Tuesday - 29 October 2024 - 3:37 AM

भारतीयों पर बेअसर हो रही है एंटीबायोटिक दवाएं

न्यूज डेस्क

भविष्य को लेकर एक बेहद जरूरी सवाल-अगर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो गईं तो क्या होगा? अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1945 में पेंसिलिन का आविष्कार करने के लिए जब नोबेल पुरस्कार हासिल किया था, उसी दिन उन्होंने चेतावनी दे दी थी कि एंटीबायोटिक की वजह से एक दिन बैक्टीरिया पलटवार कर सकते हैं। 74 साल बाद फ्लेमिंग की यह भविष्यवाणी सच होती दिख रही है।

ऐसा समय भी आ सकता है, जब कोई भी व्यक्ति दुकान से पेंसिलीन खरीद सकेगा। इसमें यह खतरा है कि अज्ञानी व्यक्ति आसानी से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इसका सेवन कर अपने रोगाणुओं/जीवाणुओं को इस दवा को लेकर प्रतिरोधी बना दे।
-अलेक्जेंडर फ्लेमिंग, पेंसिलीन के आविष्कारक, 1945 में नोबेल पुरस्कार स्वीकार करते हुए।

हाल ही में एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके मुताबिक स्वस्थ भारतीयों पर अब एंटीबायोटिक दवाएं बेसअर हो रही है, जाहिर है यह बात फिक्र पैदा करती है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की तरफ से सर्वेक्षण में पता चला है कि स्वस्थ्य भारतीयों पर अब एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो रही हैं। रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तीन में से दो स्वस्थ भारतीयों पर इन दवाओं का कोई असर नहीं हुआ। यह एक चिंता का विषय है। इससे पता चलता है कि भारतीयों में अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया गया और अब शरीर पर उसका असर पडऩा बंद हो गया है।

207 स्वस्थ भारतीयों पर हुआ टेस्ट

रिसर्च के लिए 207 स्वस्थ भारतीयों को चुना गया। इन लोगों ने बीते एक महीने में किसी भी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं किया और ना ही ये बीमार पड़े। फिर इन सभी के स्टूल का टेस्ट किया गया। परीक्षण में पता चला कि 207 में से 139 लोगों पर एंटीबायोटिक का असर नहीं हुआ। 139 लोग ऐसे थे जिन पर एक और एक से अधिक एंटीबायोटिक का असर नहीं पड़ा।
जिन दो एंटीबायोटिक सेफलफोरिन्स (60 फीसदी) और फ्लूऑरोक्यिनोलोनस (41.5 फीसदी) का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है, इनका कोई असर नहीं हुआ।

क्या गंभीर चेतावनी है ये?

डॉक्टर इन नतीजों को चौंकाने वाला और गंभीर मान रहे हैं। इससे भविष्य में परेशानी बढऩे की संभावना है। डॉक्टरों का मानना है कि एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल जिस अनुपयुक्त तरीके से किया गया है, उसका असर इंसान के शरीर पर बेहद गलत तरीके से पड़ा है। अभी के नतीजों से ऐसा लग रहा है कि एंटीबायोटिक के बेअसर होने का स्तर निचले स्तर पर है, लेकिन भविष्य में यदि सुधार नहीं हुआ तो यह स्तर और बढ़ भी सकता है।

एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध सेवन से रोगाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जा रही है और दवाओं का असर खत्म होता जा रहा है। परिणामस्वरूप गंभीर बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। चूंकि, भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत सबसे ज्यादा है, इस वजह से इसके दुष्परिणाम भी भारत में सबसे ज्यादा दिखायी दे रहे हैं। ऐसे में, एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग से बचने के उपाय ढूंढऩे बहुत जरूरी हैं।

भविष्य में इंफेक्शन के इलाज में आयेगी दिक्कत

रिसर्च में पता चला कि बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जिन पर इसका पूरी तरह असर हुआ। अगर स्वस्थ लोगों पर एंटीबायोटिक बेअसर होगी तो भविष्य में उनके इंफेक्शन आदि के इलाज में काफी दिक्कत आएगी। ऐसे कई कारण हैं, जिसके चलते ये परिणाम आ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण है सामान्य बीमारियों में भी एंटीबायोटिक का अधिक इस्तेमाल होना। हालात ये हैं कि सर्दी और जुकाम जैसी बीमारियों में भी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है।

