से संबंधित अधिकारियों के यहां छापेमारी को भी राजनैतिक चश्मे से देखा जा रहा है।
खनन मामले में सबसे चर्चित और बदनाम नाम गायत्री प्रसाद प्रजापति का रहा है, जिनके कारनामों के कारण सपा परिवार में भी काफी झगड़ा हुआ और अखिलेश यादव को वर्ष 2017 के चुनान में इसके खामियाजे के रूप में अपनी सरकार गंवानी पड़ी। इस मामले को लेकर गत नौ जुलाई को सीबीआई ने लखनऊ में बड़ी कार्रवाई करते हुए पांच आईएएस अफसरों पर छापे मारे।
पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति के यहां भी छापा मारा गया तथा उनके समय के प्रमुख सचिव खनन जीवेश नंदन, डीएम फतेहपुर रहे अभय सिंह (वर्तमान में डीएम बुलंदशहर), तत्कालीन डीएम देवरिया विवेक, तत्कालीन एडीएम देवीशरण उपाध्याय और तत्कालीन विशेष सचिव खनन संतोष कुमार के खिलाफ दिल्ली में दो केस दर्ज किए हैं।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने चीनी मिल बिक्री घोटाले के मामले में यूपी की पूर्व सीएम मायावती के पूर्व मुख्य सचिव नेतराम के आवास सहित 14 स्थानों पर छापे मारे हैं। सीबीआई ने मंगलवार को ये छापे इस मामले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए डाले।
गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो मायावती के यूपी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान यूपी की 21 चीनी मिलों को निजी कंपनियों को बेचा गया था। लोकसभा चुनाव से पहले इसी साल 25 अप्रैल को सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की थी।
इस प्रक्रिया में सात चीनी मिलों को बंद कर दिया गया था। सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक साल 2010-11 के दौरान 11 चीनी मिलों को बेचा गया था। मायावती साल 2007 से 2012 तक यूपी की मुख्यमंत्री थीं।
आरोप है कि चीनी मिलों की गलत बिक्री से करीब 1179 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सीबीआई जांच में ये बात सामने आई थी कि यह मामला मनी लॉन्ड्रिंग का भी है, जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भी इस मामले की जांच शुरू कर दी है।
सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि रिटायर्ड आईएएस अधिकारी के लखनऊ के गोमती नगर के आवास के अलावा एक अन्य रिटायर्ड आईएएस विनय प्रिय दुबे के लखनऊ के अलीगंज स्थित आवास पर भी छापे डाले गए।
चीनी मिलों की बिक्री घोटाले के दौरान नेतराम कृषि विभाग में प्रमुख सचिव थे और उनके पास आबकारी, गन्ना, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का भी जिम्मा था। विनय दुबे उस समय यूपी स्टेट शुगर कॉरपोरेशन में एमडी थे।
इस दौरान सहारनपुर के पूर्व एमएलसी और बसपा नेता इकबाल सिंह के दो बेटों के आवास पर भी छापा डाला गया। इसके अलावा इस सिलसिले में चार्टर्ड एकाउंटेंट एस.के. गुप्ता के दिल्ली स्थित बारखम्भा रोड और ग्रेटर कैलाश के ठिकानों पर छापा डाला गया। इस मामले के एक और मुख्य आरोपी सौरभ मुकंद के सहारनपुर स्थित आवास पर भी छापा डाला गया।
सीबीआई के एफआईआर में दिल्ली के रोहिणी निवासी, राकेश शर्मा और उनकी पत्नी सुमन शर्मा, इंदिरापुरम गाजियाबाद के धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर के मुकंद, जावेद, मोहम्मद नसीम अहमद और मोहम्मद वाजिद का नाम भी शामिल है।
लोकसभा चुनाव के बीच मायावती राज में बेची गई चीनी मिलों का केस अब प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में भी आ गया है. प्रवर्तन निदेशालय अब इस केस में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करेगा. मामले की जांच कर रही सीबीआई को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े दस्तावेज मिले थे, जो ईडी को सौंप दिए गए हैं।
आरोप है कि तत्कालीन सरकार ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए फर्जी बैलेंस शीट और निवेश के फर्जी कागजातों के आधार पर नीलामी में शामिल होने के लिए योग्य मान लिया।
इस तरह ज्यादातर चीनी मिलें इस कंपनी को औने-पौने दामों में बेच दी गई। इस कंपनी का नाम नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड है। जिस वक्त ये चीनी मिल नम्रता कंपनी को बेची गई थीं, उस वक्त यूपी में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी और मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं।
सीबीआई के मुताबिक देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, छितौनी और बाराबंकी की सात चीनी मिलों को खरीदने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया। मामला उनके शासन काल के दौरान वर्ष 2010-11 में बेची गई 21 चीनी मिलों से जुड़ा है। बताया जा रहा है इन चीनी मिलों को बेचे जाने से प्रदेश सरकार को 1,179 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
बसपा से अलग होकर कांग्रेस में शामिल हुए कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी ने आरोप लगाया था चीनी मिलों की बिक्री के घोटाले में सपा और बसपा दोनों सरकारें शामिल थी, इसीलिए सपा और बसपा ने चुनावी गठबंधन बनाया। ये बात अलग है कि ये गठबंधन भाजपा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया और अब तो ये गठबंधन टूट भी गया है।
इसके जवाब में मायावती ने कहा था ये चीनी मिलें नसीमुद्दीन के हस्ताक्षर से बेची गई थी। जो 21 चीनी मिलें बेची गई थी उनमें 10 मिलें चल रहीं थी और इन मिलों की कीमत 2,000 करोड़ रुपए से भी अधिक थी।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस घोटाले की जांच कराने के लिए सीबीआई को 12 अप्रैल 2018 को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि प्रदेश की जो भी 21 चीनी मिलें बीचे गईं, वह सब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनाई गईं बोगस कंपनियों ने खरीदीं। जो चीनी मिलें खरीदी गईं उनमें से देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, चित्तौनी और बाराबंकी की बंद पड़ी सात चीनी मिलें भी शामिल थीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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