सुरेंद्र दुबे
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पिछले एक हफ्ते से जारी आंदोलन पूरे देश में जारी है। सरकारों को लगा कि अगर इंटरनेट रोक दिया जाए तो आंदोलन रूक जाएंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। पूरे देश में बहुत से शहरों में इंटरनेट पर रोक लगा कर आंदोलन रोकने या कहें तो विफल करने के जितने भी प्रयास थे सब असफल हुए।
लगता है बात इंटरनेट के दायरे से बाहर निकल गई है। सरकार को इंट्रोस्पेक्शन (आत्मावलोकन) करना पड़ेगा और सही नीयत से जनता के मन में झांकना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में पिछले कई दिनों से आधे से ज्यादा शहरों में घोषित रूप से तथा तमाम शहरों में अघोषित रूप से इंटरनेट पर बैन चल रहा है। राजधानी लखनऊ में 19 दिसंबर को हुए प्रदर्शनों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इस लिए दूसरे दिन यानी कि 20 दिसंबर से ही राजधानी सहित प्रदेश के कई शहरों में इंटरनेट पर रोक जारी है।
हिंसा के बाद लखनऊ पुलिस की जांच में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नाम के एक संगठन का हाथ सामने आया जिसके तीन सदस्यों नदीम, वसीम और अशफाक को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है। पुलिस को इन तीनों के पास से भारी मात्रा में भड़काऊ सामग्री बरामद हुई है जिसमें भड़काऊ पंपलेट से लेकर बाबरी मस्जिद और आतंकवाद से संबंधित भड़काऊ किताबे मिली हैं और इसके अलावा सीडियां मिली है जिसके जरिए मजहबी उन्माद फैलाने की साजिश रची गई।
लखनऊ के अलावा दूसरे जिलों के पीएफआई के सदस्यों की संदिग्ध भूमिका सामने आई है जिसकी धरपकड़ की जा रही है। पुलिस का दावा है कि जल्द ही हिंस्सा के कई और जिम्मेदार पकड़े जाएंगे। प्रदेश के शामली जिले में भी पीएफआई के 14 सदस्यों सहित 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस ने सब कुछ खुलासा कर दिया है फिर भी प्रदेश में इंटरनेट सेवाएं बहाल नहीं की जा रही हैं। अगर इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के बाद भी हिंसक प्रदर्शन का खतरा है तो हमे माल लेना पड़ेगा कि दंगाईओं का नेटवर्क हमसे ज्यादा मजबूत है। देश के विभिन्न शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चैन्नई और कोलकाता में नागरिकता कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन जारी है।
सरकार की ओर से स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सफाई दें चुकें हैं कि नागरिकता कानून से किसी भी मुस्लिम को डरने की जरूरत नहीं है। वह यह भी कह चुके हैं कि यह कानून बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों के लिए है। देशवासियों को डरने की जरूरत नहीं है। पर देश वासियों को भरोसा नहीं हो रहा है। इसलिए पूरे देश में प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है।
प्रधानमंत्री ने यह भी सफाई दी कि इस कानून से एनआरसी को कोई लेना देना नहीं है। पर उनके गृहमंत्री अमित शाह तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि देश में एनआरसी लागू की जाएगी। प्रधानमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि देश में एनआरसी से संबंधित शरणार्थी कैंपों में लोगों को बंद किए जाने का भय दिखाया जा रहा है। जबकि डिटेंशन कैंप पूरे देश में कहीं है ही नहीं।
इसके जवाब में सोशल मीडिया पर असम में बने डिटेंशन कैंपों की खबरें वायरल कर दी गईं। पता नहीं कौन झूठ बोल रहा है पर पूरे देश में भ्रम और अफवाह का बाजार गर्म है। लगता है कि आंदोलन सरकार की पकड़ से बाहर हो गए हैं। हां इंटरनेट जरूर सरकार की पकड़ में है, जिसे बंद किए जाने से आम नागरिक का जीवन लड़खड़ा गया है।
आज हमारी जिंदगी पूरी तरह मोबाइल फोन में कैद है। सुबह उठकर भगवान के भजन सुनने, दिन में घूमने के लिए टैक्सी बुक करने, विभिन्न रेस्टोरेंट्स से खाना बुक करने तक सब कुछ थम गया है। पर इसके बाद भी प्रदर्शन जारी है। लगता है कि एक ओर प्रदर्शनकारियों ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है तो दूसरी ओर सरकार ने इंटरनेट रोक कर दिनचर्या अस्त-व्यस्त कर दी है। सरकार को समस्या के निराकरण के लिए इंटरनेट से ऊपर उठकर जनता से सीधा संवाद कर समस्या को सुलझाना पड़ेगा। नागरिकता कानून के समर्थन में रैलियां करवाने से संघर्ष और बढ़ सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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