जुबिली न्यूज डेस्क
अयोध्या में अभी राम मंदिर का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ है, वहीं उस तक पहुंच के लिए बनाए जा रहे चौड़े किए जा रहे पथों का साइड इफेक्ट सामने आने लग गए हैं. गौरतलब है कि राम जन्मभूमि पथ का निर्माण भी अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन राम मंदिर में, उसकी ओर जाने वाले पारंपरिक मार्ग की ओर बनाए जा रहे परकोटे में कुछ महत्वपूर्ण निर्माणों के मद्देनजर श्री राम जन्ममूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने उस मार्ग से श्रद्धालुओं व दर्शनार्थियों का प्रवेश रोकने की जरूरत महसूस की, तो इस जरूरत को पूरा करने के लिए राम जन्मभूमि पथ खोल दिया गया. जानकारों के अनुसार, यह पथ पारंपरिक मार्ग की अपेक्षा राम मंदिर की दूरी आधा किलोमीटर कम भी कर देता है.
इनमें से एक के प्रबंधन से जुड़े पं. नीरज गोस्वामी बताते हैं कि न सिर्फ इन्हीं एक दर्जन बल्कि अयोध्या के दूसरे ज्यादातर मंदिरों में भी भगवान के भोग-राग के साथ महंतों, पुजारियों व साधु-संतों के लिए उपलब्ध कराई जाने वाली व्यवस्थाएं व सुविधाएं श्रद्धालुओं व दर्शनार्थियों के चढ़ावे व दान की रकम की बदौलत ही संभव होती रही हैं.
इस कारण अब उनके संकट में पड़ जाने का अंदेशा है, क्योंकि श्रद्धालु व दर्शनार्थी अब ‘भव्य’ राम मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद राम जन्मभूमि पथ से ही, जो कई लोगों के अनुसार भव्य राम मंदिर के अनुरूप ही भव्यता का पर्याय है, वापस चले जा रहे हैं, जबकि पारंपरिक मार्ग के मंदिर उनकी बाट जोहते रह जा रहे हैं.
इन मंदिरों के लिए राहत की बात इतनी-सी ही है कि आगामी जनवरी में मंदिर निर्माण पूरा हो जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दी जाएगी तो, कहा जा रहा है कि, तय किया जाएगा कि उनके रास्ते राम मंदिर जाने वाले पारंपरिक मार्ग का किस तरह उपयोग किया जाए.
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आम निवासियों को पहले से ही था अंदेशा
अयोध्या के आम निवासियों को यह अंदेशा तो पहले से ही था कि नगरी की भव्यता, चाक्चिक्य, प्रवाह व चढ़ावा सब बरबस किसी एक मंदिर या चुनिंदा सुंदरीकृत स्थलों के नाम कर दिया जाएगा, तो उसकी सबसे ज्यादा कीमत उन छोटे मंदिरों को ही चुकानी पडे़गी, जो आकाशवृत्ति पर निर्भर हैं और आय के अत्यल्प स्रोतों के कारण जिनके पास इतना भी धन नहीं हैं कि वे ठीक से अपना रंग-रोगन करा लें और दैनन्दिन व्यवस्थाओं को सुचारु रुप से चला सकें.
मौर्य कहते हैं कि फिर भी क्षीण-सी ही सही, कई हलकों में एक यह उम्मीद भी थी कि खुद को हिंदुत्व की अलंबरदार कहने वाली शक्तियों और उनकी सत्ताओं के लिए इन छोटे मंदिरों की, जिनकी संख्या बड़े मंदिरों की कई गुनी है, सर्वथा अनदेखी संभव नहीं होगी. लेकिन अफसोस कि इस अनदेखी ने समय से कुछ पहले ही दस्तक दे दी है और आगे चलकर उसके अनेक दूसरे मंदिरों को भी अपनी जद में ले लेने का अंदेशा प्रबल है. यह तब है जब दूसरी ओर ‘स्मार्ट टेंपल मिशन’ और ‘टेंपल कनेक्ट कार्यक्रम’ का शोर मचाया जा रहा है.
वे अपनी बात में इतना और जोड़ते हैं, ‘चूंकि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जाति विशेष के वर्चस्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवारियों के प्रभुत्व वाले ट्रस्ट की देख-रेख में कराया जा रहा है, इसलिए उससे व्यापक हिंदू समाज के बजाय सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हितों की रक्षा की अपेक्षा रखनी चाहिए.
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जनवरी में राम मंदिर की प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा निकट आ रही है, अयोध्या में विभिन्न पथों के निर्माण व चौड़ीकरण को लेकर हड़बड़ी बढ़ती जा रही है क्योंकि तेजी लाने की ‘ऊपर’ की आज्ञाओं के बावजूद अभी बहुत-सा काम बाकी पड़ा है.मिसाल के तौर पर, पंचकोसी परिक्रमा मार्ग पर उसके चौड़ीकरण की जद में आने वाले निर्माणों के ध्वस्तीकरण की अभी तक महज 52.28 प्रतिशत और चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर 63.65 प्रतिशत कार्रवाई ही पूरी हुई है.
इसे देखते हुए मंडलायुक्त गौरव दयाल ने ज्यादा जेसीबी मशीने लगाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई जल्द निपटाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही रामपथ में ऐसे हिस्सों पर जहां सभी यूटीलिटी संबंधी काम हो चुके हैं, सड़क निर्माण कार्य तत्काल शुरू कराने का निर्देश भी.
ट्रस्ट अध्यक्ष के जन्मोत्सव में गबन
इस बीच श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास का गत 26 मई से दो जून के बीच मनाया गया जन्मोत्सव अचानक गलत कारणों से चर्चा में आ गया है. खबरों के अनुसार, उक्त जन्मोत्सव पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के सिलसिले में आंध्र प्रदेश व कर्नाटक से आए दो आयोजकों ने एक सर्विस प्रदाता के नौ 9 लाख रुपये हड़प लिए है. सर्विस प्रदाता द्वारा बार-बार मांगे जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया तो उसने उन दोनों के साथ मध्यस्थ के खिलाफ भी गबन की रिपोर्ट दर्ज करा दी है.