Friday - 25 October 2024 - 4:18 PM

क्या वाकई राजस्थान में कांग्रेस के लिए संकट खत्म हो चुका है?

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले एक माह से राजस्थान कांग्रेस और सत्ता में चल रहे सियासी ड्रामे का सोमवार को पटाक्षेप हो गया। कांग्रेस के बागी विधायक सचिन पायलट और उनके साथी कांग्रेस विधायक सोमवार की रात को घर लौट आए। इससे पार्टी में खुशी की लहर है। अब उम्मीद की जा रही है कि अब न तो गहलोत सरकार को कोई खतरा है और न ही पार्टी में कोई विद्रोह। लेकिन सवाल है कि शर्तों के साथ सचिन पायलट की घर वापसी से क्या वाकई राजस्थान में पार्टी के लिए संकट खत्म हो चुका है?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पायलट के खेमे के बीच करीब एक माह तक लड़ाई चली। सचिन फ्रंट पर आ गए लेकिन गहलोत राजनीतिक के चतुर खिलाड़ी की तरह पायलट को मात दे दिए। इस लड़ाई में नुकसान दोनों खेमों को उठाना पड़ा।

ये भी पढ़े : जनता की नाराजगी पर PM समेत पूरी सरकार ने दे दिया इस्तीफा

ये भी पढ़े : इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है सिंगापुर

ये भी पढ़े : सवालों के घेरे में फसल बीमा योजना

फिलहाल पायलट की घर वापसी से कांग्रेस आलाकमान ने राहत की सांस जरूर ली होगी, क्योंकि पायलट की वापसी कराकर उसने एक तीर से दो निशाना साधा है। पहला सिंधिया के बाद पायलट के बगावत करने पर बीजेपी द्वारा लगातार नेतृत्व क्षमता को लेकर उठाये जा रहे सवालों का उसने जवाब दिया और दूसरा बीजेपी के राजस्थान में सरकार बनाने के सपने को तोड़ दिया।

अब जबकि पायलट और उनके समर्थक विधायकों की वापसी हो चुकी है तो यह तो तय है कि गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन सवाल यह है कि गहलोत-पायलट के इस विवाद को सुलझाने का क्या फॉर्मूला निकाला गया और दूसरा यह कि पायलट कांग्रेस में लौट तो आए हैं लेकिन आगे का उनका रास्ता क्या होगा।

पायलट ने कुछ शर्तों के साथ घर वापसी की है। जाहिर है जहां शर्त हो वहां मुस्कुराकर गले मिलना सिर्फ एक रस्म अदायगी ही मानी जाती है। पायलट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री जैसे अहम पद गंवा चुके हैं। उन्होंने इस संकट के दौरान बार-बार मान-सम्मान और स्वाभिमान की बात की है, इसलिए यह लाजिमी होगा कि अगर वह राजस्थान की राजनीति में वापस लौटेंगे तो वे इन भारी-भरकम पदों पर किसी भी सूरत में समझौता नहीं करना चाहेंगे।

ये भी पढ़े : रूस की कोरोना वैक्सीन पर इस देश के राष्ट्रपति को है पूरा भरोसा

ये भी पढ़े : गहलोत हैं कांग्रेस के असली चाणक्य

ये भी पढ़े : सऊदी अरब की शान को कैसे लगा झटका?

पायलट खेमे के विद्रोह के खत्म हो जाने से यह तो स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ अदालती लड़ाई चल रही थी और दूसरी तरफ पूरे मामले को पार्टी के अंदर ही सुलझाने लेने की कोशिश चल रही थी। ऐसा बताया जा रहा है कि जिस तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने से पार्टी कमजोर हो गई, पार्टी हाई कमान राजस्थान में भी वैसी ही स्थिति बन जाने को लेकर चिंतित था।

इसीलिए पायलट के बगावत और गहलोत के पायलट को खरी-खोटी सुनाने के बावजूद गांधी परिवार ने सचिन के साथ संवाद के द्वार हमेशा खुले रखा। सही समय आने पर खुद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाडरा पायलट से मिले और उनकी वापसी की शर्तें तय कीं।

10 अगस्त को कांग्रेस ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि सचिन पायलट राहुल गांधी से मिले और उनके समक्ष अपनी शिकायतें रखीं। दोनों नेताओं के बीच “स्पष्ट, खुली और निर्णायक” चर्चा हुई। बयान में यह भी बताया गया कि पायलट ने राजस्थान में पार्टी और पार्टी की सरकार के हित में काम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई।

फिर से मेल होने की शर्तों के अनुसार अब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पायलट और उनके साथी विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन करेंगी। पायलट और 18 विधायक जयपुर लौट कर पार्टी की बैठकों में भाग लेंगे और फिर 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधान सभा के सत्र की बैठकों में भी शामिल होंगे।

कैसे मिटेगी पायटल और गहलोत के बीच की दूरी

पायलट की वापसी के बाद गहलोत सरकार को कोई संकट नहीं है पर पार्टी के राजस्थान में भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि गहलोत और पायलट के बीच की दूरियां कितनी कम हुई हैं।

गहलोत और पायलट के बीच मनमुटाव किस कदर है यह किसी से छिपा नहीं है। सचिन को पार्टी से बाहर करने के लिए गहलोत कोई कसर नहीं छोड़े। उनकी पूरी कोशिश रही कि पायलट की घर वापसी न हो। ये बाते पायलट भी जानते हैं। ऐसे हालात में वह गहलोत के साथ कैसे काम करेंगे यह बड़ा सवाल है।

बताया जा रहा है कि पायलट लंबे समय से गहलोत द्वारा नजरअंदाज किए जाने की शिकायत कर रहे थे और खुद अपने लिए मुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे थे। स्पष्ट है कि उनकी यह मांग तो मानी नहीं गई है। दूसरी तरफ गहलोत ने तो सार्वजनिक रूप से पायलट को “निकम्मा” और “षडयंत्रकारी दिमाग वाला” तक कह दिया था। इतने वैमनस्य के बाद पार्टी इन दोनों नेताओं के बीच सामंजस्य कैसे बनाएगी?

माना जा रहा है कि पायलट को राज्य के बाहर पार्टी में कोई केंद्रीय जिम्मेदारी दी जाएगी ताकि दोनों नेता अलग अलग काम कर सकें और एक दूसरे के रास्ते में नहीं आएं, लेकिन यह व्यवस्था आखिर कब तक सुचारु रूप से चल पाएगी, यह तो भविष्य ही बताएगा।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com