न्यूज डेस्क
हमारे देश में एक कहावत है-झूठ के पाव नहीं होते, लेकिन वर्तमान में यह कहावत चरितार्थ होती नहीं दिख रही।
सोशल मीडिया ने फर्जी खबरों को पाव नहीं पंख दे दिया है। अफवाह मिनटों में कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंच जाती है और देखते ही देखते मामला तूल पकड़ लेता है।
भारत में सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें व वायरल पोस्ट को नियंत्रित करने के लिए लंबे समय से कवायद चल रही है, लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 सितंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर सरकार को निर्देश जारी किया। कोर्ट ने इस मामले में सरकार से तीन सप्ताह में शपथ पत्र दाखिल कर ये बताने को कहा है कि वह कब तक इस संबंध में दिशा-निर्देश तैयार कर लेगी।
न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि हमें ऐसी गाइड लाइन की जरूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को ट्रैक किया जा सके। सरकार ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसके पास सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की कोई तकनीक नहीं है।
इस मामले में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म और यूजर्स के लिए सख्त दिशा-निर्देशों की जरूरत है। अभी हालात ये है कि हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं है। लोग सोशल मीडिया पर एके 47 तक खरीद सकते हैं। ऐसे में कई बार लगता है कि हमें स्मार्टफोन छोड़, फिर से फीचर फोन का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए।
कोर्ट का यह निर्देश ऑनलाइन अफवाहों और फेक विडियोज के कारण हुईं हालिया घटनाओं के बाद आया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इस पर बहस चल रही है कि क्या भारत में ऐसा कर पाना संभव है। फिलहाल आईटी के विशेषज्ञों के अनुसार यहां सोशल मीडिया को नियंत्रित कर पाना फिलहाल संभव नहीं है।
आईटी के विशेषज्ञों के अनुसार भारत में भी आईटी एक्ट है, जिसके तहत इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन ये कानून बहुत स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों को आईटी एक्ट के बारे में बहुत कम जानकारी है।
देश में अब भी साइबर क्राइम के ज्यादातर मामले आईटी एक्ट की जगह आईपीसी के तहत दर्ज किए जाते हैं। पुलिस के अलावा भारत में ज्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स को भी आईटी एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में लोग बिना सोचे-समझे किसी भी वायरल पोस्ट को फारवर्ड कर देते हैं।
यदि हम देश के अन्य मुल्कों में देखे में तो इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। भारत को उन देशों से मदद लेकर इस दिशा में काम करना चाहिए।
आइए जानते हैं कि दुनिया के दूसरे देश सोशल मीडिया पर फैलाने वाली फेक न्यूज से कैसे निपट रहे हैं।
मलेशिया
मलेशिया दुनिया के उन अग्रणी देशों में से है जिसने फेक न्यूज रोकने के लिए सख्त कानून बनाया है। यहां ये कानून पिछले साल ही लागू किया गया है। फेक न्यूज फैलाने पर मलेशिया में 5,00,000 मलेशियन रिंग्गित (84.57 लाख रुपये) का जुर्माना या छह साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है।
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया ने भी इसी वर्ष फेक न्यूज रोकने के लिए एंटी-फेक न्यूज लॉ बनाया है। इस कानून के मुताबिक फेक न्यूज फैलाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्म से उसके सालाना टर्न ओवर का 10 फीसद जुर्माना वसूला जा सकता है। साथ ही तीन साल तक की सजा भी हो सकती है।
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ऑस्ट्रेलिया में फेक न्यूज के अलावा अगर सोशल मीडिया कंपनी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले, हत्या, दुष्कर्म और अन्य गंभीर प्रकृति के अपराधों से संबंधित पोस्ट हटाने में असफल होती है तब भी उसके खिलाफ Anti Fake News Law के तहत कार्रवाई की जा सकती है। कानून का उल्लंघन करने वाले किसी व्यक्ति पर 1,68,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (80.58 लाख रुपये) और किसी निगम या संगठन पर 8,40,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (4.029 करोड़ रुपये) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
