धनंजय कुमार
कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के घर के बाहर ईडी ने पुलिस का भारी पहरा लगा दिया है। मीडिया की खबरों में कहा जा रहा है एजेंसी ने उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया है। ऐसे में सवाल है सोनिया और राहुल गांधी पर ऐसा क्या खतरा अचानक मंडराने लगा, जिसकी वजह से उनकी सुरक्षा को चाक चौबंद करने की नौबत आ गई? क्या किसी आतंकवादी संगठन ने कोई धमकी दी है? ऐसी कोई खबर तो नहीं है। ऐसे में यह ख्याल आता है कि संभव है उनको नजरबंद करके रखने की योजना हो और कभी भी उनकी गिरफ़्तारी हो सकती है।
या ये भी हो सकता है उनको 5 अगस्त की तिरंगा यात्रा से रोकने की सरकारी कवायद हो।
गोदी मीडिया के पत्रकारों के मन में लड्डू फूटने का अर्थ तो समझ में आता है, लेकिन जब आम जनता में से कुछ लोग सोशल मीडिया पर या आम बोलचाल में कहते हैं कि बीजेपी कांग्रेस को खत्म कर देगी, अब कांग्रेस आगे बीस पचास साल तक सत्ता में आने वाली नहीं, तो एक नागरिक के नाते यह उक्ति बेहद मूर्खतापूर्ण और निराशाजनक लगती है। भाई मेरे कांग्रेस अगर सत्ता में नहीं आती है, हमेशा के लिए बीजेपी ही सत्ता में रहती है, तो इससे आम आदमी को क्या फायदा है? और अगर बीजेपी को हटाकर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो इससे आम आदमी को क्या फायदा है, विचार इसपर करने की जरूरत है।
टूजी और कोयला खदानों की नीलामी को लेकर कैग की जो रिपोर्ट आई थी, उसके आधार पर देश भर में यह माहौल बना कि कांग्रेस एक बड़ी ही भ्रष्ट पार्टी है। मीडिया और अन्ना आंदोलन ने इसमें घी का काम किया। मनमोहन सरकार ने भी तब के टेलीकम्यूनिकेशन मिनिस्टर ए राजा आदि को जेल भेजने में देरी नहीं की, और कांग्रेस विरोधी तंत्र यह बात जन जन तक फैलाने में सफल हो गए कि कांग्रेस बड़ी ही भ्रष्ट पार्टी है।
कांग्रेस के खिलाफ यह आरोप नया नहीं है। नेहरू और इंदिरा गांधी के जमाने में भी कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। तब इंदिरा गांधी का यह बयान भी एक तरह से स्वीकारोक्ति की तरह था कि जब आर्थिक विकास होगा तो भ्रष्टाचार भी होगा, उसे रोकना आसान नहीं है। इसी तरह राजीव गांधी का यह कहना कि दिल्ली से चला 100 पैसा गाँव तक पहुंचते पहुंचते 10 पैसा रह जाता है, जनता के मन में यह बात बिठाने में मदद की कि भ्रष्टाचार हो रहा है और कांग्रेस इसे रोक पाने में नाकामयाब है।
फिर वीपी सिंह ने राजीव गांधी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहते हुए जब राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स तोप की खरीदारी में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था तब भी कांग्रेस की छवि को गहरा धक्का लगा था। असर ये हुआ था कि पिछले चुनाव में अप्रत्याशित बहुमत से जीतकर आए राजीव गांधी वी पी सिंह से हार गए और राजीव गांधी की बजाय वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने। लेकिन बोफोर्स तोप की खरीदारी में हुए भ्रष्टाचार को वी पी सिंह साबित नहीं कर पाए। बस जांच चलती रही और जितने करोड़ रुपये के घोटाले की बात थी, उससे कई गुणा अधिक धन जांच पर खर्च हो गया, लेकिन जांच में कभी यह साबित नहीं हो पाया कि राजीव गांधी ने पैसों का गबन किया था। बल्कि वाजपेयी सरकार के समय जब कारगिल युद्ध हुआ तो दुश्मनों के छक्के छुड़ाने में सबसे ज्यादा काम बोफोर्स तोप ही आया। फिर वाजपेयी सरकार ने ही बोफोर्स घोटाले की जांच समाप्त कर दी और राजीव गांधी को क्लीन चिट दे दी गई।
इसी तरह टू जी और कोयला घोटाले को लेकर मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी और केजरीवाल के एनजीओ और छुपे हुए कुछ और संगठनों-सिंडिकेट की मदद से खड़े हुए अन्ना आंदोलन ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। दबाव में आकार मनमोहन सरकार ने अपने ही मंत्री को जेल में डाल दिया और जनता के मन में यह बात बैठ गई कि भ्रष्टाचार हुआ। हालांकि बाद में भ्रष्टाचार के आरोप भए हवाई साबित हुए, कोई दोषी नहीं पाया गया और कैग के चीफ, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर टूजी और कोयला खदानों की नीलामी में भ्रष्टाचार की बात उड़ाई गई थी, उस कैग के विनोद राय ने कांग्रेस नेताओं से कोर्ट में माफी मांगी। लेकिन तबतक कांग्रेस को हटाकर मोदी सरकार सत्ता में आ बैठी थी।
