प्रीति सिंह
दुनिया के कई देशों में प्लास्टिक पर पाबंदी लगी है। भारत में भी कई सालों से जोर-शोर से प्लास्टिक पर पाबंदी की मांग उठती रही है। हालांकि भारत के कई राज्यों में प्लास्टिक प्रतिबंधित है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। वर्तमान में प्लास्टिक मानवजाति के लिए ही नहीं बल्कि हर तरह के जीव के लिए दुश्मन के तौर पर देखा जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया बेहाल है। समुंद्र में जीव-जंतुओं वजूद पर संकट खड़ा हो गया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने मन के बात कार्यक्रम में आगामी 2 अक्टूबर से प्लास्टिक के खिलाफ अभियान शुरु करने का संदेश दिया है।
प्लास्टिक से तौबा करना वक्त की जरूरत बन चुकी है। 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से भी प्रधानमंत्री मोदी एक बार प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के खिलाफ अभियान छेड़ने की जरूरत जता चुके हैं। पीएम मोदी के संदेश से तो ऐसा ही लग रहा है कि वह इस अभियान को आंदोलन का रूप देना चाहते हैं। फिलहाल यह आंदोलन करने का ही समय है।
पर्यावरण के लिए प्लास्टिक का कचरा इसलिए दुश्मन बन गया है, क्योंकि उसका क्षरण सैकड़ों वर्षों में होता है। यह संकट अब गंभीर रूप ले चुका है। अब तो एक बार प्रयोग होने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद करने की भी बात कही जा रही है। ऐसी स्थिति आने से पहले हम खुद सचेत हो जाए तो इस गंभीर संकट से बचा जा सकता है। यह सच है कि प्लास्टिक के सामान से तभी पीछा छूटेगा जब इसका विकल्प उपलब्ध होगा। फिलहाल यह अच्छी खबर है कि सरकारी संस्थान एक बार प्रयोग में आने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं का इस्तेमाल बंद करने जा रहे हैं।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया प्लास्टिक के कचरे से परेशान है। नदी, समंदर, पहाड़, द्वीप या मैदान, हर जगह प्लास्टिक के कचरे से प्रदूषण फैल रहा है और इससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। प्लास्टिक के कचरे से सबसे ज्यादा नुकसान समुद्री जीवों को हो रहा है। अधिकांश बीच पर प्लास्टिक बोतल, डिस्पोजल, पॉलीथिन और सिगरेट जगह-जगह पड़े दिखते हैं और समुद्र की लहरें इसे अपने साथ लेकर चली जाती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार समुद्र प्लास्टिक कचरे से बेहाल हैं और समुद्री जीव-जंतुओं का इससे दम घुट रहा है। यह धरती के लिए काफी हानिकारक है। ये आंकड़े लोगों को सतर्क होने के लिए आगाह कर रहे हैं। ये चेतावनी दे रहे हैं कि यदि अब भी सचेत न हुए तो ये प्लास्टिक कचरा भयानक तबाही लेकर आयेगा, जो सब पर भारी पड़ेगा।
लोगों को समुद्र की लहरें बहुत आकर्षित करती है लेकिन वह अपने भीतर कितना कचरा रखे हुए है यह जानकर आपको हैरानी होगी। 2017 में प्रकाशित एक शोध के हवाले से स्लोएक्टिव वेबसाइट ने लिखा है कि हर साल समुद्र में 1.15 से 2.41 मिलियन टन मतलब 24 लाख टन तक प्लास्टिक कचरा जाता था। यह कचरा नदियों के माध्यम से समुद्र में जाता है। 20 प्रमुख नदियों पर अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि ज्यादातर एशिया की नदियां हैं जो समुद्रों में भारी मात्रा में कचरा पहुंचा रही हैं और दुनिया भर की नदियों से जो प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है, समुद्री कचरे का 67 फीसदी होता है।
दरअसल पिछले 70 सालों में प्लास्टिक की जरूरतों मे बेतहाशा वृद्धि हुई है। प्लास्टिक ओशियन संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में 300 मिलियन यानी 30 करोड़ टन से ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है। इसमें से आधा प्लास्टिक डिस्पोजेबल सामान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मतलब एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। इसका नतीजा ये होता है कि हर साल 80 लाख से 1 करोड़ टन तक प्लास्टिक वेस्ट समुद्रों में जाता है।
वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट ने एक अनुमान के हिसाब से आंकड़ा दिया है कि एक साल में एक अमेरिकी या यूरोपीय व्यक्ति करीब 100 किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है और इसमें से ज्यादातर इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है। वहीं दूसरी ओर एशिया में प्रति व्यक्ति का आंकड़ा 20 किलोग्राम प्रति वर्ष का है। एशिया में इस आंकड़े के कम होने के पीछे आर्थिक विकास कम होना है।
प्लास्टिक पर निर्भरता ही सारी समस्या की जड़ है। दरअसल खाने-पीने की सारी वस्तुएं प्लास्टिक के पैकेट में आ रही हैं। प्लास्टिक के चलन के पीछे का कारण है कि ये लंबे समय तक बना रहता है और टूटता नहीं है। मतलब प्लास्टिक पूरी तरह से नष्ट नहीं हो सकता। विज्ञान के मुताबिक सूरज की गर्मी या ज्यादा तापमान के संपर्क में आने से प्लास्टिक कणों में टूटता है। समुद्र के मामले में ये होता है कि समुद्र के भीतर प्लास्टिक डायरेक्ट धूप के संपर्क में नहीं आता जिसकी वजह से इसके नष्ट होने में ज्यादा वक्त लगता है। जब तक पुराना प्लास्टिक नष्ट होने के कगार पर पहुंचता है तब तक नया कचरा आ चुका होता है।
भारतीय प्रधानमंत्री की चिंता यूं ही नहीं है। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के मुताबिक अकेले भारत में प्रति वर्ष 56 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है। पूरी दुनिया द्वारा जितना कूड़ा सालाना समुद्र में डम्प किया जाता है उसका 60 प्रतिशत कूड़ा अकेले भारत डम्प करता है। भारतीय प्रति दिन 15000 टन प्लास्टिक कचरें में फेंकते हैं।
फिलहाल अब वक्त आ गया है कि हम सचेत हो जाए। इनफोसिस, कोका-कोला और हिलटन जैसी और भी कई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने में मदद करने का आश्वासन दिया है। इसके अलावा री-साइकिल, री-यूज और रिड्यूज, इन तीन फार्मूले को अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है। हालांकि भारत सरकार ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक के बैग पर पहले से ही पूरी तरह से रोक लगा रखी है, लेकिन यह काफी नहीं है। कोई भी आंदोलन तभी सफल होता है जब उसमें आमजन की भागीदारी हो। इसलिए प्लास्टिक कचरे से मुक्ति तभी मिलेगी जब आम लोग उसमें हर संभव तरीके से अपना सहयोग देंगे।
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