न्यूज डेस्क
नागरिकता संसोधन कानून को लेकर जब उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन के दौरान उपद्रवियों ने उत्पाद मचाया था तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को जिम्मेदार ठहराया था। प्रशासन ने कहा था कि PFI आतंकी गतिविधियों में लिप्त संगठन है। इसके बाद से पीएफआई काफी दिनों तक चर्चा में रहा। योगी सरकार ने तो केंद्रीय गृह मंत्रालय से पीएफआई पर बैन लगाने की मांग भी की है।
पीएफआई पर बड़ी कार्रवाई करते हुए यूपी पुलिस ने यूपी प्रमुख वसीम के साथ-साथ संगठन के 25 लोगों को गिरफ्तार किया था। उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि असम में पीएफआई से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने पीएफआई को लेकर बड़ा बयान दिया और कहा कि उनके पास पर्याप्त सुबूत है कि पीएफआई एक आतंकी संगठन है। इसके बाद दिल्ली में पीएफआई ने एक प्रेसवार्ता में सफाई देते हुए कहा कि पुलिस प्रदर्शनों को षड्यंत्र का हिस्सा बताकर पीएफआई को बदनाम कर रही है।
फिलहाल अब लोगों के जेहन में पीएफआई के बारे में कई सवाल आ रहा है। क्या पीएफआई सच में आतंकी संगठन है ? यह संगठन कौन सा काम करता है ? इन घटनाओं में पीएफआई की भूमिका क्या रही है ?
Praveen Kumar, IG (Law & Order), Uttar Pradesh: 25 persons affiliated with Popular Front of India (PFI) have been arrested across the state, for their involvement in different criminal activities. pic.twitter.com/1ztLLpAvBX
— ANI UP (@ANINewsUP) January 1, 2020
कैसे पड़ी पीएफआई की नींव
पीएफआई का मूल कार्यक्षेत्र केरल रहा है। पीएफआई प्रकाश में 2006 में आया था। पीएफआई के बारे में जानने से पहले आपको एनडीएफ (NDF) के बारे में जानना होगा। 1992 में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया उसके बाद 1993 में एनडीएफ का गठन हुआ। एनडीएफ का भी कार्यक्षेत्र मूलरूप से केरल रहा।
एनडीएफ का कामकाज अल्पसंख्यकों खासकर केरल के मुस्लिमों के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर केन्द्रित था। एनडीएफ के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इसने सामाजिक और आर्थिक मुद्दों का दायरा बढ़ाकर मिशनरी के कामों तक ला दिया। मतलब, दूसरे धर्मों के बीच इस्लाम के संदेश को पहुंचाना। इसे ईसाई संगठनों के मिशनरी कार्य की तरह देखा गया। ऐसा भी कहा गया कि एनडीएफ उग्र तरीके से धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहा है। उस समय कुछ राजनीतिक संगठन एनडीएफ का नाम एक सांप्रदायिक संगठन की तरह लेने लगे।
साल 2002 में केरल के कोझिकोड के मराड तट पर मुस्लिमों की भीड़ द्वारा 8 हिंदुओं की हत्या कर दी गई। इस मामले में एनडीएफ नाम आया था। इस मामले में कई लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, लेकिन एनडीएफ ने साफ कहा कि गिरफ्तार हुए लोग उसके संगठन के सदस्य नहीं हैं। जब घटना की सीबीआई जांच की मांग उठी, तो एनडीएफ ने कहा कि सीबीआई जांच का स्वागत है।
बीजेपी ने एनडीएफ पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े होने का भी आरोप लगाया था। इस संगठन पर विदेश से पैसे लेने का भी आरोप लगा था लेकिन समय-समय पर एनडीएफ ने इन सभी आरोपों को नकार दिया था।
वर्ष 2004 में साउथ इंडिया काउंसिल का गठन हुआ। इस काउंसिल में केरल के नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, कर्नाटक के फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिथ नीति पासरई ने भाग लिया। इन सभी का फोकस मुस्लिम समुदाय के विकास और आरक्षण पर था। फिर आया साल 2006 और प्रकाश में आया पीएफआई। इन तीन बड़े संगठनों के विलय से मिलकर तैयार हुआ एक फेडरेशन।
साल 2009 में आंध्र प्रदेश, गोवा, राजस्थान, मणिपुर और पश्चिम बंगाल के एक-एक संगठनों का भी विलय पीएफआई क्कस्नढ्ढ में किया गया। धीरे-धीरे संगठन बड़ा होता रहा। पीएफआई के राष्ट्रीय सचिव अनीस के मुताबिक, इस वक्त संगठन के 8 लाख से ज़्यादा सदस्य देश के कई राज्यों में हैं।
पीएफआई अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को हमेशा से नकारता रहा है लेकिन उसके विकिपीडिया पेज पर देखेंगे तो यहां लिखा है कि ये एक चरमपंथी और इस्लामिक उग्रवादी संगठन है। इस बारे में अनीस का कहना है कि कि विकिपीडिया पेज पर संगठन पर लगाए गए बहुत सारे आरोप तथ्यों की तरह लिख दिए गए हैं, जबकि उनका सच्चाई से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है।
इस संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि पीएफआई का काम मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए काम करना है। इसके लिए पीएफआई समय-समय पर वर्कशॉप और हेल्प प्रोग्राम आयोजित करवाता रहता है। इसके साथ ही बिहार समेत कई राज्यों में बाढ़ के दौरान पीएफआई ने राहत कार्य को अंजाम दिया है।
यदि हम पीएफआई के कामकाज का आंकलन करें तो इसका सामाजिक के साथ-साथ राजनीति में भी दखल है।Social Democratic Party of India (SDPI) एक राजनीतिक पार्टी है, जो PFI से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही SDPI Social Democratic Trade Union, PFI का एक मजदूर संगठन है।
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