बीजेपी इस बार जबसे सत्ता में आई है कांग्रेस को भ्रष्टाचार के आरोप में डुबोए रखने का एक मौका खाली नहीं जाने दे रही। सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 में नेशनल हेराल्ड के मामले में सोनिया और राहुल पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, आज 10 साल हो गए। ईडी भी 8 साल से जांच कर रही है, लेकिन आरोप के अलावा कोई भी ठोस सबूत अभी तक सामने नहीं आया है। बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में गैर बीजेपी सरकारों को गिराने और बीजेपी सरकार बनाने के लिए जिस निर्लज्जतापूर्ण और भयावह तरीके से ईडी का इस्तेमाल किया है, उससे ये सदेह बढ़ता है कि बीजेपी सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सफाई अभियान चलाने के बजाय विपक्ष सफाई अभियान चला रही है।
ईडी विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजती है और गिरफ़्तारी का भय भी दिखाती है, लेकिन जैसे ही वो नेता बीजेपी में शामिल हो जाता है, ईडी उसे क्लीन चिट दे देती है। महाराष्ट्र से लेकर असम तक ऐसे अनेकानेक उदाहरण है। वहीं दूसरी तरफ आजतक किसी भी बीजेपी नेता के खिलाफ ईडी ने नोटिस तक नहीं निकाला। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार की मंशा जनहितकारी नहीं है, बल्कि वह विपक्ष को खत्म करने के अभियान में जुटी है। और इस बात की घोषणा खुद बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा पटना के अपने भाषण में करते नजर आते हैं, जब वो कहते है कि आगे आने वाले समय में विपक्ष पूरी तरह समाप्त हो जाएगा, बचेगी तो सिर्फ बीजेपी।
मीडिया जिस तरह से मोदी सरकार के आने के बाद पालतू मीडिया बना है और बीजेपी पार्टी की तरह ही एकतरफा इस बात को फैलाने में लगी है कि पूरा विपक्ष चोर और बेईमान नेताओं से भरा है, सिर्फ बीजेपी में संत नेता रहते हैं, जनता के बड़े हिस्से के दिमाग में यह बात बैठ गई है कि पूरा विपक्ष भ्रष्टाचारी है। कांग्रेस उनका सिरमौर है। मोदी सरकार का कोई विकल्प नहीं है।
मैंने देखा है, अच्छे अच्छे पत्रकार इसबात को मानते हैं कि मोदी का विकल्प नहीं है। और मोदी सरकार इसी मानसिकता या कहें धारणा का भरपूर लाभ उठाया रही है और तमाम जन विरोधी काम कर रही है। महंगाई नहीं बढ़ी है, बीजेपी के नेता जयंत सिन्हा संसद में कहते हैं और मीडिया उसका प्रसार करती है। लेकिन सच्चाई क्या है? क्या वाकई महंगाई नहीं बढ़ी है? सब्जी 10 से 20 रुपये किलो मिल रही है?
वित्त मंत्री सीतारमन संसद में कहती हैं मंदी नहीं आई है और भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में नहीं है। क्या सचमुच अर्थव्यवस्था ठीक है?
गृहमंत्री खुलेआम सभाओं में कहते हैं- आज दुनिया में कोई भी समस्या हो, जब तक भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का बयान नहीं आता, दुनिया कभी भी समस्या पर अपना विचार तय नहीं करती। क्या ये सच है?
संसद में यह बात सही ठहरा दी जाती है- कोरोना के दौरान कोई भी नागरिक स्वास्थ्य सुविधाओं और ऑक्सीजन की कमी की वजह से नहीं मरा। क्या ये सच्चाई है?
चीन की घुसपैठ को लेकर प्रधामन्त्री संसद में कहते हैं- हमारे देश की सीमा न कोई घुसा था, न घुसा है? क्या ये सच है?
मोदी सरकार से पहले भ्रष्टाचार के आरोपों को झुठलाने की हिम्मत कोई भी सरकार नहीं कर पाती थी, लेकिन मोदी सरकार ने जिस तरह झूठ बोलने का चलन चलाया है, वह भ्रष्टाचार से भी ज्यादा खतरनाक है। सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त अभियान तो नहीं ही चला रही है, पूरी निर्लज्जता के साथ बड़े पैमाने पर झूठ को भी सच के तौर पर स्थापित कर रही है। बीजेपी का एजेंडा हर हाल में येन केन प्रकारेण पूरी तरह से विपक्ष को जनता की नजर में गिरा देने का है। और विडंबना ये है कि बीजेपी इसमें लगातार कामयाब हो रही है।
लोकतंत्र में विपक्ष की सरकार से कमतर भूमिका नहीं होती है। जनता के पास चूंकि वोट देकर सरकार बदलने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है, इसलिए विपक्ष ही है जो जनता की लड़ाई लड़ता है सरकार के तानाशाही हो जाने के खतरे पर लगाम लगाने का काम करता है। कोई जनविरोधी कानून संसद में न बने, इस बात पर नजर रखता है। लेकिन एक सुनियोजित प्लान के तहत जिस तरह से कांग्रेस पार्टी को निबटाया जा रहा है, वो कांग्रेस के नेताओं या विपक्ष के किसी भी नेता के भ्रष्ट आचरण पर लगाम लगाने या उनके अपराध पर सजा दिलाने का अभियान नहीं है, बल्कि यह अभियान है विपक्ष विहीन राजनीतिक देश बनाने का।
सवाल है क्या विपक्ष के बिना लोकतंत्र चल सकता है?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और फिल्म लेखक हैं)