अधिकतर बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर चुके हैं। ऐसा एंटीबायोटिक्स दवाओं के अंधाधुन उपयोग से हो रहा है। समय के अनुसार, एंटीबायोटिक्स की कई पीढ़ी आयी और प्रभावहीन हुई और अब तो ब्राडस्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स भी खतरे में हैं। इसलिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग सावधानी से करना चाहिए।

हर साल एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण 7 लाख बच्चों की मौत

रोग गतिशीलता अर्थशास्त्र और नीति केंद्र (सीडीडीईपी) के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोध से होने वाले इंफेक्शन के कारण दुनिया भर में हर साल 7 लाख बच्चों की मौतें हो रही हैं, जिसमें अकेले भारत में यह आंकड़ा 58000 है।

एक रिसर्च के अनुसार, एंटीमाइक्रोबिअल प्रतिरोधक क्षमता (एएमआर) की समस्या बेहद गंभीर रूप ले चुकी है। साल 2017 में ब्रिटिश सरकार की एंटीमाइक्रोबिअल प्रतिरोधक क्षमता संबंधी समीक्षा में सामने आया था कि वर्ष 2050 तक एएमआर से एशिया व अफ्रीका में 40 लाख, उत्तर अमेरिका में हर साल 317,000 और यूरोप में 390,000 लोगों की जान का जोखिम खड़ा हो जायेगा।

एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी बैक्टीरिया के चलते आने वाले समय में कीमोथेरेपी, अंगों का प्रत्यारोपण आदि करना असंभव होता जायेगा और गॉनरिया, दिमागी बुखार और टायफाइड जैसे संक्रमण का भी इलाज संभव नहीं रह जायेगा। भारत के लिए यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भारत में हो रहा है। भारत में एंटीबायोटिक्स की खपत में 103 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है।

क्या है एंटीबायोटिक

एंटीबायोटिक मूलत: एक ग्रीक शब्द है, जो एंटी और बायोस की संधि से बना है। इसमें, एंटी का मतलब होता है विरोध और बायोस का अर्थ है जीवाणु यानी बैक्टीरिया। अत: एंटीबायोटिक का मतलब हुआ बैक्टीरिया का विरोध करने वाला।

एंटीबायोटिक जीवाणुओं के विकास को रोक देती है और बैक्टीरिया के संक्रमण को रोककर उपचार संभव बनाती है। एंटीबायोटिक सूक्ष्म जीवों से होनेवाले संक्रमण से शरीर की रक्षा करती है।

जब बैक्टीरिया का संक्रमण अत्यधिक हो जाता है, तो प्रतिरोधक तंत्र के लिए लडऩा मुश्किल होता है और उस वक्त एंटीबायोटिक्स की मदद ली जाती है। एंटीबायोटिक शब्द का सबसे पहला प्रयोग साल 1942 में सेलमन अब्राहम वाक्समैन ने एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न किये गये ठोस-तरल पदार्थ के लिए किया था, जो उच्च तनुकरण में अन्य सूक्ष्म जीवों के विकास को रोक रहे थे।

डब्ल्यूएचओ भी जता चुका है चिंता

भारतीयों द्वारा एंटीबायोटिक के ज्यादा प्रयोग को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चिंता जता चुका है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा भारतीय दवाओं के नकारात्मक असर की चिंता नहीं करते और डॉक्टर से पूछे बिना एंटीबायोटिक दवाएं इस्तेमाल करते हैं।

एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की वजह से टीबी की बीमारी के मामले भयावह रूप से भारत में बढ़े हैं। साल 2010 में भारत में टीबी के 4 लाख 40 हजार नये मामले देखने में आये थे। लोगों में एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं हो रहा था और इसी वजह से देश में 1.5 लाख लोगों की मौत भी हो गयी थी।

क्या है समाधान

वर्तमान में जो हालात उत्पन्न हो रहे हैं उसका समाधान नई एंटीबायोटिक दवाएं हैं। इस विपत्ति को सिर्फ नई एंटीबायोटिक दवाएं ही दूर कर सकती हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है। 1987 के बाद से किसी बड़ी एंटीबायोटिक दवा की खोज नहीं हुई है।

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