जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। बंगाल चुनाव के बाद से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों में खटास देखने को मिल रही है। ममता बनर्जी दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुट गई है।
तृणमूल कांग्रेस अब बंगाल के बाहर भी अपना विस्तार करना चाहती है। इसके आलावा कांग्रेस और टीएमसी के संबंधों में उस समय दरार आ गई थी जब तृणमूल ने दावा किया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी नहीं बल्कि पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनकर उभरी हैं।
इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने कांग्रेस मुक्त विपक्ष तैयार करने की कोशिशे शुरू कर दी है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘यदि सभी क्षेत्रीय दल एक साथ आते हैं तो फिर भाजपा को हराना आसान होगा।’ ऐसे में ममता का पूरा जोर क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में नज़र आ रहा है।
मुंबई में सिविल सोसायटी के सदस्यों से बात करते हुए ममता ने बताया है कि कैसे बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। ममता बनर्जी ने मंगलवार को ही एनसीपी के चीफ शरद पवार और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे से मुलाकात की थी।
अभी हाल में ही ममता ने सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं करने का फैसला किया था जबकि मॉनसून सत्र में पेगासस और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस की तरफ से संसद की रणनीति बनाने को लेकर बुलाई गई विपक्षी पार्टियों की बैठक से तृणमूल कांग्रेस ने किनारा किया था।
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गौरतलब है कि बंगाल की विभिन्न मांगों को लेकर पिछले सप्ताह ममता बनर्जी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। फिलहाल ममता की उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ मुलाकात ऐसे समय में होने वाली है, जब टीएमसी और कांग्रेस का झगड़ा जगजाहिर हो चुका है।
बता दे कि टीएमसी ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी का वैकल्पिक चेहरा बनने में राहुल गांधी विफल रहे हैं, इसलिए ममता को ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिए।हालांकि, बंगाल में कांग्रेस ने टीएमसी के दावे को ज्यादा महत्व देने से इनकार करते हुए कहा कि यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि पीएम मोदी का वैकल्पिक चेहरा कौन बनेगा।
दरअसल शरद पवार और उद्धव ठाकरे महाविकास अघाड़ी गठबंधन में कांग्रेस के गठबंधन पार्टनर हैं। यानी ममता एमवीए के तीन साथियों में से दो से ही मुलाकात करेंगी।
इसके पहले जब ममता बनर्जी दिल्ली दौरे पर आईं थीं तो उनकी मौजूदगी में कीर्ति आजाद से लेकर कई दिगग्ज नेता टीएमसी में शामिल हुए थे। अब जब वह मुंबई दौरे पर जा रही हैं तो ऐसे में वहां भी इसी तरह के खेला होने की उम्मीद है।
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टीएमसी मुखिया की बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि तृणमूल देश में 2024 के आम चुनावों से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयासों के खुद का दायरा राष्ट्रीय करना चाहती है तो वहीं कांग्रेस विपक्षी दलों के खेमे का नेतृत्व करना चाहती है।
यही कारण है कि टीएमसी बंगाल से बाहर निकलकर अब अन्य राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गई है। इधर, संसद में भी टीएमसी ने कांग्रेस से दूरी बनाए हुए है।
सोमवार को तृणमूल कांग्रेस संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी नेताओं की बैठक में शामिल नहीं हुई और संसद भवन के अंदर अपना अलग विरोध प्रदर्शन किया।
बता दें कि टीएमसी ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी का वैकल्पिक चेहरा बनने में राहुल गांधी विफल रहे हैं, इसलिए ममता को ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिए।हालांकि, बंगाल में कांग्रेस ने टीएमसी के दावे को ज्यादा महत्व देने से इनकार करते हुए कहा कि यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि पीएम मोदी का वैकल्पिक चेहरा कौन बनेगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस और टीएमसी की राहे पूरी तरह से अलग हो गई है।