जुबिली न्यूज डेस्क
25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल में ‘कार्यकर्ता महाकुम्भ’ में शामिल होने के लिए आए. जम्बूरी मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने 40 मिनट तक भाषण दिया. इस दौरान उन्होंने न तो शिवराज सिंह चौहान का ज़िक्र किया, न मध्य प्रदेश सरकार की ‘महत्वकांक्षी योजनाओं’ का ही ज़िक्र किया.
मोदी, भोपाल से दिल्ली वापस लौटे. उसी दिन शाम को भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी. इसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों के नाम भी थे. इसके साथ ही, प्रदेश के एक और कद्दावर नेता और भारतीय जनता पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का भी नाम था.
तीनों केंद्रीय मंत्री– नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रह्लाद सिंह पटेल और पार्टी महासचिव कैलाश विजवार्गीय का राजनीतिक क़द शिवराज सिंह चौहान के समकक्ष ही रहा है. किसी ज़माने में उनका नाम भी प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ में गिना जाता रहा है.
जानिए जानकारों का क्या कहना है
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई इसके कई कारण बताते हैं. वो कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण कारण ये है कि पिछला विधानसभा का चुनाव भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा गया था मगर भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी.
वो कहते हैं, “भले ही बाद में बीजेपी की सरकार बनी लेकिन वो सेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर पर बंधा, जिनके साथ 22 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे. साफ़ है, 2018 का जनादेश शिवराज सिंह चौहान के साथ नहीं था. इस बार भी सत्ता विरोधी लहर पिछली बार की तुलना में कहीं ज़्यादा दिख रही है. ऐसे में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का यह रुख़ अपने जनाधार को बचाने के लिए ही अपनाया गया दिखता है.”
भारतीय जनता पार्टी के हलकों में भी इसको लेकर काफ़ी सुगबुगाहट दिख रही है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के क़रीबी माने जाने वाले उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी या विधायक भी आशंकित हैं कि “कहीं उनके टिकट ना कट जाएँ.” ऐसे प्रयोग भारतीय जनता पार्टी गुजरात और कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा के चुनावों में कर चुकी है.
पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेता भी हैं और पार्टी में उनका स्थान काफ़ी ऊँचा है. वो ये भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री कौन होगा ये हमेशा से ही विधायक दल ही करता है. इसमें वो कुछ नया नहीं मानते.
कुछ जानकार कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ‘चुनावी राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी वरिष्ठ’ हैं. उनका कहना है कि जब 2014 के लोकसभा में बीजेपी ने पार्टी के पीएम पद के दावेदार का नाम ज़ाहिर नहीं किया था तो शिवराज सिंह चौहान के नाम की ख़ासी चर्चा थी.
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शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली
मध्य प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखने वालों का कहना है कि हो सकता है कि कई दशकों के बाद अब शिवराज सिंह चौहान की राजनीति की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी हो मगर वो भारतीय जनता पार्टी के ऐसे नेता रहे हैं जो ख़ुद को ‘री-इन्वेंट’करते रहे हैं यानी वो बदलते राजनीतिक परिवेश में ख़ुद को ढालते रहे हैं.
रशीद किदवई कहते हैं कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष से लेकर प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष और सांसद की भूमिका में भी उन्होंने अपने आपको ख़ूब ढाला. किदवई के अनुसार, “बदलती भूमिकाओं के बावजूद उन्होंने अपनी छवि एक उदारवादी नेता के रूप में ही बनाए रखी. वो उसमे कामयाब भी हुए. लेकिन हो सकता है कि अब का राजनीतिक परिवेश जिस तरह बदल रहा है उसमें वो ख़ुद को ढाल नहीं पाए.”
कुछ जानकारों को ये भी लगता है कि इस कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कार्यशैली भी बदली जो सबको स्पष्ट रूप से दिखने भी लगी. यही वजह है कि केन्द्रीय नेतृत्व को उनका विकल्प ढूंढ़ने की आवश्यकता दिखने लगी.
क्या भाजपा में सब ठीक है?
एक जानकार का कहना है कि पिछले कुछ सालों में जो उन्होंने फर्क देखा है कि पहले भाजपा या संघ से जुड़े नेता विचारधारा को प्राथमिकता देते थे. मगर वो मानते हैं कि अब ऐसा नहीं है.
अब भाजपा में सबको अपनी-अपनी चिंता है. सब ख़ुद की लड़ाई लड़ रहे हैं इसलिए अब उनकी राजनीति में काफ़ी अंतर दिखने लगा है. पहले ‘टीम वर्क’ दीखता था. अब गुट दिखने लगे हैं इसलिए ये तो होना ही था.”उनके अनुसार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को तब से संदेश साफ़ मिलने लगे थे कि मध्य प्रदेश में कुछ गड़बड़ है जब से सरकार ने यात्राएं निकालनी शुरू कीं.
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वो कहते हैं, “पहले विकास यात्रा निकली, फिर जन आशीर्वाद यात्रा. लेकिन इन यात्राओं का उतना असर ज़मीन पर नहीं दिखा. इन यात्राओं को बंद भी करना पड़ गया. उसका कारण है कि लोग उन्हीं चेहरों से ऊब चुके हैं. इसी को सत्ता विरोधी लहर कहते हैं जिससे उबरने के लिए बीजेपी ने मंत्रियों और सांसदों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है. शिवराज सिंह चौहान की डगर अब कठिन दिख रही है. अगर एस बार पार्टी उन्हे चुनाव लड़ने से मना कर दे तो इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी.