जुबिली न्यूज डेस्क
सबसे ज्यादा कोई नफा-नुकसान का आंकलन करता है तो वह है राजनीतिक पार्टियां। राजनीतिक दल हर कदम भविष्य को ध्यान में रखकर उठाते हैं। उन्हें क्या बोलना है, किससे दूरी बनानी है और कहां खड़ा होना है, यह सब वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही तय होता है।
बीते कुछ दिनों से बनारस का ज्ञानवापी मस्जिद और शिवलिंग चर्चा में हैं। समाचार चैनलों से लेकर सोशल मीडिया और चौराहे के चकल्लस के केंद्र बिंदु में महादेव है।
दरअसल जब से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने की खबर सामने आई है पूरे देश में सिर्फ चर्चा भगवान शिव और ज्ञानवापी मस्जिद की है।
निचली अदालत से लेकर देश की शीर्ष अदालत ने मस्जिद के उस हिस्से को संरक्षित करने का आदेश दिया है जहां से शिवलिंग निकलने का दावा हुआ है। इससे शिवभक्त का जोश बढ़ गया है।
वहीं लोगों के जोश को देखकर भाजपा आह्लादित है, लेकिन विपक्षी खेमे में खामोशी है। विपक्षी दलों की खामोशी पर सवाल उठ रहा है, क्योंकि जिस तरह विपक्षी दल अयोध्या, राम पर बोलते थे, शिव पर नहीं बोल रहे।
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर मैदान में सिर्फ ओवैसी ही है जो इसका विरोध कर रहे हैं। वैसे आज बसपा सुप्रीमो मायावती का इस पर बयान आया और उन्होंने इसको लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने बड़े सधे लहजे में बयान दिया है।
मायावती ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वो गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से ध्यान बंटाने के लिए चुन-चुन कर धार्मिक स्थलों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी, मथुरा, ताजमहल और अन्य स्थलों के मामलों की आड़ में जिस तरह से षडयंत्र के तहत लोगों की धार्मिक भावनाओं को भडक़ाया जा रहा है, इससे देश कमजोर होगा।
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है कि राम के मुद्दे पर बोलने वाला विपक्ष शिव पर खामोश है और भाजपा इसे और आगे ले जाने की सोच रही है।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, भगवान शिव के मुद्दे पर विपक्ष की चुप्पी यूं ही नहीं है। इसके पीछे भोलेनाथ की लोकप्रियता है। यह कहना कही से गलत नहीं होगा कि शिव की लोकप्रियता का दायरा राम से कहीं अधिक है।
उन्होंने कहा कि विपक्ष राम को लेकर बयानबाजी करने की हिम्मत जुटा लेता था, क्योंकि उनका प्रभाव उत्तर भारत में अधिक है। दरअसल राम को अयोध्या का राजा बताया गया तो कई ने उनके विष्णु अवतार होने पर सवाल उठाया, लेकिन भोलेनाथ के संदर्भ में ये बातें न सोची जा सकती हैं न कहीं जा सकती हैं। भगवान शिव त्रिदेवों में शामिल हैं। उन्हें त्रिदेवों में सृष्टि का संहारक माना जाता है। काल भी उनसे खौफ खाता है।
वह आगे कहते हैं, आप यह कह सकते हैं कि शिव सूत्र में पूरा देश बंधा हुआ है। राम का प्रभाव जहां उत्तर भारत में अधिक है, वहीं शिव का प्रभाव पूरब से लेकर दक्षिण तक है। दक्षिण भारत में राम, भोलेनाथ जितना लोकप्रिय नहीं हैं। दक्षिण भारत में शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां शिव मंदिर न हो। इसलिए विपक्षी दल शिव के बारे में कुछ भी बोलते हैं तो इसका संदेश पूरे देश में जायेगा।
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वहीं इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, भाजपा की मुखरता और विपक्ष की चुप्पी, दोनों के राजनीतिक मायने हैं। हम सभी जानते हैं कि देश के हर हिस्से में शिव भक्तों की भरमार है। यदि यह कहें कि भारत के कण-कण में शिव है तो गलत नहीं होगा। पर्वत से लेकर मैदान तक तो उत्तर से लेकर दक्षिण तक शिव लोगों में रचे बचे हैं।
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वह आगे कहते हैं, भाजपा शिव के सहारे अपना विस्तार करने की सोच रही है। दक्षिण में भाजपा ने राम के सहारे अपनी राजनीति चमकानी चाही लेकिन सफल नहीं हो सकी। वजह सबको पता है, वहां राम की उतनी मान्यता नहीं है, लेकिन शिव के साथ ऐसा नहीं है। दक्षिण में भगवान शिव बहुत लोकप्रिय है। इसलिए भाजपा इसके सहारे अपनी पैठ बनाने की सोच रही है।
सुशील वर्मा कहते हैं, जहां तक विपक्ष की चुप्पी का सवाल है तो वह भलीभांति जानते है कि शिव के अस्तित्व पर सवाल उठाना उन्हें भारी पड़ सकता है। इसलिए विपक्ष भूलकर भी इस मुद्दे पर नहीं बोलना चाहता। उन्हें डर है कि कहीं शिव पर बोलकर उनकी राजनीति ही भस्म न हो जाए।