न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव के बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की मुसीबतें बढ़ती नजर आ रही हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मायावती के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान हुई 21 सरकारी चीनी मिलों की बिक्री में हुई कथित गड़बड़ियों की जांच शुरू कर दी है।
साथ ही सीबीआई ने यूपी की सात सरकारी चीनी मिलों के विनिवेश घोटाले में भ्रष्टाचार निवारण शाखा (एसीबी) में प्राथमिकी दर्ज कर सात लोगों का नामजद किया है। इसके अलावा एजेंसी ने 17 अन्य मिलें बेचने में गड़बड़ी की जांच के लिए छह प्रिलिमनरी इनक्वायरी भी दर्ज की हैं। प्राथमिक जांच के बाद इन मामलों में भी एफआईआर दर्ज हो सकती है।
यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार सिंह ने मई 2018 में सीबीआई से जांच का आग्रह किया था। एक साल बाद सीबीआई ने अब केस दर्ज किया है।
25 अफसर समेत कई मंत्री जांच के दायरे में
एफआईआर में जिन सात को आरोपी बनाया गया है, उनमें दिल्ली के रोहिणी निवासी राकेश शर्मा व उनकी पत्नी सुमन शर्मा, इंदिरापुरम गाजियाबाद के धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर के गौतम मुकुंद, मोहम्मद जावेद, मोहम्मद नसीम अहमद और मोहम्मद वाजिद शामिल है। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, कुछ मंत्री और 25 से ज्यादा अफसर जांच के दायरे में आ सकते हैं।
गौरतलब है कि मायावती की अगुवाई वाली सरकार ने 10 चालू मिलों सहित 21 मिलों को बाजार दर से कम पर बेच दिया था, जिसके कारण सरकारी खजाने को 1,179 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सीबीआई ने यूपी पुलिस द्वारा गोमती नगर थाने में पहले से दर्ज प्राथमिकी को भी इसी में शामिल कर लिया है।
दरअसल, सुप्रीमो मायावती के मुख्यमंत्री 2010-2011 में इन मिलों को बेचा गया था। हालांकि, एफआईआर में किसी सियासी व्यक्ति या अफसर का नाम नहीं है। हालांकि, मायावती के करीबी का नाम जरूर है। माना जा रहा है कि इससे उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सूत्रों की माने तो आरोपियों ने फर्जी दस्तावेज और कंपनी कानूनों के प्रावधानों मे गड़बड़ी कर विनिवेश प्रक्रिया को प्रभावित किया था। गंभीर धोखाधड़ी जांच संगठन नई दिल्ली की जांच में देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, चित्तौनी और बाराबंकी मिलों की बिक्री में आपराधिक मंशा पाई गई थी।
बता दें कि साल 2012 में विधानसभा में पेश सीएजी रिपोर्ट की माने तो पहले चीनी मीलों के प्लांट व मशीनीरी को कबाड़ बताकर बाजार मुल्य 114.96 करोड़ तय किया गया। बाद में कीमत घटाकर 32.88 करोड़ कर दी गई। सभी मिलें 2009-2010 तक चल रहीं थी। जरवल रोड़, सिसवा बाजार महाराजगंज मिल 2008-09 और खड्डा मिल 2009-2010 तक लाभ में थी। दस चालू मिलें 61 से 95 फीसदी तक की क्षमता पर चलीं। मिलों का औसत उपभोग क्षमता बिकने के बाद 67 से बढ़कर 81 फीसदी हो गई।
सीएजी ने पाया कि मिल बेचने की प्रकिया में निजी कंपनियों को तथ्यों की पूरी जानकारी थी। बुलंदशहर और सहारनपुर मिलों के लिए वेव इंडस्ट्रीज और पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमटेड ही एकमात्र बोली लगाने वाले थे। वहीं, केंद्र सरकार की इंडियन पोटाश लिमटेड की ओर से छह मिलों के लिए अपेक्षित मूल्य की बिड जमा की गई। इस तरह 21 में से 14 मिलों को काफी कम कीमत मिली।
सीएजी रिपोर्ट मे गड़बड़ियों के खुलासे के बाद अखिलेश यादव ने नवंबर 2012 में मामले की जांच लोकायुक्त को सौंप दी। तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने जुलाई 2014 में सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।