सोनल कुमार
संसार में आने से पहले जब भगवान लाटरी बांट रहे थे, मेरी आत्मा एक ही चीख पुकार रही थी की इस बार जो भी रूप मिले उसमें सम्मान मिले। भगवान ने भी लीला दिखाई, लॉटरी में मेने स्त्री शक्ति पाई। स्त्री के इस रूप में सम्मान तो होली दीवाली मिलता रहा परन्तु कभी स्थान नहीं मिला। जन्म लिया तो बेटी थी, बड़ी हुई तो पत्नी हुई। ऐसा कोई सरकारी फार्म नहीं था जहां मेरे पिता या पति का नाम नहीं था।
मैं 5 साल से अमेरिका में हूं पर इस बीच मुझे आज तक ये नहीं लगा की मैं कोई भी चीज करने में असमर्थ हूं केवल इसीलिए हूं क्योंकि में एक लड़की हूं। जहां बचपन से ही सुनते आ रहे थे की महिलायें गाड़ी नहीं चला पाती वहां यहां पर हर उम्र की महिला कार से लेकर ट्रक, नाव चला रही थी। बचपन से ही लड़कियों को खाना बनाते देखा था , यहां पुरुष खाना बनाने की प्रतियोगिता में भाग भी ले रहे थे और जीत भी रहे थे। ये सब नया था, रोचक था।
सिर्फ जीवन की मांग कर रहे हैं
मुझे अभी तक यही लग रहा था की लड़का-लड़की का भेदभाव सिर्फ भारत में ही था लेकिन महिला दिवस आने पर पता चला की यहां के मसले कुछ और ही हैं। जहां भारत में दहेज , भ्रूण हत्या, ऑनर किलिंग और मंदिरों में लड़कियों के जाने की लड़ाई थी, वहां यहां की महिलाएं नौकरियों में बराबर के वेतन की मांग कर रही थी। जहां एक तरफ हम सिर्फ जीवन की मांग कर रहे हैं।
वहीं, दूसरी तरफ कोई जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा था। जहां भारत में एक भली लड़की को शादी होते ही या मां बनते ही परिवार के लिए नौकरी छोडऩी पड़ती है वहीं अमेरिका में लड़कियां अपने प्रमोशन में कोई भेदभाव ना आये इसकी मांग करती हैं।
महिला दिवस क्यों मनाते हैं
जहां भारत में पुरुषों को पितृत्व अवकाश के नाम पर 15 दिन मिलते हैं , वहीं अमेरिका में पुरुष 3 महीने के अवकाश को 6 महीने के अवकाश करने की मांग कर रहे हैं ताकि मां और पिता बच्चों को समानता की शिक्षा दे पाएं। मैने किसी से पूछा महिला दिवस क्यों मनाते हैं, जवाब आया महिलाओं को सम्मान देने के लिए। मैंने पूछा ये विशेष तरीका क्यों? तो बोले क्योंकि नारी मां होती है।
मैं एक मां हूं
यह अजीब है – मुझे इसलिए सम्मान मत दो क्योंकि मैं एक मां हूं। यह तो कुदरती है ना तो इसमें कोई श्रेय लेना चाहिए ना ही कोई दोष देना चाहिए। मुझे तो सम्मान इसलिए चाहिए क्योंकि मैं उस एक किरदार के अलावा भी बहुत कुछ हूं औ आप ही के जैसे जीवन में सम्मान के लायक हूं।
देवी की परीक्षा ली जाती है
मुझे यहां आने के बाद लगा कि सिर्फ भारत ही एक अनोखा देश है जिसमें देवी पूजी जाती है, पर भारत ही है जहां उसी देवी की परीक्षा ली जाती है। महिला दिवस पे हम ये नहीं मांगते की हमे सप्ताह में एक दिन की छुट्टी दो, जिसमें हम कोई काम नहीं करेंगे बल्कि हम ये चाहते हैं कि प्रत्येक दिन हम एक दूसरे के साथ में काम करें। महिला दिवस पे हम ये भी नहीं मांगते की हमें नौकरियों में आरक्षण दो, बल्कि ये कि हर जगह बराबर का मौका दो।
कब तक लक्ष्मी जी विष्णु के पैर दबायेंगी
महिला दिवस के दिन हम ये नहीं चाहते कि हमे प्रमोशन दो , बल्कि ये की अगर हम योग्य हैं तो हमे बढऩे दो। सवाल ये नहीं है की आप बस में खड़ी लड़की को आपकी सीट देते हैं या नहीं, सवाल ये है की आप ऑफिस में महिला अध्यक्ष को स्वीकार करते हैं या नहीं? सवाल ये नहीं है की कब तक लक्ष्मी जी विष्णु के पैर दबायेंगी, सवाल ये है की कब तक घर की लक्ष्मी घर ही की रह जाएगी ? सवाल ये भी नहीं है की कन्या को दान क्यों करना चाहिए, सवाल ये है कि मुझमें और पांचाली में आप फर्क कब कर पाएंगे ? सवाल ये नहीं है की मैं घर से बाहर जाना चाहती हूं या नहीं , सवाल ये है कि आप मुझे अपनी मर्जी से जीने देंगे या नहीं? सवाल ये नहीं की आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पे हम किन महिलाओं को मंच पे बुलाएंगे, सवाल तो ये है कि आखिर हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब तक मनाएंगे?
(लेखक के निजी विचार हैं)