जुबिली न्यूज डेस्क
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 9 जून को केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली। इससे यह साफ हो गया था कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश से अब दिल्ली शिफ्ट हो जाएंगे। इसके बाद मोदी सरकार में उन्हें दो अहम कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिए गए हैं। केंद्र की सरकार में वे पांचवें नंबर पर हैं। दोनों ही मंत्रालयों में पदभार ग्रहण करने के बाद 15 जून को शिवराज सिंह चौहान पहली बार दिल्ली से भोपाल के लिए रवाना हुए। इस दौरान जगह-जगह पर उनका जबर स्वागत हुआ है।
जानकारों की मानें तो यह उनका शक्ति प्रदर्शन था। भोपाल पहुंचने के अगले ही दिन शिवराज सिंह चौहान को संगठन में भी एक बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है। झारखंड का उन्हें चुनाव प्रभारी बना दिया गया है। सरकार और संगठन में अहम जिम्मेदारी मिलने के बाद यह कयास लगने लगे हैं कि क्या शिवराज सिंह चौहान को एमपी की राजनीति से दूर करने की तैयारी है।
दरअसल, 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे। पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ी थी। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे थे। जीत के लिए सभी क्षेत्रों में शिवराज रात दिन एक किए हुए थे। उसका नतीजा यह रहा है कि एमपी में बीजेपी 163 सीटें जीत गई। प्रचंड जीत से शिवराज गदगद थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उनकी जगह पर मोहन यादव को प्रदेश की कमान सौंप दी। उसी समय से यह साफ हो गया था कि अब शिवराज सिंह चौहान के लिए अलाकमान का प्लान कुछ और है।
पीएम मोदी ने साथ लेने जाने को कहा
लोकसभा चुनाव में विदिशा से शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने टिकट दे दिया। इससे साफ हो गया है कि वह अब केंद्र की राजनीति में शिफ्ट होंगे। इसके बाद एमपी में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली ले जा रहे हैं। चुनाव में जीत के बाद शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिल गई है। पीएम मोदी के बाद कैबिनेट में पांचवें नंबर पर शिवराज सिंह चौहान को जगह मिली है। इससे साफ है कि वह दिल्ली शिफ्ट हो गए हैं।
झारखंड में चुनाव की जिम्मेदारी
नवंबर दिसंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव है। शिवराज सिंह चौहान को आठ दिन के अंदर ही पार्टी ने दूसरी बड़ी जिम्मेदारी दे दी है। 9 जून को सरकार में उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली और 17 जून को झारखंड चुनाव का उन्हें प्रभारी बना दिया गया। आठ दिन के अंदर उन्हें लेकर आलाकमान ने दो फैसले लिए हैं। इससे साफ है कि शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता एमपी की राजनीति में कम होगी।
दरअसल, 2023 के विधानसभा चुनाव की शुरुआत में ही शिवराज सिंह चौहान पार्टी में हाशिए पर जाते दिख रहे थे। शुरुआती दिनों में संगठन में उनकी पूछ परख कम हो गई थी। वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित ने नवभारत टाइम्स.कॉम से बात करते हुए कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए साइड किया जा रहा था, इसके बावजूद एमपी में बीजेपी 163 सीटें जीतकर आई। बड़ी जीत के बाद भी पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। शिवराज सिंह चौहान को किनारे करने में लोग सफल भी हो गए।
शिवराज के बिना काम नहीं चलेगा
उन्होंने कहा कि 2024 में एमपी की 29 लोकसभा सीटें बीजेपी जीत गई। इसके साथ ही दिल्ली को यह समझ में आ गया शिवराज सिंह चौहान के बिना आगे नहीं बढ़ सकते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांचवें नंबर पर इन्हें अपनी कैबिनेट में रखा है। इनसे पहले तीन पूर्व पार्टी अध्यक्ष हैं।
शक्ति प्रदर्शन कर सीधा संदेश दिया
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान सब कुछ समझते हैं। मंत्री बनने के बाद दिल्ली से पहली बार जब वह भोपाल आए तो शक्ति प्रदर्शन कर उन्होंने सीधा मैसेज दे दिया है। मध्य प्रदेश में मेरा जनाधार है और मेरे साथ लोग हैं। शिवराज सिंह चौहान के स्वागत लिए लोग सड़कों पर आए है। इसका सीधा मतलब है कि उन्होंने दिखाने की कोशिश कि मैं आपसे कम नहीं हूं। अब दिल्ली चाहकर भी उनके साथ कुछ नहीं कर सकती है।
शिवराज सिंह चौहान की वहां परीक्षा
बीजेपी चाहती तो शिवराज सिंह चौहान को पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र का प्रभार दे सकते थे। ये उनके कद के हिसाब से था। झारखंड जैसे राज्य का प्रभार उन्हें दिया गया, जहां बीजेपी के लिए एक मुश्किल लड़ाई है। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान की वहां परीक्षा भी हो जाएगी।