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क्या जितिन का जाना सचमुच कांग्रेस को है बड़ा झटका

यशोदा श्रीवास्तव

कांग्रेस के एक और युवा नेता ने हाथ का साथ छोड़ दिया। जितिन प्रसाद! जितिन प्रसाद शाहजहां पुर ब्राम्हण राजघराने के युवराज हैं।

इलाके में इस परिवार का खासा असर है। ऐसा कहा जाता है। इनके पिता स्व जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे।

प्रधानमंत्री रहे स्व राजीव गांधी और स्व पीवी नरसिंहा राव के राजनीतिक सलाहकार थे। यूं कहिए कि गांधी परिवार के खासमखास थे।

कोठी नाम से मशहूर महलनुमा इनका विशाल आवास कांग्रेस की पहचान रहा है। इस कोठी से ताल्लुक रखने वाला हर शख्स कांग्रेसी था। जितिन के बीजेपी ज्वाइन करते ही सभी के सभी भजपाई हो गए।

कांग्रेस यूपी के विधानसभा चुनाव में ब्राम्हणों पर फोकस करना चाह रही है। कुछ ही दिनों में सूबे के बड़े ब्राम्हण चेहरा प्रमोद तिवारी को बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती हैै।

अंदरखाने की खबर है कि मंडलवार जातीय समीकरण पर पार्टी के भीतर काम चल रहा है। कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए 46 उम्मीदवारों को हरी झंडी दे दी है। 100 और उम्मीदवारों की सूची तैयार है।

यूपी विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत कांग्रेस की ऐसी तैयारी के बीच जितिन प्रसाद जैसे युवा ब्राम्हण नेता का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए विपरीत संदेश देने जैसा तो है ही।

यूपी में प्रियंका गांधी के जी तोड़ मेहनत के बावजूद माहौल अभी बन नहीं रहा है। बात यदि पूर्वी यूपी की करें तो यहां के 27 जिलों में कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां के सभी सीटों पर कांग्रेस के खुद के उम्मीदवार ऐसे हों जो अपने दम पर दो चार हजार वोट की भी हैसियत रखते हों।

कुछ जिले तो ऐसे हैं जहां के दो दो प्रदेश स्तरीय पदाधिकरी भी हैं फिर भी उन जिलों में कांग्रेस का कुछ भी नहीं है। जाहिर है ऐसे जिलों में कांग्रेस दूसरे दलों से भागे नेताओं के सहारे ही होगी।

अभी जो स्थित है वह यह कि दूसरे दलों के लोग जो पार्टी छेाड़ रहे हैं वे सपा की ओर रूख कर रहे हैं। कांग्रेस की दो बार की सांसद रहीं अनु टंडन ने हाल ही सपा ज्वाइन की है।

इस सबके बीच सवाल यह है कि जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन करना क्या सचमुच कांग्रेसके लिए बड़े झटका जैसा है? 2001 में जितेंद्र पसाद के निधन के बाद इनकी पत्नी कांता प्रसाद कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ी किंतु हार गईं। इधर उच्च शिक्षा प्राप्त जितिन प्रसाद राजनीति से बेवास्ता थे।

बैंक की नौकरी में थे। स्व. पिता की राजनीतिक विरासत की याद आई तो नौकरी छोड़ राजनीति में पदार्पण किया जिसकी शुरूआत यूथ कांग्रे के रास्ते हुई। यह समय 2002 का रहा।

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पिता चूंकि कांग्रेस और गांधी परिवार से जुड़े हुए थे सो ये जनाब भी राहुल गांधी के निकट आए और उनकी टीम का हिस्सा बन गए। 2004 के लोकसभा चुनाव में शाहजहांपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते।

फिर 2009 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। केंद्र में राज्य मंत्री बने। 2014 में शाहजहांपुर लोकसभा सीट सुरक्षित हो गई तो बगल की दूसरी सीट धौरहरा से चुनाव लड़े, पराजति हुए।

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2019 के लोकसभा चुनाव में तो जमानत भी नहीं बचा सके। लगातार दो दो चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस ने इनके मानमर्दन में कोई कमी नहीं की, इन्हें प. बंगाल का प्रभारी बनाकर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी।

इससे मन नहीं भरा तो स्वयं का ब्राम्हण चेतना परिषद बना ली और इसी बैनर तले यूपी में ब्राम्हणों के उत्पीड़न को लेकर योगी सरकार पर हमलावर रहे।

अब ये साहब खुद बीजेपी में आ गए। ठीक उसी रास्ते जैसे एमपी के युवराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का आगमन बीजेपी में हुआ था। वे भी बीजेपी में शामिल होने तक हरियाणा के प्रभारी रहे और बतौर प्रभारी हरियाणा कभी गये ही नहीं।

जितिन प्रसाद प. बंगाल में हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव तक वहां के प्रभारी रहे, एक भी सीट कांग्रेस को दिलाने में नाकामयाब रहे।

