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डंके की चोट पर : पार्टी विथ डिफ़रेंस के क्या यह मायने गढ़ रही है बीजेपी

शबाहत हुसैन विजेता

साल 2009 का लोकसभा चुनाव चल रहा था. संजय और मेनका गांधी का बेटा वरुण गांधी पीलीभीत से बीजेपी का उम्मीदवार था. जनसभा में वरुण गांधी ने हुंकार भरी थी कोई आपकी तरफ हाथ उठाएगा तो वरुण उस हाथ को काट डालेगा. कोई आपकी इज्जत पर हाथ डालेगा तो वरुण गांधी उसे बर्दाश्त नहीं करेगा. दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले इस भाषण के बाद वरुण के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए थे. उनके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई हुई थी और जेल भेजा गया था लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने वरुण गांधी को कारण बताओ नोटिस तक नहीं दिया था.

2021 में लखीमपुर में केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री के बेटे ने जब किसानों और पत्रकार को अपनी गाड़ी से रौंदकर मार डाला तो वरुण गांधी ने यूपी सरकार को नसीहत दे दी तो बीजेपी नेतृत्व को इतना नागवार लगा कि न सिर्फ वरुण गांधी को बल्कि उनकी माँ मेनका गांधी को भी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

वरुण गांधी की गलती यह है कि उन्होंने किसानों को अपना भाई कहा. वरुण गांधी की गलती यह है कि उन्होंने गन्ना मूल्य में इजाफे की बात कही. वरुण गांधी की गलती यह है कि लखीमपुर हिंसा से वह विचलित हो गए.

साल 2020 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव चल रहा था. शाहीनबाग में एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था. बीजेपी की पूरी कोशिश यही थी कि किसी तरह से अरविन्द केजरीवाल शाहीनबाग़ के बारे में कुछ बोल दें और बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण कर दे. केजरीवाल बीजेपी की इस चाल में फंसे नहीं. इसके बाद केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक जनसभा में नारे लगवाये देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को.

जनसभा में सीधे गोली मारने की बात एक मंत्री कर रहा था, लेकिन बीजेपी के पास इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि वह अनुराग ठाकुर से इतना सा पूछ लेती कि गद्दार है कौन. अनुराग ठाकुर के इन नारों के सिर्फ चार दिन बाद शाहीनबाग़ में महिलाओं पर कपिल गुर्जर नाम के युवक ने गोली चला दी.

शाहीनबाग़ में महिलाएं केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गए एक क़ानून के विरोध में बैठी थीं तो वह गद्दार थीं. दिल्ली की सीमा पर किसानों का साल भर से एक क़ानून के खिलाफ ही धरना चल रहा है तो वह भी गद्दार हैं. मतलब साफ़ है कि सरकार जो कहे वही सही, जो उसका विरोध करे वह गद्दार.

 

वरुण गांधी हाथ काट लेने के बात करें तो वह सही लेकिन किसानों की आवाज़ बन जाएं तो गद्दार. लोकतंत्र खत्म हो चुका है क्या? क्या देश में हिटलरशाही आ गई है? आजीवन सरकार चलाने का दंभ भरने वाले अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या पर भी खामोश हैं. न उनके लिए मुआवजा है, न कोई उनके घर जा रहा है. जो देश को अन्न देता है वह खालिस्तानी है. पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस और खाने के तेल के दाम आसमान छू रहे हैं मगर सरकार के पास फुर्सत नहीं है. पेट्रोल महंगा है तो कांग्रेस ज़िम्मेदार है.

तृणमूल कांग्रेस के मुकुल राय पर शारदा घोटाले के आरोप थे. कांग्रेस से निष्कासित सुखराम पर दूरसंचार घोटाले का आरोप था. असम के कांग्रेस नेता हेमंत शर्मा पर वाटर सप्लाई स्कैम में शामिल होने का इल्जाम था. शिवसेना नेता नारायण राणे के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस चल रहा था. यह वह नाम हैं जो कांग्रेस या शिवसेना में थे तो महाभ्रष्ट थे. बीजेपी ने इनके खिलाफ बुकलेट छापी थी. लोकसभा में हंगामा किया था मगर बीजेपी में आकर यह सभी गंगा नहा लिए.

वरुण गांधी और मेनका गांधी को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखाकर बीजेपी ने पहली बार किसी को सही बोलने की सज़ा दी हो ऐसा भी नहीं है. कीर्ति आज़ाद का मामला याद कीजिये. कीर्ति आज़ाद को बीजेपी से क्यों निलम्बित किया गया था इसकी तहों में भी तो जाना ज़रूरी है. मामला 2015 का है. केन्द्र में बीजेपी की सरकार बन चुकी थी. पार्टी विथ डिफ़रेंस का नारा पूरे देश में गूंजने लगा था. न खाऊंगा न खाने दूंगा को लोग टैगलाइन की तरह से इस्तेमाल करने लगे थे इसी बीच कीर्ति आज़ाद ने विक्लिक्स की एक क्लिप लीक कर दी.

विक्लिक्स की इस क्लिप में बताया गया था कि डीडीसीए ने कोटला स्टेडियम बनाने में फर्जी कम्पनियों को टेंडर देकर करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया. किराए पर लैपटॉप और प्रिंटर मंगाए और किराए के रूप में जितनी रकम दे दी उससे कम में उन्हें खरीदा जा सकता था. बस इसी बात पर कीर्ति आज़ाद को निलम्बित कर दिया गया. निलम्बन की वजह सिर्फ यह थी कि भ्रष्टाचार के जो आरोप थे उनके छींटे अरुण जेटली पर पड़ रहे थे.

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने एक तरफ यह एलान किया कि यह सिर्फ आरोप हैं, जांच में जेटली बेदाग़ होकर निकलेंगे तो दूसरी तरफ कीर्ति आज़ाद को पार्टी से निलंबित करने का फैसला किया गया.

बलात्कार के आरोपित कुलदीप सेंगर के खिलाफ कार्रवाई तब तक नहीं हुई जब तक कि वह जेल नहीं चले गए. जेल जाने के बाद बीजेपी सांसद साक्षी महाराज बलात्कारी विधायक से मुलाक़ात करने भी जाते रहे. एनआरसी आन्दोलन के खिलाफ हुए प्रदर्शन में हुई तोड़फोड़ का हर्जाना योगी सरकार ने उन लोगों से वसूला जिन पर आरोप पुलिस ने फ्रेम किये थे लेकिन लखीमपुर में सरेआम किसानों और पत्रकार का कत्लेआम कर देने वाले की पुलिस हिफाज़त करती रही. हत्यारे का पिता केन्द्र में गृह राज्यमंत्री है. पूरा पुलिस महकमा उसके अंडर में है लेकिन ऐसे गृहराज्यमंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं. क्या बीजेपी इस तरह पार्टी विथ डिफ़रेंस को चरितार्थ करने को निकल पड़ी है.

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