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सिंगापुर
सिंगापुर में जनता में भय फैलाने, माहौल खराब करने वाले या किसी भी तरह की फेक न्यूज फैलाने वाले के लिये 10 साल जेल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा फेक न्यूज रोकने में नाकाम रहने वाली सोशल मीडिया साइट्स पर 10 लाख सिंगापुर डॉलर (5.13 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है। कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को उसका पोस्ट हटाने या संशोधित करने के निर्देश दिए जा सकते हैं। निर्देशों का पालन न करने वाले व्यक्ति पर 20 हजार सिंगापुर डॉलर (10.26 लाख रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही एक साल तक की जेल भी हो सकती है।
रूस
रूस में राज्य के खिलाफ या उसकी छवि खराब करने वाली कोई भी फेक न्यूज या झूठी सूचना फैलाने वाले व्यक्ति अथवा कंपनियों के खिलाफ सख्त सजा का कानून है। मार्च 2019 में ही रूस ने फेक न्यूज को रोकने के लिए कानून लागू किया है। अगर किसी पब्लिकेशन (समाचार पत्र) द्वारा फेक न्यूज फैलायी जाती है तो उस पर 15 लाख रूबल (16.57 लाख रुपये) तक का जुर्माना लग सकता है।
वहीं देश के प्रतीक चिन्हों या अथॉरिटीज की छवि खराब करने वाली फेक न्यूज फैलाने पर 3,00,000 रूबल (3.31 लाख रुपये) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। दोबारा ऐसा करने पर जुर्माने के साथ 15 दिन की जेल भी हो सकती है।
फ्रांस
फ्रांस ने अक्टूबर 2018 में दो एंटी-फेक न्यूज कानून बनाए। फ्रांस ने यह कदम 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के दखल के आरोप लगने के बाद उठाया था।
ये कानून उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टियों को फेक न्यूज के खिलाफ कोर्ट की शरण में जाने की अनुमति देते हैं। इसके अलावा फ्रांस की ब्रॉडकॉस्टिंग अथॉरिटी को ये अधिकार देते हैं कि वह फेक न्यूज फैलाने वाले किसी भी चैनल या नेटवर्क को बंद कर सकते हैं।
जर्मनी
जर्मनी में फेक न्यूज पर नियंत्रण करने के लिए जर्मनी का नेटवर्क इन्फोर्समेंट एक्ट या नेट्जडीजी (NetzDG) कानून लागू है। यह कानून जर्मनी की सभी कंपनियों और दो लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड सोशल मीडिया यूजर्स पर लागू होता है।
यहां के कानून के मुताबिक कंपनियों को कंटेंट संबंधी शिकायतों का रिव्यू करना आवश्यक है। अगर रिव्यू में कंटेंट गलत या गैरकानूनी पाया जाता है तो उसे 24 घंटे के भीतर हटाना अनिवार्य है।
यहां फेक न्यूज फैलाने वाले किसी व्यक्ति पर 50 लाख यूरो (38.83 करोड़ रुपये) और किसी निगम अथवा संगठन पर 5 करोड़ यूरो (388.37 करोड़ रुपये) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। ये कानून उन लोगों पर भी लागू होता है जो इंटरनेट पर नफरत भरे भाषण वायरल करते हैं। जर्मनी ने एक जनवरी 2018 को ये कानून लागू किया है।
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चीन
चीन इस मामले में काफी समय से सजग है। फेक न्यूज को रोकने के लिए चीन पहले से ही कई सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सेवाओं जैसे ट्वीटर, गूगल और व्हाट्सएप आदि को प्रतिबंधित कर रखा है। चीन के पास हजारों की संख्या में साइबर पुलिस कर्मी हैं, जो सोशल मीडिया पोस्ट पर नजर रखते हैं।
साइबर पुलिस सोशल मीडिया पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील, फेक न्यूज और भड़काऊ पोस्ट पर नजर रखती है। इसके अलावा यहां इंटरनेट के बहुत से कंटेंट पर सेंसरशिप भी लागू है, जैसे 1989 में हुए चीन के थियानमेन चौक पर हुए नरसंहार से संबंधित कंटेंट।
यूरोपियन यूनियन
अप्रैल 2019 में यूरोपीयन संघ की परिषद ने कॉपीराइट कानून में बदलाव करने और ऑनलाइन प्लेटफार्म को उसके यूजर्स द्वारा किए जा रहे पोस्ट के प्रति जिम्मेदार बनाने वाले कानून को मंजूरी प्रदान की थी। इसका सबसे ज्यादा लाभ उन लोगों की वास्तविक कृतियों को मिला, जिनका इंटरनेट पर अक्सर दुरुपयोग होता था या उन्हें चोरी कर लिया जाता था। जैसे किसी और कि फोटो या पोस्ट को अपने प्रयोग के लिए चोरी (कॉपी-पेस्ट) कर लेना। यूरोपियन यूनियन का ये कानून सोशल मीडिया, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों और सर्च इंजनों पर भी लागू होता है।
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