देखा जाय तो उनकी राजनीतिक नाकामयाबी का बड़ा सबूत हाल ही संपन्न यूपी में त्रिस्तरीय पंचायत का चुनाव रहा जिसमें वे अपनी भाभी को जिला पंचायत सदस्य तक का चुनाव नहीं जितवा सके।

इसके पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में जनाब तिलहर से विधानसभा का चुनाव भी नहीं जीत सके थे। हैरत है कि टीबी चैनलों और अखबारों में इस नाकामयाब युवा नेता के कांग्रेस छोड़ने पर कांग्रेह का बड़ा झटका बताया जा रहा है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत की मानें तो दरअसल ये कांग्रेस के लिए कोई झटका नहीं है। पार्टी राजे रजवाड़ों से मुक्त हो रही है जो कांग्रेस के लिए जरूरी है।

याद होगा जितिन प्रसाद के पहले यूपी के अमेठी राजघराने से गांधी परिवार के खासमखास डा. संजय सिंह और प्रतापगढ़ की राजकुमारी रत्ना सिंह ने भी जब कांग्रेस छोड़ा था तब भी मीडिया में कांग्रेस को बड़ा झटका नाम से भारी भरकम समाचार कई दिनों तक छपता रहा। उसके बाद एमपी के युवराज ज्योतिरादित्य सिधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी तब भी ऐसे ही भारी भरकम हेंडिंग से खबरें छपी।

कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वाले राजे रजवाड़े घराने के ये युवा नेता भरी जवानी में ही थक चुके हैं। क्योंकि इन लोगों ने राजनीति में कामयाबी के लिए न तो कोई संर्घष किया और न ही किसी बड़े आंदोलन का हिस्सा रहे। सब के सब अपने बाप दादों के बने बनाए रास्ते से राजनीति में आए।

कामयाब हुए,सुवधिा भोगे और तथा कथित बड़े नेता का खिताब पा गए। तभी तो जब ये अपनी पार्टी छोड़ दूसरी जगह जाते हैं तो खबर बनती है कि कांग्रेस को बड़ा झटका!

कौन बताए कि कांग्रेस को बड़ा झटका देने वाले ये बड़े चेहरे थके हारे हुए लोग हैं। आज कांग्रेस को राहुल,सोनिया से मुक्त करने की मांग करने वालों को यह देखना होगा कि यदि गांधी परिवार के इतर ऐसे दगाबाज लोगों को कांग्रेस का नेतृत्व सौंप दिया जाय तो क्या भरोसा कि ये पूरी की पूरी पार्टी लिए ही किसी दूसरे दल में न मिल जायं।

पार्टी तो नहीं लेकिन पूरी सरकार का दूसरी पार्टी में विलय होने का उदाहरण मौजूद है। हरियाणा के ही भजन लाल उस वक्त की जनता पार्टी की सरकार का विलय सत्ता में वापसी करते ही कांग्रेस में कर लिया था।

सवाल यह कि संजय सिंह,रत्ना सिंह, ज्यातिरादित्य सिंह के बाद अब जितिन प्रसाद जैसे कांग्रेस के पिटे हुए मोहरों को बीजेपी अपने दल में शामिल कर क्या संदेश देना चाहती है? स्पष्ट है कि बीजेपी के बड़े नेता जिसमें पीएम मोदी तक शामिल हैं, अपने भाषणों में कहते रहते हैं कि वह समय दूर नहीं जब देश कांग्रेस मुक्त हो जाय!

हालाकि बीजेपी के कई नेता अपना नाम न छापने के आग्रह के साथ कहते हैं कि कांग्रेस मुक्त देश के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि बीजेपी में ही बीजेपी नेताओं के लाले पड़ जाय! जितिन प्रसाद भले हीं कांग्रेस के पिटे हुए ब्राम्हण चेहरा रहे लेकिन इन्हें बीजेपी में शामिल करने के पीछे एक मंशा ब्राम्हणों को अपनी ओर आर्कषित करना भी है।

यानि कि बीजेपी का र्शीष नेतृत्व कहीं न कहीं यह मान रहा है कि यूपी में योगी सरकार से ब्राम्हण नाराज चल रहा है। शोसल मीडिया पर जैसे ही जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने की खबर आई वैसे ही ब्राम्हणों की प्रतिक्रियाएं भी तेज हुई जो बीजेपी के लिए उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता।

लोागों ने चुटकी ही ज्यादे ली। पूर्वीयूपी से एक पंडित जी की प्रतिक्रिया गौरतलब है जिसमें उनका कहना था कि जितिन प्रसाद से अमन मणि अच्छे हैं जो बीजेपी लहर में निर्दल चुनाव जीतकर यूपी विधानसभा में पुहंचे।

पंडित जी ने आगे जोड़ा कि यदि हम कांग्रेस की बात करें तो प्रमोद तिवारी से बड़ा पार्टी में ब्राम्हण चेहरा कौन है जिसने अपने राजनीतिक सफर में हार देखी ही नहीं।

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