डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
21वीं सदी की महाशक्ति बनने के दावों और 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था के सपनों में झूलते हुए भारत की असल स्थिति क्या है ? ये सवाल खड़ा हुआ है एक रिपोर्ट के बाहर आने से। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 ने हमे एक ऐसी हकीकत का आईना दिखाया है जिसे मानने में आम आदमी तो छोड़िए, सरकार के माथे पर भी फिक्र की लकीरें होनी चाहिए।
होनी चाहिए, इसलिए ऐसा कहना पड़ा क्योंकि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद से इस पर फिक्र करने की बजाए सरकार इसे नकारने में जुट गई। सरकार ने इसे हकीकत मानने से इनकार करते हुए इस रिपोर्ट को जारी करने वाली संस्थाओं पर ही सवाल उठा दिए और कुछ प्रवक्ताओं ने तो इसे भारत के खिलाफ एक षड्यन्त्र तक बता दिया।
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ग्लोबल हंगर इंडेक्स की यह सालाना सूची भुखमरी के खिलाफ दुनिया की लड़ाई को मजबूती देने के लिए जारी की जाती है। इस लिस्ट के साथ कुपोषण और बाल मृत्यु दर जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े भी जारी किए जाते हैं।
‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ को आयरलैंड स्थित एक एजेंसी ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ और जर्मनी के एक संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है।
आँकड़े डराने वाले है। 107 देशों की इस लिस्ट में भारत 94वें पायदान पर है। इस लिस्ट में भारत अपने पड़ोस के उन कई देशों से भी नीचे है जिन्हे हम गरीब मनाते और कहते हैं। इन देशों में नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। रिपोर्ट बताती है कि 27.2 अंक पाने के कारण भारत में भूख के मामले में ‘गंभीर’ स्थिति है।
एक तथ्य ये भी है कि इस बार भारत भले ही 92वें स्थान पर रहा है मगर पिछली बार 117 देशों में भारत की रैंकिंग 102 थी। तो कह सकते हैं कि भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन तथ्य ये भी है कि कुल देशों की संख्या भी घटी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश भारत की तकरीबन 14 फीसदी जनसंख्या कुपोषण का शिकार है और भारत के बच्चों में स्टंटिंग रेट 37.4 फीसदी है। दरअसल, स्टन्ड बच्चे वो होते हैं, जिनकी लंबाई उनकी उम्र की तुलना में कम होती है और जिनमें भयानक कुपोषण दिखता है।
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ज्यादा परेशानी वाली बात ये है कि भारत सिर्फ रवांडा, अफगानिस्तान, चाड और लाइबेरिया जैसे अति पिछड़े देशों से ही आगे है और ये देश आंतरिक संघर्ष से भी जूझ रहे है।
पूरी लिस्ट की अगर बात करें तो इसमें बताया गया है कि दुनिया के 31 देशों में फिलहाल भुखमरी की हालत गंभीर और 9 देशों में बेहद गंभीर है। इन पैमानों की अगर बात करें तो बाल कुपोषण के मामले में भारत की हालत खराब हुई है। 2010 से 2014 के बीच भारत में बाल कुपोषण की दर 15.1 प्रतिशत थी, जबकि 2015 से 2019 के बीच यह बढ़कर 17.3 प्रतिशत हो गई।
हालांकि एक बात उत्साहित करने वाली भी है। बाल मृत्यु दर में भारत की हालत में सुधार हुआ है। फिलहाल यह दर 3.7 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 से 2014 के बीच का डेटा यह बताता है कि भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में बाल कुपोषण की मुख्य वजह परिवारों के सामने खड़ी विभिन्न समस्याए हैं। इनमें गरीबी, अपर्याप्त मातृ शिक्षा और अच्छी खुराक की कमी मुख्य वजह हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में हालात बहुत धीमी गति से सुधर रहे हैं।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कई सवाल उभर रहे हैं। सवाल ये है कि लगातार बढ़ते भारत के दावो के विपरीत भारत में गरीबी आखिर बढ़ क्यों रही है ? सवाल ये है कि क्या बढ़ते अरबपतियों के भारत में वंचितों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हो रहा है ?
और सबसे बड़ा सवाल भारत सरकार की गरीबी उन्मूलन की नीतियों और प्राथमिकताओं पर है जों अपने देश के बचो यानि भारत के भविष्य को कुपोषण से मुक्ति क्यों नहीं दिला पा रही ?
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