Monday - 28 October 2024 - 12:57 AM

परीक्षा केंद्र में सिपाही को रायफल के साथ तैनात करने का क्या तुक : केएस द्विवेदी

बिहार के सेवा निवृत्त पुलिस महानिदेशक केएस द्विवेदी की पहचान धाकड़ और दबाव में काम न करने वाले आईपीएस अधिकारी की रही है। इस कारण वे ज्यादातर राजनैतिज्ञों को रास नही आये। लेकिन वहां के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के चहेते रहे। नीतिश कुमार ने उनको सेवा निवृत्त होने के बाद वर्दीधारी बलों के केंद्रीय भर्ती बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। साफ-सुथरी भर्तियों के लिए प्रतिबद्धता दिखाकर इस भूमिका में भी वे चर्चा में हैं।

केएस द्विवेदी उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले हैं। अपने गृह जनपद जालौन से पटना की दूरी काफी होने के बावजूद वे बराबर उरई में अपने पुश्तैनी घर में आते रहे। गैर राज्य में इतनी लंबे समय तक नौकरी करने के बावजूद इसी कारण उनकी गृह जनपद में भी गहरी पैठ बनी हुई है। यहां तक कि अपने मित्रों की तीसरी पीढ़ी तक के युवाओं से वे सीधा रिश्ता बनाये हुए हैं। गत दिनों वे उरई आये तो उन्हीं के पैतृक आवास पर वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह ने उनसे प्रासंगिक मुददों पर संक्षिप्त बातचीत की।

प्रश्न- आपने मानवाधिकार पर एक चर्चित पुस्तक लिखी है। क्या आप समझते हैं मानवाधिकार के मामले में पुलिस की स्थिति अब पहले से बेहतर है?

केएस द्विवेदी- मेरी पुस्तक मानवाधिकार के न्यायिक दायरे पर है। इसमें मानवाधिकार से संबंधित सभी पहलुओं का समावेश किया गया है। सवाल यह है कि आज मानवाधिकारों की इतनी चर्चा हो रही है फिर भी सिपाही को परीक्षा केंद्रों पर रायफल के साथ डयूटी देने पहुंचाया जाता है जो अजीब है। क्या पुलिस वाला वहां गोली चला सकता है। मानवाधिकार का जमाना है और ऐसी परंपराओं को भी ढोया जा रहा है।

प्रश्न- क्या मानवाधिकार की बंदिशें पुलिस को प्रोफेशनलिज्म में निखार के लिए प्रेरित करने का कारण नही बनी ? इससे पुलिस थर्ड डिग्री तरीकों तक सिमटी रहने की बजाय विवेचना और अभियोजन के पक्ष को मजबूत करके ज्यादा अपराधियों को सजा दिलाने में कारगर सिद्ध हो रही है। जिससे अंततोगत्वा अपराध नियंत्रण में बेहतर योगदान होता है।

केएस द्विवेदी- पुलिस कार्य प्रणाली में सुधार के लिए बनी समिति ने विवेचना के पक्ष पर ध्यान देते हुए सिफारिश की थी कि विवेचना के लिए अलग से थाना स्तर तक नियुक्तियां की जायें। यह अलग बात है कि अभी तक इस पर बहुत अमल नही हो पाया है। विवेचना की गुणवत्ता को सुधारा जाना चाहिए। बिहार में नीतिश सरकार का त्वरित ट्रायल का कदम भी इस दिशा में उठाया गया कदम था जिससे आपराधिक मुकदमों में सजाओं का अनुपात बढ़ा तो अपराधों में भारी गिरावट आई।

प्रश्न- बिहार में पुलिस को यूनियन का अधिकार है। क्या इससे अफसरों को काम करने में दिक्कत नही आती ?

केएस द्विवेदी- बताते हैं कि बिहार में एक सिपाही ने नौकरी से बाहर होने के बाद चुनाव जीत लिया और उन्हें कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बनने का मौका दे दिया गया। उन्होने पुलिस को यूनियन का अधिकार दे दिया। पर अच्छे अफसरों को इससे कोई समस्या नही होती। जो अफसर ऐसे होते हैं कि खुद माल बटोरना चाहते हैं लेकिन नीचे वालों को आंख दिखाते हैं उन्हें यूनियन से परेशानी झेलनी पड़ती है। वरना ईमानदार और कायदे-कानून के मुताबिक काम करने वाले अफसरों के लिए कुल मिलाकर यूनियन सहयोगी बन जाती है यह मेरा तजुर्बा है। वे एक जिले में पदस्थ थे जहां यूनियन ने पुलिस कर्मियों की छुटटी का मुददा उठा दिया। उन्होंने कहा कि यूनियन जो सिफारिश करेगी उन्हें ही छुटटी दी जायेगी लेकिन केवल उतनी जितनी पुलिस रेगुलेशन में निर्धारित है। यूनियन ने सरेंडर कर दिया। नहीं आप ही जरूरत के आधार पर छुटिटयां मंजूर करो हम अड़ंगा नही डालेगें।

प्रश्न- सुना है कि जब लालू मुख्यमंत्री थे उन्होंने आपकों कभी बर्दाश्त नही किया। जबकि आप नीतीश के चहेते हैं। वे मुख्यमंत्री नही होते तो आप अपनी कार्यशैली की वजह से डीजीपी की कुर्सी तक नही पहुंच पाते।

केएस द्विवेदी- हर मुख्यमंत्री का काम करने का अपना तरीका होता है। यह सही है कि लालू जी के मुख्यमंत्री रहते हुए मुझे हमेशा महत्वहीन पदों पर रहना पड़ा। लेकिन एक बार जब मेरे एक सीनियर ने लालू जी को खुश करने के लिए मुझे परेशानी में डालने वाला आर्डर जारी कर दिया तो मैं सीधा लालू जी के सामने पेश हो गया। वे भी समझते थे कि कौन सा अफसर कैसा है। उन्होंने हमदर्दी से मुझसे बात की और सीनियर के अनुचित आदेश को निरस्त करके मुझे राहत दे दी।

यह भी पढ़ें : आकृति विज्ञा की भोजपुरी कविताएं

यह भी पढ़ें : तो क्या दिल्ली पुलिस को ट्रंप के जाने का इंतजार है?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com