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इंदिरा गांधी को याद कर भावुक हुए राहुल, कहा ये दादी से ही सीखा

शबाहत हुसैन विजेता

पूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की 36वीं पुण्यतिथि पर आज जब सारा देह उन्हें याद कर रहा है तब उनके पौत्र राहुल गांधी और पौत्री प्रियंका गांधी ने भी उन्हें अपने अंदाज़ में याद किया है. राहुल और प्रियंका मौजूदा दौर में सियासत की ऊबड़-खाबड़ सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं लेकिन इनका बचपन प्रधानमन्त्री भवन में प्रधानमन्त्री की गोद में बीता है.

राहुल गांधी ने अपनी दादी इन्दिरा गांधी को याद करते हुए उनका इस बात के लिए शुक्रिया अदा किया है कि उन्होंने ज़िन्दगी को असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से उजाले की ओर और मृत्यु से जीवन की ओर जाने का रास्ता दिखाया. राहुल ने लिखा है कि दादी ने सिखाया कि जीने का क्या मतलब है.

वहीं प्रियंका गांधी ने अपनी दादी की 36वीं पुण्य तिथि पर याद किया कि आज रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती है. आज मेरी दादी श्रीमती इन्दिरा गांधी जी का बलिदान दिवस है. दादी ने ही मुझे वाल्मीकि जी की शिक्षाओं से परिचित कराया था. वाल्मीकि जी की शिक्षाएं मुझे वंचित समाज की आवाज़ उठाने एवं उनकी न्याय की लड़ाई में साथ देने के लिए प्रेरित करती हैं.

भारत की एकमात्र महिला प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की आज 36वीं पुण्य तिथि है. वर्ष 1984 में उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने प्रधानमन्त्री आवास में उन्हें गोलियों से बींध दिया था.

इन्दिरा गांधी पक्के इरादों वाली राजनेता थीं. हिन्दुस्तान से आतंकवाद खत्म करने के लिए उन्होंने कमर कसी थी तो किसी को अंदाजा नहीं था कि इन्दिरा गांधी ने आतंकवाद मुक्त भारत का जो सपना देखा है वह कभी पूरा हो पायेगा.

उस दौर में खालिस्तान की मांग चरम पर थी. खेती किसानी वाला प्रदेश पंजाब आतंक के रंग में रंगा हुआ था. पांच नदियों वाले प्रदेश में खून की नदी बह रही थी. इन्दिरा गांधी ने आतंकवाद के खात्मे के लिए सेना की मदद ली. लगातार आपरेशन चलाये. स्वर्ण मन्दिर से आतंकियों को निकालने के लिए आपरेशन ब्ल्यू स्टार किया.

आपरेशन ब्ल्यू स्टार का नतीजा ही इन्दिरा गांधी की शहादत की वजह बना. जरनैल सिंह भिंडरावाले को सिखों का एक बड़ा तबका संत मानता था. यही वजह है कि इन्दिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने उन्हें मारकर आपरेशन ब्ल्यू स्टार का बदला ले लिया.

इन्दिरा गांधी जिस वक्त अपने आवास पर इंटरव्यू देने जा रही थीं ठीक उसी वक्त उनके अंगरक्षकों सतवंत सिंह और केहर सिंह ने उन पर अपने असलहों की पूरी मैगजीन खाली कर दी.

इन्दिरा गांधी की शहादत के बावजूद पंजाब को आतंकवाद से मुक्त करने का सपना पूरा हो गया. पंजाब एक बार फिर खुशहाल प्रदेश में बदल गया. पंजाब के किसान एक बार फिर पूरे देश का पेट भरने का इंतजाम करने लगे.

 

इन्दिरा गांधी जिस अंदाज़ में राजनीति करती थीं उसे उनके साथ काम करने वाले भी समझ नहीं पाते थे. कई बार उनके फैसले उनके सहयोगियों को भी चौंका देते थे. बांग्लादेश का निर्माण इन्दिरा गांधी का ऐसा ही फैसला था. पाकिस्तान के साथ हुए 1971 के युद्ध के बाद इन्दिरा गांधी ने जिस अंदाज़ में पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदल दिया उसे खुद पाकिस्तान भी समझ नहीं पाया.

बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था. कहने को यह पाकिस्तान था लेकिन हकीकत में भौगोलिक रूप से यह पाकिस्तान से 1600 किलोमीटर दूर था. हालांकि यहाँ भी मुस्लिम आबादी थी लेकिन इस क्षेत्र के लोग सबसे ज्यादा परेशान थे क्योंकि यह हिस्सा भारत से कट चुका था और पाकिस्तान से काफी दूर था.

71 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदलकर इन्दिरा गांधी ने एक तरफ पाकिस्तान को ज़बरदस्त झटका दिया तो दूसरी तरफ उन्होंने इस क्षेत्र में विकास की संभावनाएं भी पैदा कर दीं. बांग्लादेश ने एक आज़ाद देश बनने के बाद तरक्की के नये आयाम छुए.

इन्दिरा गांधी की विदेश नीति

इन्दिरा गांधी की विदेश नीति को लेकर विपक्ष के नेता भी उनके कायल थे. 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जब जंग चल रही थी तब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने एलान किया था कि घास की रोटी खाकर भी वह भारत के साथ अगले एक हज़ार साल तक जंग लड़ लेंगे लेकिन अब भारत के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे.

इस एलान के बाद इन्दिरा गांधी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से एक झटके में काटकर अलग कर दिया. बांग्लादेश बन जाने के बाद उन्हीं जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो  के साथ इन्दिरा गांधी से मुलाक़ात करने के लिए शिमला आना पड़ा.

शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच जो संधि हुई उसकी बुनियाद इतनी मज़बूत थी कि इसके बाद कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ जितनी भी बातचीत हुई वह सब शिमला समझौते की रौशनी में हुईं.

इन्दिरा गांधी की खासियत यह थी कि विपक्ष भी उनकी तारीफ़ करने को मजबूर हो जाता था. विपक्ष के सबसे सशक्त नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इन्दिरा गांधी को दुर्गा कहकर संबोधित किया था.

इन्दिरा गांधी की गलती था आपातकाल

इन्दिरा गांधी के राजनीतिक जीवन में आपातकाल का फैसला उनकी राजनीतिक गलती मानी जाती है. इसी आपातकाल ने इन्दिरा गांधी को सत्ता से बाहर का रास्ता भी दिखाया लेकिन विपक्ष में एकजुटता न होने की वजह से इन्दिरा गांधी की सत्ता में फिर वापसी हुई और वह जीवनपर्यंत प्रधानमन्त्री बनी रहीं.

इन्दिरा गांधी को हटाने के लिए राजनारायण और जयप्रकाश नारायण का संघर्ष भी इतिहास का हिस्सा है. जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली कर सिंघासन खाली करो कि जनता आती है का एलान किया था.

विपक्ष एकजुट हुआ तो इन्दिरा गांधी ढाई साल के लिए सत्ता से बेदखल भी हुईं लेकिन वह वापस लौटीं तो और भी ताकतवर होकर लौटीं. इन्दिरा गांधी राजनीति अपनी शर्तों पर करती थीं. वह अमेरिका जैसे ताकतवर देश के सामने भी कभी नहीं झुकीं.

पाकिस्तान के साथ 1971 में जंग चल रही थी तब इन्दिरा गांधी अमेरिका गई थीं. राष्ट्रपति निक्सन ने उन्हें 45 मिनट इंतज़ार करवाया ताकि वह बेइज़्ज़्ती महसूस करें और पाकिस्तान के साथ जंग बंद करने के लिए अमेरिका की शर्तों को मान लें लेकिन इन्दिरा गांधी के तेवरों में फर्क नहीं आया. उन्होंने कहा कि अमेरिका इस जंग के बीच में आना चाहता है तो पाकिस्तान में चल रहे कत्लेआम को रोके. साथ ही युद्ध के दौरान पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को भारत अपने देश में नहीं रहने देगा. पाकिस्तान उन्हें वापस ले.

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इन्दिरा गांधी ने कई मौकों पर दुनिया में भारत का सर ऊंचा किया. दृढ निश्चय की धनी इस महिला ने भारत में तरक्की के तमाम रास्ते खोले. बचपन में वानर सेना बनाकर देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली इन्दिरा गांधी का पूरा जीवन संघर्षों से भरा था.

आज 36 साल हो गए उनकी शहादत को. अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जान दे दी. आतंकवाद के खिलाफ जब भी कहीं से ताकतवर आवाज़ उठेगी तब हमें इन्दिरा गांधी की शहादत पर गर्व होगा.

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