जुबिली न्यूज डेस्क
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के आरोपी अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को सजा पूरी होने से पहले ही जेल से रिहा कर दिया गया. मधुमिता एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 20 साल से जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी का प्रभाव अब भी महाराजगंज के नौटवनवा इलाक़े में कम नहीं हुआ है. बीते 20 सालों में अमरमणि त्रिपाठी सिर्फ़ एक बार ही साल 2006 में ज़मानत पर इस इलाक़े में आए थे.
अमरमणि का गृहक्षेत्र नौटनवा महाराजगंज ज़िले में है जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से क़रीब तीन सौ किलोमीटर दूर है.नौटनवा की गलियों में ही अमरमणि त्रिपाठी के प्रभाव को समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी भले ही 20 साल से जेल में बंद हो, नौटनवा क़स्बा अब उनकी वापसी का इंतज़ार कर रहा है. यहां लोगों को लगता है कि त्रिपाठी को साल 2003 के मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में फँसाया गया था.
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड
गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने 66 वर्षीय अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी 61 वर्षीय मधुमणि की रिहाई का आदेश दिया था. दोनों ही साल 2007 से कवियित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं. सज़ा का अधिकतर हिस्सा उन्होंने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य कारणों की वजह से बिताया है.
इस हत्या में उनका कोई दोष नहीं
गांव के लोगों का कहन है कि वो हमारे कद्दावर नेता हैं. उनका कोई दोष नहीं है. फंसा दिए गए थे और अगर दोष था भी तो 20 साल की सज़ा में व्यक्ति बदल जाता है. मधुमिता शुक्ला की लखनऊ के उनके घर में साल 2003 में दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. आरोप हैं कि त्रिपाठी के मधुमिता शुक्ला से संबंध थे. लोगों का मामला है कि त्रिपाठी का पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. त्रिपाठी एक बड़े नेता हैं और उन्होंने महाराजगंज के विकास के लिए बहुत कुछ किया.
बहुत से लोग ये मान रहे हैं कि बीजेपी का त्रिपाठी को जेल से रिहा करने का फ़ैसला आम चुनावों से पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने की रणनीति भी हो सकता है. बीजेपी पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप भी लगाते रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक त्रिपाठी की रिहाई से बीजेपी को ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है.
त्रिपाठी को पूरे गांव का समर्थन हासिल है
अमरमणि त्रिपाठी चार बार विधायक रहे. उन्होंने जेल के भीतर रहते हुए भी चुनाव जीता. वो यूपी के सभी चारों बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस, बीजेपी, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी में शामिल रहे हैं. हालांकि जेल से रिहाई के बाद त्रिपाठी किस पार्टी में जाएंगे, इस योजना को उनका परिवार अभी सार्वजनिक नहीं कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक़ उनके पैतृक गांव पाहुणी में त्रिपाठी परिवार को पूरा समर्थन हासिल है. सभी धर्मों और जातियों के लोग इस परिवार का समर्थन करते हैं.
चुनाव को लेकर नहीं किया कोई फैसला
वहीं अमनमणि त्रिपाठी ने कहा, अभी तक हमने कुछ तय नहीं किया है और ना ही इस बारे में सोचा है. हम एक राजनीतिक परिवार हैं.”2022 के विधानसभा चुनावों में अमनमणि त्रिपाठी स्वतंत्र चुनाव लड़े थे और तीसरे नंबर पर रहे थे. बीजेपी समर्थित निषाद पार्टी के उम्मीदवार ने नौटनवा सीट पर जीत हासिल की थी.
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योगी से संबंध राजनीतिक नहीं है
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ रिश्तों का ज़िक्र करते हुए अमनमणि त्रिपाठी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “ये किसी समझ के बारे में नहीं है. हमारे महाराज जी के साथ पारिवारिक संबंध हैं. ये संबंध राजनीतिक नहीं है.” अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को औपचारिक तौर पर रिहा कर दिया गया है लेकिन वो अब भी गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल के मेडिकल वॉर्ड में ही हैं.